- मी-टू के आने के बाद से महिलाओं की लड़ाई हुई आसान

- मनोरंजन और सोच बदलने के लिए हैं फिल्में

- आईआईएम के ताबीर में फिल्म निदेशक अलंकृता और अभिषेक ने रखे विचार

LUCKNOW : मौजूदा समय में कोई भी इंडस्ट्री ऐसी नहीं है जहां पर महिलाओं को पूरी आजादी से काम करने दिया जा रहा हो। यही कारण है कि हर कार्य क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी पुरूषों की तुलना में कम है। अभी तक महिलाओं को न्याय पाने के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ती थी, लेकिन मी-टू एक बड़ा सार्थक कैंपेन साबित हुआ है। इससे महिलाओं को अपनी बात रखने का एक प्लेटफॉर्म मिला है। यह विचार संडे को आईआईएम लखनऊ में ताबीर कार्यक्रम में फिल्म डायरेक्टर अलंकृता श्रीवास्तव ने व्यक्त किए। इस दौरान उनके साथ निदेशक अभिषेक चौबे भी मौजूद रहे।

मी-टू से महिलाओं में आई हिम्मत

अलंकृता ने कहा कि जब से मी-टू मुहिम की शुरूआत हुई है यौन शोषण के मामलों में कुछ कमी आई। अब लोगों को लगता है कि महिलाएं भी अपने साथ होने वाले उत्पीड़न को बड़ी हिम्मत के साथ समाज के सामने रख रही हैं। फिल्मों पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि फिल्म मेकिंग एक पैशन है। इसे इसी नजरिए से देखा जाना चाहिए। फिल्म टाइटल पर उन्होंने कहा ऐसे टाइटल रखने चाहिए जो ऑडियंस को पसंद आए।

फिल्में समस्या के समाधान के लिए नहीं होती- अभिषेक

डायरेक्टर अभिषेक चौबे ने कहा कि मेरी अभी हाल में ही पूर्व प्रधानमंत्री पर एक फिल्म आई है। उस पर लोगों ने मुझे कई तरह के कमेंट भी किए। मैं कहना चाहूंगा कि फिल्मों को किसी उद्देश्य या समस्या का निदान करने का तंत्र न समझें, फिल्म सिर्फ मनोरंजन के लिए हैं। उन्होंने कहा हमारी नई पीढ़ी लैपटॉप को ही सहूलियत भरा मानते हैं। ऐसे में उन्हें ध्यान में रखकर काम करने वाले ही डायरेक्टरों की राह आसान होगी। वक्त बदल रहा है, आने वाला भविष्य इसी ट्रेंड का है। हालांकि इससे सिनेमा पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा लोग किसी भी क्षेत्र में काम कर रहे हों, मगर अपनी भाषा और अपने क्षेत्र के प्रति लगाव हमेशा बनाए रखें।

Posted By: Inextlive