प्‍यार के धागे से बंधे पति पत्‍नी के रिश्‍ते में जबरदस्‍ती एक ऐसी गांठ है जो रिश्‍ते को मजबूत करने जगह कमजोर कर देती है। मैरिटल रेप भी ऐसी तरह की गांठ है। इन दिनों इस मुद्दे को लेकर हर तर फ चर्चा हो रही है। जहां एक ओर केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी का कहना है कि इस पर कानून मौजूद है वहीं सरकार का कहना है कि वो और सख्‍त कानून लाना चाहती है। कुछ और योजनायें भी हैं जिनसे इस शॉप से मुक्‍ति पाने में मदद मिलेगी।

सख्त कानून की बातें
केंद्र सरकार ने मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में लाने के लिए जल्द ही सख्त कानून बनाने की बात कही है। इस बारे में गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने कहा था कि सरकार लॉ कमीशन की रिपोर्ट का इंतजार कर रही है, ताकि आईपीसी की पुरानी धाराओं को बदला जा सके। उन्होंने ‘मैरिटल रेप के मुद्दे को जटिल बताते हुए कहा कि कानून बनाते समय पारिवारिक और सामाजिक ढांचे को भी ध्यान में रखना होगा। इस बीच उन्होंने महिलाओं के खिलाफ होने वाली क्रूरता से निपटने के लिए आईपीसी की धारा 498-ए के मौजूद होने की बात कही और उसका इस्तेमाल करने को कहा।

अदालत ने रिर्पोट पर उठाया सवाल
वहीं हाईकोर्ट ने इस बात पर सवाल उठाते हुए कहा कि रेप तो रेप है, फिर वह पति करे या कोई और? रिपोर्ट का इंतजार क्यों? इसके जवाब में रिजिजू ने कहा, ‘6 जुलाई 2010 को तत्कालीन गृह मंत्री ने भी इस बारे में लॉ कमीशन से कानून की समीक्षा करने को कहा था, पर समस्या ये है कि कोई भी कानून बनाने के लिए आईपीसी, सीआरपीसी के साथ ही ‘इंडियन एविडेन्स एक्ट’ में भी बड़े बदलाव करने होंगे, इसलिए सुझाव मांगे गए हैं।

कुछ कर रहे हैं विरोध
इस बीच दिल्ली हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा गया है कि आईपीसी के उस प्रावधान को खत्म किया जाए जिसमें कहा गया है कि 15 साल से ज्यादा उम्र की पत्नी के साथ पति द्वारा जबरन संबंध रेप के दायरे में नहीं होगा। मैरिटल रेप के मामले में अगर पत्नी की उम्र 15 साल से ऊपर है तो कानूनी प्रावधान के मुताबिक रेप नहीं माना जाता। इस मामले में एक एनजीओ की ओर से कहा गया है कि मैरिटल रेप के दायरे में पति को नहीं लाया जाना चाहिए। याचिका में कहा गया है कि अगर पति के खिलाफ पत्नी द्वारा रेप का केस किए जाने का प्रावधान हुआ तो इस कानून का दुरुपयोग हो सकता है। ऐसा पहले भी दहेज प्रताड़ना के कानून के साथ हो चुका है। अर्जी में कहा गया है कि डोमेस्टिक रिलेशनशिप में यौन हिंसा को रेप नहीं कहा जा सकता। संबंध से इंकार करना पत्नी का अधिकार है, उसी तरह पति को दाम्पत्य अधिकार हैं। दोनों साथ-साथ हैं और इस तरह मैरिटल रिलेशनशिप चलता है। अगर आपसी समझ ना बने तो पति को रेपिस्ट का दर्जा नहीं दिया जा सकता। याचिका में ये भी कहा गया है कि पश्चिमी देशों पत्नी से जबरन संबंध पर पति खिलाफ केस दर्ज किए जाने का प्रावधान हैं, पर वहां शादी कॉन्ट्रैक्ट है उसकी तुलना भारत से नहीं की जा सकती।

पहले से है कानून
पत्नी के साथ जबरन यौन संबंध पर कानून बनाने के विवाद के बीच केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा है कि इस संबंध में कानून मौजूद है लेकिन महिलाएं उसका इस्तेमाल नहीं करती हैं। अगर कोई महिला अपने पति के साथ यौन संबंध नहीं चाहती है लेकिन उसका पति जबरदस्ती करता है तो इसकी शिकायत की जा सकती है और इस संबंध में कानून मौजूद हैं। घरेलू हिंसा निवारण कानून के तहत जबरन यौन संबंध बनाने की शिकायत की जा सकती है। उन्होंने कहा, ‘ कानून तो हैं और अगर महिलाएं इनका इस्तेमाल करना शुरू करें तो यह अच्छा रहेगा, पर अभी तक तो किसी ने यह कानून इस्तेमाल किया भी नहीं है।’

मैटरीमोनियल साइट्स पर नियंत्रण
इस बीच सरकार की ओर से संकेत मिले हैं कि शादी विवाह कराने वाली साइट्स को भी कुछ नियमों में बांधा जाए। इससे विवाह संबंधों से पूर्व व्यक्ति की सही जानकारी रखना और साझा करना आवश्यक हो जायेगा और ऐसी घटनाओं पर नियंत्रण करना आसान हो सकेगा। साथ ही साइट्स को किसी के बारे में जानकारी साझा करने से पहले अपने क्लाइंटस का डाटा बेस भी तैयार करना होगा। इससे भी व्यक्ति की पृष्ठभूमि जानने में मदद मिलेगी। जैसा कि पुराने दौर में रिश्ता कराने वालों के साथ होता था।

क्या कहते हैं आंकड़े
यूनाइटेड नेशन पॉपुलेशन फंड की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 15 से 49 साल की दो तिहाई शादीशुदा महिलाओं के साथ मारपीट होती है और उनसे जबरन शारीरिक संबंध बनाया जाता है। वहीं इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिसर्च ऑन वुमेन की ओर से जारी 2011 की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि भारत में पांच में से एक पुरुष अपनी पार्टनर या पत्नी को शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर करता है। जबकि राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थय सर्वे भी कहता है कि महिलाएं सबसे ज्यादा पतियों के द्वारा ही यौन हिंसा की शिकार बनती हैं।

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Posted By: Molly Seth