- नजूल, राजकीय आस्थान और राजस्व की जमीन पर हैं कब्जे

- सरकारी जमीन पर रहने वालों की भाषा भी नहीं आती समझ

 

आगरा। मथुरा की तरह आगरा में भी एक नहीं कई जवाहरबाग हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि जवाहरबाग में रहने वाले अपने आपको सत्याग्रही बताते थे, तो यहां पर रहने वालों से प्रशासन ने यह जानने की कभी कोशिश नहीं कि वे लोग कौन हैं। चाहे फिर इन झुग्गी झौपडि़यों में कोई आतंकी ही क्यों न रहते हों। आखिर इन लोगों की खबर पुलिस प्रशासन कब लेगा।

 

मेहताब बाग में रहते हैं बाहरी लोग

मेहताब बाग में वर्षो से बाहरी लोग रहते हैं। जिनकी भाषा स्थानीय लोगों की समझ से बाहर है। आईनेक्स्ट का संवाददाता वहां पर पहुंचा। उसने उनसे बातचीत करनी चाही तो उनकी कोई बात समझ में ही नहीं आई, इससे जाहिर होता है कि वे यहां के रहने वाले नहीं हैं। यह भी हो सकता है कि वे स्थानीय जानबूझकर नहीं बोलना चाहते हैं, जिससे कि उनके बारे में जाना न जा सके। आखिर इनके बारे में पुलिस प्रशासन ने कभी जानने की कोशिश ही नहीं की। क्या करते हैं। आजीविका का क्या साधन है। इस बारे में वे किसी को कुछ भी बताने से बचते हैं। संवाददाता ने उनसे उनके बारे में जानने की काफी कोशिश की, लेकिन उन्होंने कोई जानकारी नहीं दी। यहां पर बड़ी संख्या में बाहरी लोग झुग्गी झोपड़ी पड़ी हुई हैं।

 

कारगिल पेट्रोल पंप के पास जमे हैं लोग

कारगिल पेट्रोल पंप और सिकंदरा ओवर ब्रिज के बीच में आवास विकास की काफी खाली जमीन पड़ी हुई है, जिसमें दर्जनों झुग्गी झौपड़ी डाल कर रह रहे हैं। यहां के लोग मूर्ति बनाने और बेचने का कार्य करते हैं। यहां पर लगातार इन लोगों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो हो रही है। ऐसा नहीं है कि आवास विकास परिषद को इन लोगों के रहने की जानकारी नहीं हो। बावजूद इसके इन लोगों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है।

 

बाईपास रोड पर भी जमे हैं

बाईपास रोड पर भी दर्जनों की संख्या में झुग्गी झोपड़ी बनीं हुई हैं। सवाल ये है कि यहां से गुजरने वाले अधिकारियों को क्या ये लोग दिखाई नहीं देते हैं। क्यों नहीं इन लोगों के विरुद्ध कार्रवाई की जाती है।

 

कई बार खड़ी हो चुकी है मुसीबत

ऐसा नहीं है कि जब जब सरकारी जमीनों पर कब्जा करने वालों को हटाए जाने में आसानी रही हो। इन्हें हटाए जाने में पुलिस प्रशासन के सामने चैलेंज रहा है। बावजूद इसके ऐसे लोगों को जमने से पहले क्यों नहीं हटाया जाता है।

 

बिजलीघर पर दे गया था प्रशासन पसीना

बिजलीघर पर बौद्ध विहार स्टेशन के पास रक्षा संपदा विभाग के भूखंड पर अवैध कब्जा था, जिसे खाली कराए जाने के लिए जिला प्रशासन ने वर्ष 2011 से 2015 तक प्रयास किया, इसके बाद ही फौज की मौजूदगी में इसे खाली कराया जा सका था, इस दौरान बवाल भी हुआ था। इन लोगों ने कलक्ट्रेट में प्रदर्शन भी किया था। आखिर ऐसी नौबत क्यों आने दी जाती है।

 

शहर में कई जगहों पर हैं कब्जे

नजूल, राजस्व और राजकीय आस्थान की सैकड़ों बीघा जमीन पर लोगों के कब्जे हैं। जानकारी में होने के बाद भी इनके विरुद्ध कार्रवाई नहीं की जाती है। जितना समय गुजर जाता है, उतनी ही दिक्कतें, इन्हें कब्जा मुक्त कराए जाने में आतीं हैं। शास्त्रीपुरम, कैंट आवास विकास आदि स्थानों पर सैकड़ों लोग अवैध रूप से रह रहे हैं।

 

417 हैं झुग्गी झोपडि़यां

आगरा में लगातार झुग्गी झोपडि़यों की संख्या बढ़ती जा रही है। करीब बीस पहले रमेशकांत लवानियां मेयर थे, उस दौरान शहर में झुग्गी झोपडि़यों की संख्या 78 थीं, जो कि आज बढ़कर 417 हो गई है।

 

इन्हें नहीं हटाया जा सकता

विचारक राजीव सक्सेना के बताया कि इन झुग्गी झोपडि़यों में रहने वालों को एकदम से नहीं हटाया जा सकता है। नेशनल पॉलिसी के अनुसार इन्हें री-लोकेट करना होगा। तभी हटाया जा सकता है।

Posted By: Inextlive