नए विवाह क़ानून से होंगी राहें आसान?
हालांकि इन सिफारिशों को अभी संसद की मंज़ूरी नहीं मिली है, लेकिन इसके नफ़ा-नुकसान को लेकर महिलावादी संगठनों और पुरुषवादी संगठनों के बीच तकरार शुरू हो गई है.महिलावादी संगठनों के मुताबिक एक अच्छा विधेयक है लेकिन महिलाओं को उनका हक़ दिलाने के लिए इस क़ानून की भाषा में और स्पष्टता की ज़रुरत है.दूसरी ओर पुरूषों के संगठन की दलील है कि “अगर लड़की के घर वाले उसे अपनी संपत्ति में हिस्सा नहीं देते हैं, तो इसके लिए हम उस पति को क्यों सज़ा दे. शादी करना क्या एक आदमी के लिए जुर्म है.”लेकिन इस बहस से पहले आइए इस विधेयक के मुख्य प्रावधानों को समझ लें, उसके बाद हम पक्ष और विपक्ष की दलीलों को सामने रखेंगे.पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी
विवाह क़ानून (संशोधन) विधेयक में प्रावधान है कि पति को मिली पैतृक संपत्ति या उसके द्वारा खुद अर्जित संपत्ति में पत्नी की हिस्सेदारी होगी.कैबिनेट ने इस बात को भी मंज़ूरी दी है कि अगर आपसी सहमति से तलाक के लिए पति या पत्नी में से कोई एक पक्ष दोबारा संयुक्त आवेदन दायर नहीं करता है तो अदालत तीन साल के बाद तलाक देने के लिए अपने विवेकाधिकार का इस्तेमाल कर सकती है.
मंत्री समूह की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए कैबिनेट ने फैसला किया है कि तलाक की स्थिति में पत्नी और बच्चों को पति की अचल संपत्ति में हिस्सा मिलेगा.पर यह हिस्सा कितना होगा, इसका फैसला अदालत पर छोड़ा गया है.पति की पैतृक संपत्ति से भी पत्नी और बच्चों को हर्जाना दिया जाएगा. इसके लिए एक नई धारा 13 (एफ) को जोड़ा गया है.राह नहीं आसानकैबिनेट की मंजूरी मिल जाने के बावजूद इस विधेयक की राह आसान नहीं है.सरकार 2010 में इस विधेयक को राज्य सभा में पेश करने के साथ ही इस पर सहमति बनाने के लिए जूझ रही है.यह चौथी बार है जब कैबिनेट ने इस विधेयक को पारित किया है.इसके पहले इस साल अप्रैल में कुछ प्रावधानों पर कैबिनेट में गहरे मतभेद उभरे थे.इसके बाद आम सहमति बनाने के मकसद से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने रक्षा मंत्री एके एंटनी की अगुआई में मंत्री समूह यानी जीओएम का गठन किया था.पक्ष की दलील
आल इंडिया प्रोग्रेसिव वुमन्स एसोसिएशन (एआईपीडब्ल्यूए) की सचिव कविता कृष्णन ने बीबीसी संवाददाता रूपा झा को बताया कि यह एक अच्छा विधेयक है लेकिन महिला को उसका हक़ दिलाने के लिए इस क़ानून की भाषा में और स्पष्टता की ज़रुरत है.उन्होंने कहा कि “इस विधेयक में यह देखना होगा कि किन परिस्थितियों में कौन सी प्रॉपर्टी को बंटवारे के लायक माना जाएगा. यदि इसमें स्पष्टता होगी तभी महिलाओं को तलाक के समय कुछ मिल पाएगा.”उनका कहना था कि इसको लेकर जो हौव्वा बनाया जा रहा है कि महिलाएं पुरुष की प्रापर्टी को चुरा रही हैं, असल सवाल यह है ही नहीं. असल सवाल तो यह है कि सरकार इसी विधेयक में तलाक को ज्यादा आसान बनाने के लिए कदम उठा रही है. यानी अगर कोई चाहे तो एकतरफा तलाक भी मिल सकता है.”कविता कृष्णन अपनी बात को बढ़ाते हुए कहतीं हैं कि “अपने देश में ज्यादातर महिलाएँ पुरूषों पर आश्रित होती हैं, ऐसे में अगर पुरुष तलाक ले लेता है तो महिला के पास कुछ नहीं बचता है. इस संदर्भ में हर्जाने पर चर्चा की जा रही है.”उन्होंने कहा कि इस विधेयक में यह प्रावधान भी किया गया है संपत्ति में हिस्सा जज के विवेकाधिकार से तय होगा. इसलिए ऐसा नहीं है कि महिलाओं को एकतरफा अधिकार दिए जा रहे हैं.उन्होंने बताया, “पति और पत्नी दोनों की स्थिति को देखते हुए महिला को केवल उसकी ज़रूरत का हिस्सा मिलेगा.”
विपक्ष की दलील
वह यह दलील भी देते हैं कि जिस भी देश में प्रापर्टी में हिस्सेदारी का क़ानून आया है वहाँ शादी की दर कम हो गई है. लोगों ने शादी करनी बंद कर दी है. ऐसे में भारत के सामाजिक ताने-बाने पर इस क़ानून का बुरा असर होगा.