मनोहर पर्रिकर एक ऐसा नेता ने जो मरते दम तक देश की सेवा करने के साथ ही ईमानदारी और कमिटमेंट को अपना सबसे बड़ा हथियार बनाया। राजनीति में रहकर भी एक उन्होंने एक खास छवि बनाई। आइए 17 मार्च को जिंदगी की जंग हारने वाले पर्रिकर के बारे में ये खास किस्से...

newsroom@inext.co.in
KANPUR: मनोहर पर्रिकर के रूप में एक ऐसा आईआईटी इंजीनियर, जिसने किसी मल्टीनेशनल कंपनी में रहकर डॉलर कमाने की बजाए सामान्य तरीके से देश सेवा को तवज्जो दी। मनोहर पर्रिकर एडवांस्ड पैंक्रियाटिक कैंसर से जूझ रहे थे। गंभीर बीमारी के चलते पर्रिकर की सेहत में लगातार उतार-चढ़ाव बना रहा, लेकिन उन्होंने पूरी लगन के साथ अपने आखिरी दम तक जनता की सेवा की। पार्टी में मनोहर पर्रिकर के काम के प्रति जोश और जज्बे की हमेशा तारीफ होती रही। मनोहर पर्रिकर न तो धूम्रपान करते थे और न ही किसी ने उन्हें शराब पीते देखा था। पर्रिकर ने युवाओं में जोश पैदा करने की मिसाल कायम की। मनोहर पर्रिकर शालीन, सरल स्वभाव के नेता रहे।

मनोहर पर्रिकर से जुड़ी कुछ अहम जानकारियां

-मनोहर पर्रिकर न तो धूम्रपान करते थे और न ही किसी ने उन्हें शराब पीते देखा था।
-वह पहले ऐसे भारतीय राज्य के मुख्यमंत्री बने, जिन्होंने आईआईटी से शिक्षा प्राप्त की।
-2001 में, पर्रिकर को आईआईटी बॉम्बे ने डिस्टिंग्विस्ड एल्यूमिनी अवॉर्ड से सम्मानित किया।
-इसके अलावा पर्रिकर आधार कार्ड के जनक नंदन नीलेकणि के सहपाठी भी रहे हैं।
-24 अक्टूबर 2000 को वह पहली बार गोवा के मुख्यमंत्री बने थे। मुख्यमंत्री का पद संभालने से ठीक पहले उनकी पत्नी की कैंसर से मृत्यु हो गई थी, लिहाजा पर्रिकर के ऊपर अपने दो बच्चों की जिम्मेदारी भी आ गई थी।
-मनोहर पर्रिकर सादगी में विश्वास रखते हैं। वह सार्वजनिक परिवहन से यात्रा करना पसंद करते थे।
-गोवा का मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री आवास में रहने से मना कर दिया था और खुद के एक छोटे से घर में रहते थे। वह कभी-कभी टी स्टाल पर चाय पीते हुए भी नजर आ जाते थे।
-गोवा के मुख्यमंत्री होने के बावजूद पर्रिकर मंहगी गाडिय़ों को छोड़कर मोटरसाइकिल से विधानसभा जाया करते थे।
-उन पर गोवा का सीएम और भारत सरकार का डिफेंस मिनिस्टर रहते हुए कोई भी करप्शन का आरोप नहीं लगा।
-वर्ष 2009 में, पर्रिकर ने लालकृष्ण आडवाणी को एक पुराना अचार कहा था और कहा कि उनकी अवधि खत्म हो गई थी।
-उन्होंने आगे कहा कि आडवाणी को पार्टी का संरक्षक बनाना चाहिए और जब भी हमें उनकी आवश्यकता हो वो हमारी सहायता करें।
-9 नवंबर 2014 को उन्होंने मोदी कैबिनेट में डिफेंस मिनिस्टर की शपथ ली। इसके साथ ही वह गोवा के पहले राजनेता बने जिन्होंने केंद्र सरकार में उच्च पद प्राप्त किया।
-उन्होंने बताया था कि वह डिफेंस मिनिस्टर के रूप में पहले दिन काफी घबराए हुए थे और वह सेना रैंकों से अवगत भी नहीं थे।
-वह सबसे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने भाजपा सरकार में प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी का समर्थन किया था।
 
कुछ विवादों से भी रहा नाता

-वर्ष 2001 में, पर्रिकर की अगुवाई वाली सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में 51 सरकारी स्कूलों को आरएसएस की एक शैक्षणिक शाखा विद्या भारती को दिया, जिसके लिए कुछ शिक्षाविदों ने उनकी आलोचना की।
-उनकी व्यापक रूप से आलोचना हुई, जब वह अपने 37 सदस्यों के एक दल को लेकर लेकर ऑस्ट्रिया, जर्मनी और इटली के लिए यूरोपीय वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट्स और प्रैक्टिस को देखने गए थे। इस यात्रा का भुगतान सरकारी फंड से किया गया था और इसकी लागत लगभग 1 करोड़ थी।
-वर्ष 2014 में उन्होंने 6 विधायकों के लिए दावत की व्यवस्था की थी, जिसकी लागत 89 लाख थी। यह दावत 2014 फीफा वल्र्ड कप में भाग लेने के लिए थी। डेलीगेशन में किसी भी फुटबॉल एक्सपर्ट को शामिल नहीं करने और जनता के पैसे को बर्बाद करने के लिए विपक्ष के नेताओ ने उनकी काफी आलोचना की थी।

राजनीतिक यात्रा

पर्रिकर युवा अवस्था में ही आरएसएस के सदस्य बन गए और जब वह अपनी पढ़ाई के अंतिम वर्षों में थे तो वह इस संगठन के एक प्रमुख प्रशिक्षक बन गए थे।
उन्होंने गोवा में आरएसएस के लिए फिर से कार्य करना शुरू कर दिया और आईआईटी बॉम्बे से ग्रेजुएट पास करने के बाद उन्होंने अपने निजी व्यवसाय शुरू किया। 26 वर्ष की उम्र में आरएसएस ने उन्हें एक संघचालक बना दिया था।
वर्ष 1988 में, वह भाजपा में शामिल हो गए।
वर्ष 1994 में, वह पहली बार गोवा विधान सभा के लिए चुने गए।
वर्ष 1994-2001 तक, उन्होंने गोवा राज्य में भाजपा के जनरल सेक्रेट्री और प्रवक्ता के रूप में कार्य किया।
24 अक्टूबर 2000 को वह पहली बार गोवा के मुख्यमंत्री बने। हालांकि वह अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और 27 फरवरी 2002 को उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
5 जून 2002 को वह फिर से गोवा के मुखयमंत्री के रूप में चुने गए और फिर बाद में चार विधायकों के इस्तीफा देने के कारण फिर से उनके 5 वर्ष का कार्यकाल खतरे में पड़ गया था।
जून 2007 में वह गोवा राज्य के पांचवीं विधान सभा में विपक्ष के नेता के रूप में निर्वाचित हुए।
मार्च 2012 में उन्हें फिर से गोवा मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त किया गया, लेकिन उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा और नवंबर 2014 को दिल्ली जाना पड़ा क्योंकि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें भारत के रक्षा मंत्री के रूप में नियुक्त किया था।
13 मार्च 2017 को उन्होंने केंद्रीय रक्षा मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया और 14 मार्च 2017 को वह गोवा के 13 वें मुख्यमंत्री के रूप में चुने गए।

आईआईटियन सीएम पर्रिकर ने डाॅलर कमाने की जगह की देश सेवा, आखिरी तक उनमें दिखा जोश व जज्बा

मनोहर पर्रिकर का कानपुर से था खास कनेक्शन, यहां पहली बार आए थे क्रिकेटर बनकर

 

Posted By: Shweta Mishra