मनोज बाजपेई जल्द फिल्म 'गली गुलियां' में एक संजीदा किरदार निभाते दिखेंगे। दैनिक जागरण आईनेक्स्ट के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत में फिल्म और अदाकारी पर उन्होंने रखी अपनी बेबाक राय...


benul.tomar@inext.co.inकानपुर। आपकी नई फिल्म 'गली गुलियां' 7 सितम्बर को रिलीज हो रही है। इसके टाइटल से इसकी कथावस्तु का अंदाजा लगाना मुश्किल है। किस बारे में है ये फिल्म?मनोज बाजपेयी ने बताया कि इस फिल्म का मुख्य किरदार दिल्ली की 'गली गुलियां' में रहता है। वो मानसिक रूप से विक्षिप्त है और अपने आपको एक कमरे में बंद करके रहता है। बाहरी दुनिया फेस नहीं करना चाहता। फिर एक दिन उसे पड़ोस के एक बच्चे की चीख सुनाई देती है, जिसे उसका बाप बहुत मारता है। इस हद तक मारता है कि वो मर भी सकता है। फिर वह उस बच्चे को बचाने की कोशिश शुरू करता है। वो बच्चा बचता है या नहीं, इस किरदार की मानसिक हालत सही होती है या नहीं, उसके दिमाग में जो सवाल चल रहे हैं उसके जवाब मिलते हैं या नहीं, यही है इस फिल्म की कहानी।


मनोज जी, फिल्म का काफी हिस्सा दिल्ली में शूट किया गया है, आपका भी दिल्ली से पुराना नाता रहा है। कैसा अनुभव रहा आपका इस बार?

फिल्म की शूटिंग सिर्फ दिल्ली 6 में की है, और कहीं नहीं। ये पुरानी दिल्ली की कहानी है। ये किरदार (खुदूस) जब-जब वहां से निकलने की कोशिश करता है, सफल नहीं हो पाता। ये बड़ा गहरा साइकोलोजिकल ड्रामा है। हर सीन परत दर परत खुलते हैं। पुरानी दिल्ली की गलियां इस रोल के लिए एकदम उपयुक्त थीं।आपकी कोई भी नई फिल्म आती है तो ये चर्चा शुरू हो जाती है कि ये फिल्म भी अवॉर्ड जीतेगी। ऐसा क्या जादू भरते हैं आप अपने किरदारों में?वो तो आप लोग बेहतर जानते होंगे (मुस्कुराते हुए)। पहले एक्टर्स अच्छा काम करते थे फिर नेशनल अवॉर्ड की उम्मीद लगाते थे। अब तो बुरा काम करके भी उम्मीद करते हैं लोग, कि कोई न कोई अवॉर्ड तो मिल ही जाएगा।क्या इस तरह की ऑफ बीट, इम्पैक्टफुल फिल्मों को लेकर आपकी खास रुचि है?हमारे हिंदुस्तान में एक गलत रिवाज है, नाच गाना, थोड़ा सा ड्रामा और बात खत्म। और कहीं ऐसा नहीं होता। सिनेमा एक आर्ट का माध्यम है। पर यहां इसे सस्ते मनोरंज का सोर्स समझा जाता है। मुझे उससे भी कोई समस्या नहीं है। हमें भी कभी-कभी पैसे के लिए ऐसी फिल्में करनी पड़ जाती हैं (मुस्कुराते हुए)। लेकिन अगर कलाकार को अपनी कलाकारी टेस्ट करनी है तो उसको चुनौतीपूर्ण रोल करने पड़ेंगे। दर्शक अब धीरे-धीरे समझदार हो रहे हैं।

इस फिल्म से आपको क्या उम्मीदें हैं?काफी उम्मीदें हैं। ये फिल्म अब तक 23 इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल्स में जा चुकी है। ये कोई छोटी बात नहीं है। एक फेस्टिवल में जाना भी काफी मुश्किल होता है। मुझे और दीपेश (फिल्म के डायरेक्टर) को बहुत सारे अवार्ड भी मिले हैं इस फिल्म के लिए। मुझे यकीन है कि यह यहां भी सफल होगी।आपकी संवाद अदायगी के लोग कायल हैं। क्या लगता है, इस फिल्म में आपकी खामोशी के भी कायल होंगे?संवाद तो बहुत सहज होना चाहिए। अगर वो सहज नहीं है तो रिअलिस्टिक नहीं होता। इस फिल्म में भी आपको यही रिअलिज्म देखने को मिलेगा। मनोज वाजपेयी ने कहा, 'पहले एक्टर्स अच्छा काम करते थे फिर नेशनल अवॉर्ड की उम्मीद लगाते थे। अब तो बुरा काम करके भी अवॉर्ड की उम्मीद करते हैं।'बर्थ डे : किसान परिवार में जन्में मनोज बाजपेयी ने इस तरह बॉलीवुड में बनाई पहचान, पहली शादी चली थी बस दो महीनेशाहरुख और सैफ सहित इन दस सितारों ने की दूसरे धर्म में शादी

Posted By: Vandana Sharma