सरकारी तंत्र ही जाम कर रहा 'विकास' का पहिया
- 2015-16 में मिला था शराब सप्लाई का काम
- 25 प्रतिशत मुनाफे का लाभ मिलना था जीएमवीएन को - 550 करोड़ का शराब व्यवसाय हुआ था 2015-16 में - 13 करोड़ से ज्यादा बनता है निगम का हिस्सा -- आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहा गढ़वाल मंडल विकास निगम -- मंडी परिषद पर बकाया है निगम का करोड़ों रुपए -- बैलेंस शीट तैयार न होना बताया जा रहा भुगतान न करने का कारणDEHRADUN: गढ़वाल मंडल विकास निगम आज जिस आर्थिक तंगी के दौर में है, उसमें सरकारी विभाग और एजेंसियों ने भी अहम भूमिका निभाई है। निगम के कर्मचारियों से सीएम आवास और दफ्तर में चाकरी कराई जा रही है और सैलरी देने के लिए निगम को कहा जा रहा है। यह मुद्दा पहले ही दैनिक जागरण आईनेक्स्ट प्रकाशित कर चुका है। निगम की माली हालात खराब करने में मंडी परिषद की भी भूमिका रही है। मंडी परिषद शराब के धंधे में निगम के हिस्से का करोड़ों का मुनाफा कई सालों से दबाए बैठी है।
क्या है पूरा मामलावित्त वर्ष ख्0क्भ्-क्म् में राज्य सरकार ने उत्तराखंड में शराब का ठेका मंडी परिषद को दिया था। यानी एफ-क् लाइसेंस मंडी परिषद को मिला। एफ-क् के गोदाम से ठेकों तक शराब सप्लाई का काम गढ़वाल मंडल विकास निगम को दिया गया। कुमाऊं क्षेत्र में यह काम कुमाऊं मंडल विकास निगम को दिया गया। ठेके की शर्तो के अनुसार पूरे साल में शराब में होने वाले मुनाफे का ख्भ् परसेंट जीएमवीएन और केएमवीएन को दिया जाना था। लेकिन, तीन साल बाद भी मंडी परिषद ने यह रकम निगमों को नहीं दी है।
मंडी परिषद पर कितना बकाया जीएमवीएन की ओर से कई बार मंडी परिषद से बकाया रकम देने को कहा जा चुका है, लेकिन मंडी परिषद अब तक बैलेंस शीट न बनाये जाने का बहाना बना रही है। जीएमवीएन सूत्रों के आकलन के अनुसार वर्ष ख्0क्भ्-क्म् में गढ़वाल मंडल में भ्भ्0 करोड़ रुपये का शराब व्यवसाय हुआ था। इसमें न्यूनतम क्0 परसेंट भी लाभ हुआ तो यह राशि भ्भ् करोड़ बनती है। भ्भ् करोड़ का ख्भ् परसेंट यानी करीब क्फ्.7भ् करोड़ रुपये निगम के मंडी परिषद पर बकाया है। मंडी परिषद हमारा पैसा देना ही नहीं चाहती। कई बार इस संबंध में परिषद को पत्र लिखा जा चुका है। परिषद कह रही है कि अभी तक बैलेंस शीट नहीं बनी, जबकि अन्य विभागों की तरह परिषद की बैलेंस शीट भी हर साल बनती है। - एसपी पंत, महासचिव, कर्मचारी महासंघ जीएमवीएन। ---------हम भी लगातार उम्मीद लगाये बैठे हैं कि कहीं से अटका हुआ पैसा आ जाए। केदारनाथ आपदा के बाद निगम की माली हालत बहुत अच्छी नहीं है। फिलहाल जो पैसा आ रहा है, उससे किसी तरह हम अपने खर्चे चला रहे हैं।
-अतुल कुमार गुप्ता, एमडी, जीएमवीएन।