RANCHI : क्भ् नवंबर द्वार ख्000 को जब झारखंड बना तो उम्मीद जगी कि यह राज्य विकास के मामले में मील का पत्थर साबित होगा.अपनी सरकार होगी तो यहां के जनता की आशाएं पूरी होंगी। युवाओं को रोजगार मिलेगा और शहरों का विस्तार होगा, पर पिछले क्ब् सालों के इतिहास पर नजर डालते हैं तो यह राज्य कई मायनों में काफी पीछे चल रहा है। इन सालों में लोगों की न तो उम्मीदें पूरी हुई और न ही जिस मकसद से यह राज्य बना था, वह पूरा हो सका है। विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। अब देखना है कि बननेवाली नई सरकार झारखंड के विकास और अधूरी योजनाओं को पूरा करने के लिए कौन से कदम उठाती है, लेकिन इसके पहले आईए जानते हैं कि किन मामलों में झारखंड की ख्वाहिशें अधूरी है।

नहीं बस सकी नई राजधानी

झारखंड के साथ ही छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ था। इन दोनों राज्यों में जहां नई राजधानी बस चुकी है, वहीं झारखंड की नई राजधानी बसाने का काम अबतक शुरू नहीं हो सका है। राज्य के पहले मुख्यमंत्री रहे बाबूलाल मरांडी के कार्यकाल में नई राजधानी बसाने का प्रस्ताव था, लेकिन राज्य को 9 मुख्यमंत्री मिल चुके हैं, पर नई राजधानी का प्रस्ताव अबतक फाइलों की ही धूल फांक रहा है। इसके उलट नई राजधानी की योजना व डीपीआर बनाने के नाम पर करोड़ों रुपए का बंदरबांट हो गया। यहां ग्रेटर रांची अथॉरिटी बनाई गई है। अथॉरिटी पर हर महीने लाखों रुपए खर्च हो रहे हैं, पर नई राजधानी बसाने का काम एक इंच भी आगे नहीं बढ़ा है।

किराए का विधानसभा व सचिवालय

झारखंड का न तो अपना विधानसभा भवन है और न ही सचिवालय। पिछले क्ब् सालों से दोनों ही किराए की बिल्डिंग में चल रहे हैं। एचईसी के रसियन हॉस्टल में जहां विधानसभा है, वहीं प्रोजेक्ट बिल्डिंग में सचिवालय है। इसके अलावा भी कई सरकारी दफ्तर किराए के भवन में चल रहे हैं। इन्हें अपनी बिल्डिंग नसीब नहीं हो सकी है। इन भवनों के किराए में अबतक करोड़ों रुपए का भुगतान हो चुका है, पर सरकार का ध्यान सचिवालय और विधानसभा बनाने की ओर नहीं है। चाहे विधानसभा की सालगिरह हो या राज्य स्थापना दिवस, सरकार नई राजधानी, सचिवालय और विधानसभा बनाने का काम जल्द शुरू होने का आश्वासन तो देती है, पर यह हकीकत में नहीं बदल सकी है। गौरतलब है कि कुछ महीने पहले सीएम हेमंत सोरेन ने कूटे गांव में विधानसभा भवन का शिलान्यास किया था, पर नेताओं की राजनीति और स्थानीय ग्रामीणों के विरोध के कारण कंस्ट्रक्शन शुरू नहीं हो सका है।

आईआईएम का अपना कैंपस नहीं

आईआईएम रांची के चार साल हो चुके हैं। ख्0क्0 में यह खुला था, पर अबतक इस इंस्टीट्यूट को अपना कैंपस नहीं मिल सका है। आड्रे हाउस कैंपस के सूचना भवन में आईआईएम चल रहा है, जबकि खेलगांव में हॉस्टल है। ऐसा नहीं है कि आईआईएम के कैंपस के लिए पहल नहीं हो रही है, लेकिन जमीन अधिग्रहण को लेकर हो रहे विवाद से दिक्कतें आ रही हैं। ख्0क्फ् में कांके के चेरी गांव में आईआईएम के न्यू कैंपस के लिए शिलान्यास हुआ था। इस कैंपस का बाउंड्री वॉल तो बना, लेकिन बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन का काम शुरू नहीं हो सका। इसकी वजह ग्रामीणों का विरोध है। ग्रामीणों ने शिलान्यास के शिलापट्ट तक को क्षतिग्रस्त कर दिया है।

राज्य को नहीं मिल सकी है िस्थर सरकार

यह झारखंड का दुर्भाग्य है कि पिछले क्ब् सालों में इस राज्य को एक भी स्थिर सरकार नहीं मिली है। हमेशा ही गठबंधन की सरकार रही है। सरकार बनाने के नाम पर सौदेबाजी होती आ रही है, जिसका खामियाजा यहां की जनता भुगत रही है। राज्य में अबतक नौ मुख्यमंत्री हो चुके हैं, पर इनके सामने सबसे बड़ा चैलेंज सरकार को चलाने का था न कि विकास को गति देने का। इतना ही नहीं, यह राज्य तीन बार राष्ट्रपति शासन को भी झेल चुका है। पिछले क्ब् सालों के दौरान जिस तरह यहां राजनीतिक उठापटक होती आई है, उससे कई महत्वपूर्ण योजनाएं अबतक शुरू नहीं हो सकी हैं।

Posted By: Inextlive