टीम इंडिया के पूर्व कप्तान मंसूर अली खान पटौदी आज ही के दिन पैदा हुए थे। उन्हें नवाब पटौदी या टाइगर के नाम से भी जाना जाता था। पटौदी की खासियत थी कि उन्होंने पूरा जीवन क्रिकेट सिर्फ एक आंख से खेला लेकिन यह कैसे किया यह काफी हैरान करने वाला है। आइए जानें उनकी ट्रिक...


कानपुर। पूर्व भारतीय क्रिकेटर मंसूर अली खान पटौदी का जन्म 5 जनवरी 1941 को भोपाल में एक नवाब खानदान में हुआ था। मंसूर के पिता इफ्तिखार अली खान पटौदी भी क्रिकेटर थे। इफ्तिखार ने पहले इंग्लैंड और फिर भारत के लिए टेस्ट खेला, हालांकि उनके बेटे मंसूर अली खान ने सिर्फ इंडिया के लिए मैच खेला। नवाब पटौदी ने न सिर्फ भारत की तरफ से टेस्ट खेला बल्कि 21 साल की उम्र में टीम इंडिया की कप्तानी भी की। मंसूर अली खान ने अपने पिता को क्रिकेट खेलते भले ही नहीं देखा था मगर वह उन्हें आदर्श मानते थे। शायद यही वजह है कि, बेटे ने पिता की राह चलकर उनसे भी बड़ा नाम कमाया।इंग्लैंड में सीखी क्रिकेट की एबीसीडी


मंसूर अली खान या नवाब पटौदी ने क्रिकेट की एबीसीडी इंग्लैंड में ही सीखी। भारत में जन्म होने के बावजूद नवाब पटौदी पढ़ने के लिए इंग्लैंड गए थे। यहां स्कूल के दिनों के दौरान पटौदी ने अपने बेहतरीन खेल से स्कूल की टीम और फिर काॅलेज की टीम में जगह बनाई। साल 1956 में विंचेस्टर काॅलेज में पढ़ाई के दौरान फाइनल ईयर में एक सीजन में 1068 रन बनाए। उस वक्त किसी बल्लेबाज द्वारा स्कूल के एक सीजन में बनाए गए यह सबसे ज्यादा रन थे।

कार हादसे में गंवाई एक आंखकाॅलेज से निकलने के बाद नवाब पटौदी इंग्लैंड के घरेलू क्रिकेट का हिस्सा बन गए और ससेक्स की तरफ से मैच खेलते थे। उस वक्त पटौदी का क्रिकेट ग्राॅफ तेजी से बढ़ रहा था। तभी एक दिन ऐसा हादसा हुआ जिससे नवाब पटौदी की पूरी जिंदगी बदल गई। पटौदी के बारे में आपको जानकर हैरानी होगी कि वह एक आंख से क्रिकेट खेलते थे। दरअसल इंटरनेशनल क्रिकेट में डेब्यू से पहले पटौदी के साथ एक हादसा हो गया था जिसमें उनकी एक आंख की रोशनी चली गई थी। साल 1961 की बात है, पटौदी ब्रिटेन में क्रिकेट खेल रहे थे। मैच खत्म होने के बाद उनकी टीम ने बाहर डिनर का प्रोग्राम बनाया। डिनर करके उन्हें होटल आना था, हालांकि होटल और रेस्टोरेंट की दूरी आधा किमी भी नहीं थी लेकिन पटौदी ने पैदल की बजाए कार से जाने का फैसला लिया। रास्ते में उनकी कार का एक्सीडेंट हो गया और खिड़की के कांच का एक टुकड़ा पटौदी की आंख में चला गया जिसके बाद उनकी दाईं आंख की रोशनी चली गई।मैच खेलते हुए दिखाई देती थी दो गेंदें

कार एक्सीडेंट में एक आंख की रोशनी गंवाने के बाद डाॅक्टरों ने पटौदी को क्रिकेट खेलने से मना कर दिया था। मगर इस खिलाड़ी ने हिम्मत नहीं हारी और दोबारा खेलना शुरु कर दिया। रोशनी खोने के बाद पटौदी ने पहला मैच बोर्ड प्रेसीडेंट इलेवन बनाम एमसीसी के बीच खेला था। नवंबर 1961 में हैदराबाद में खेले गए इस मुकाबले में पटौदी ने 70 रन बनाए, हालांकि बीच-बीच में उन्हें आंख में लेंस लगाकर बल्लेबाजी करनी पड़ी। बैटिंग करते हुए उन्हें दो गेंदें दिखाई देती थी।इस टि्रक के जरिए एक आंख से खेला क्रिकेटबैटिंग के दौरान पटौदी को जब-जब दो गेंदें दिखाई देने लगी तो, उन्होंने फैसला किया वह उस गेंद पर शाॅट मारेंगे जो अंदर की तरफ नजर आती है। इस टि्रक को उन्होंने बहुत जल्दी अपना लिया। यही नहीं बल्लेबाजी के दौरान वह अपनी टोपी से दाईं आंख को छुपा लेते थे जिससे उन्हें एक ही गेंद दिखाई दे। इस ट्रिक से उन्हें काफी सफलता मिली और फिर पूरा इंटरनेशनल क्रिकेट उन्होंने ऐसे ही खेला।पांच महीने बाद किया टेस्ट डेब्यू
एक्सीडेंट होने के पांच महीने बाद नवाब पटौदी ने भारत के लिए पहला टेस्ट खेला। यह मैच इंग्लैंड के खिलाफ दिल्ली में खेला गया था। एक आंख खोने के बावजूद पटौदी ने हिम्मत नहीं हारी और इंटरनेशनल क्रिकेट में कदम रखा। उस वक्त वेस्टइंडीज के तेज गेंदबाजों से दुनियाभर के गेंदबाज खौफ खाते थे। इस डर को भुलाकर पटौदी ने एक आंख से उनकी गेंदों पर चौके-छक्के लगाए। पटौदी ने अपने टेस्ट करियर में 34.91 की औसत से कुल 2793 रन बनाए। इस दौरान उनके बल्ले से 6 शतक और 16 अर्धशतक निकले। टेस्ट क्रिकेट में उनका हाईएस्ट स्कोर नाबाद 203 रन है।पटौदी ने दिलाई भारत को विदेश में पहली जीतसाल 1967 में नवाब पटौदी की कप्तानी में भारत को विदेशी धरती पर पहली जीत मिली थी। भारत ने यह मैच न्यूजीलैंड के खिलाफ जीता था। क्रिकइन्फो पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, पटौदी ने भारत के लिए 46 टेस्ट खेले जिनमें 40 टेस्टों में उन्होंने भारत की कप्तानी की। इसमें से सिर्फ 9 टेस्टों में उन्होंने जीत दर्ज की और 19 बार वो हारे।

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari