फलों का राजा आम इस बार भी खास लोगों के ही डाइनिंग टेबल की शान बनेगा.

-26460 हेक्टेयर में आम की बागवानी

-2.37 लाख टन औसतन हर वर्ष आम की पैदावार

-82.95 हजार टन इस साल फसल का अनुमान

-55 हजार किसान प्रभावित

-120 करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान

-मलिहाबाद मैंगो बेल्ट में कीटनाशक के अत्यधिक छिड़काव ने 65 फीसदी से अधिक फसल चौपट

-मौसम के बदलते मिजाज ने भी किया आग में घी का काम, माल-काकोरी व मोहान में हालात कुछ बेहतर

pankaj.awasthi@inext.co.in
LUCKNOW: फलों का राजा आम इस बार भी खास लोगों के ही डाइनिंग टेबल की शान बनेगा. दरअसल, दुनियाभर में मशहूर मलिहाबाद मैंगो बेल्ट में दशहरी, लखनउवा, लंगड़ा और चौसा की करीब 65 फीसद फसल चौपट हो गई है, जो फसल बची है अगर वह तैयार होने तक पेड़ों पर लगी बची रह गई तो वह बेहद ऊंची कीमत पर ही बिकेगी. हालांकि, आम की फसल के नुकसान के लिये खुद किसान ही जिम्मेदार हैं, जिन्होंने पेड़ों पर आए बढि़या बौर देख उन्हें कीटों से बचाने के लिये कीटनाशकों के ताबड़तोड़ कई स्प्रे कर डाले. इसका नतीजा यह हुआ कि इन कीटनाशकों ने फसल के लिये नुकसानदायक कीटों के साथ ही मित्र कीट भी मर गए. इसके अलावा मौसम के बदलते मिजाज ने भी फसल को चौपट करने में कसर नहीं छोड़ी. यही वजह है कि जून माह की शुरुआत में जब मलिहाबाद में आम की फसल को लेकर सरगर्मी शुरू हो जाती थी, वहां इन दिनों सन्नाटा पसरा है.

ज्यादा उत्साह पड़ा भारी
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के निदेशक डॉ. शैलेंद्र राजन ने बताया कि आम के पेड़ों में इस बार बौर काफी अच्छा आया था. जिन्हें देख किसान भारी फसल के अनुमान में उत्साहित थे. हालांकि, उनका यह उत्साह ही उन पर भारी पड़ गया. किसानों ने बौर को कीटों से बचाने के लिये बिना किसी वैज्ञानिक सलाह लिये इंसेक्टिसाइड व फंगीसाइड के ताबड़तोड़ 9 से 10 स्प्रे कर डाले. इन स्प्रे का नतीजा यह हुआ कि फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों के साथ ही मित्र कीट मसलन मधुमक्खी, हाउस फ्लाई और ड्रैगन फ्लाई भी मर गए. जिससे पेड़ों में परागण नहीं हो पाया. परागण न होने से पेड़ों में फल सेटल नहीं हो सके. जिन पेड़ों में फल सेटल भी हुए, उनमें फिर से रोग लग गया. किसानों ने इन फलों को बचाने के लिये फिर से कीटनाशकों का छिड़काव किया लेकिन, उसने फल को कमजोर कर दिया और वे भी नष्ट हो गए.

मौसम ने भी बिगाड़ा खेल
कीटनाशकों ने फसल को नुकसान पहुंचाया ही साथ ही मौसम के बदलते मिजाज ने भी आम को नुकसान पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. डॉ. राजन ने बताया कि मौसम के बदलाव की वजह से आम के बौर को विकास करने के लिये जितना समय मिलना चाहिये वह नहीं मिला. जिससे बौर की वृद्धि और फूलों के खिलने दोनों पर असर पड़ा. जहां ठंड की वजह से इसमें बेहद धीमी गति से बढ़ोत्तरी हो रही थी, वहीं अचानक टेम्परेचर बढ़ने से बौर में विकास तेजी से होने लगा. यह विकास असामान्य था और बौर का आकार छोटा ही रह गया. नतीजतन, फल का आकार छोटा ही रह गया.

बची सिर्फ 35 फीसद फसल

डॉ. राजन ने बताया कि मैंगों बेल्ट के मलिहाबाद क्षेत्र में कीटनाशकों का साइड इफेक्ट ज्यादा है. जबकि, माल, काकोरी व मोहान में हालात कुछ बेहतर हैं. उन्होंने बताया कि पूरी मैंगो बेल्ट में हर साल औसतन 2.37 लाख टन दशहरी, चौसा, लंगड़ा और लखनउवा आम की पैदावार होती है. लेकिन, इस बार 65 फीसदी फसल चौपट हो गई और सिर्फ 35 फीसद यानी 82,950 टन पैदावार का अनुमान है.

ज्यादातर किसान कीटनाशक विक्रेताओं की बातों पर विश्वास करते हैं. यह विक्रेता अपने मुनाफे के लिये उन्हें गलत सलाह देकर ज्यादा से ज्यादा सिंथेटिक कीटनाशकों के छिड़काव के लिये प्रेरित करते हैं, जो कि आत्मघाती साबित हो रहा है.

डॉ. शैलेंद्र राजन, निदेशक

केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, रहमानखेड़ा

Posted By: Kushal Mishra