- पुलिस और प्राइवेट मेडिकल कॉलेज मिलकर करते हैं डेड बॉडीज का सौदा

- लावारिस लाशों को बिना पूरी पड़ताल किए ही बेच देते हैं पुलिसकर्मी

LUCKNOW: प्रदेश में लावारिस लाशों की खरीद-फरोख्त का खेल चल रहा है। कोई लावारिस लाश मिलती है तो उसे बिना किसी लिखा-पढ़ी के ही बेच दिया जाता है। न जाने प्रदेश में ऐसे कितने लोग होंगे जो घर से निकले और फिर मेडिकल कॉलेजों में डिसेक्शन के लिए पहुंच गए। जिनका पुलिस में कोई रिकॉर्ड भी नहीं है लेकिन वे गायब हैं।

तीन साल पहले फैजाबाद रोड पर साउथ के एक बड़े अधिकारी का एक्सीडेंट होता है। पुलिस के तेज तर्रार अफसरों ने उसे एक प्राइवेट मेडिकल कॉलेज को चंद रुपयों के लिए बेच दिया। लेकिन, एलआईयू को इसकी भनक लग गई और कुछ ही घंटों में बॉडी कॉलेज से वापस आई और पुलिस ने मॉच्र्युरी पहुंचा दी। मामला हाई प्रोफाइल था। इस कारण बॉडी घरवालों तक पहुंच गई। देर रात का मामला होने के कारण घटना सार्वजनिक नहीं हुई और शायद उस व्यक्ति के घरवालों को भी पता न हुआ होगा कि उसके साथ रात भर में क्या हुआ।

यह तो एक उदाहरण भर था। हर रोज प्रदेश की सड़कों पर लोग एक्सीडेंट के शिकार होते हैं। अगर मामले की जानकारी ज्यादा लोगों तक न पहुंची तो कुछ पुलिसकर्मी यहीं पर खेल कर देते हैं। डेड बॉडी को प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में पहुंचा दिया जाता है। इसके बदले पुलिसवाले भ्0 हजार से लेकर एक लाख रुपए तक वसूल लेते हैं। हर साल सैकड़ों डेड बॉडीज इन मेडिकल कॉलेजों में पहुंचाई जाती हैं।

देर रात आती है वो

हरदोई रोड स्थित एक बड़े मेडिकल कॉलेज की सफेद रंग की डाला गाड़ी कभी-कभी देर रात में क्क् से क्ख् बजे के बीच मेडिकल यूनिवर्सिटी की मॉच्र्युरी पहुंचती है तो कभी कहीं और। ड्राइवर शांति से उतर कर बॉडी लादता है और रुपयों की गड्डी पकड़ा कर चला जाता है। पुलिस भी इस बारे में अच्छे से जानती है। इसलिए कहीं भी गाड़ी को रोका नहीं जाता।

प्रदेश में ब्0 प्राइवेट मेडिकल कॉलेज

प्रदेश में मेडिकल और डेंटल कॉलेजों को मिलाकर कुल ब्0 कॉलेज हैं। इसमें ख्भ् डेंटल और क्भ् प्राइवेट मेडिकल कॉलेज हैं। हर जगह क्00 या क्भ्0 सीटें हैं। इस हिसाब से हर साल भ्00 से ज्यादा डेड बॉडी इन कॉलेजों को पढ़ाने के लिए चाहिए होती हैं। अब यह बहुत बड़ा प्रश्न है कि इतनी संख्या में ये मेडिकल कॉलेज बॉडी लाते कहां से हैं। एक मेडिकल कॉलेज के एक अधिकारी ने बताया कि डेंटल में पढ़ाने की जरुरत नहीं जबकि मेडिकल काउंसिल और डेंटल काउंसिल की गाइडलाइन्स के अनुसार बिना डेड बॉडी पर डिसेक्शन किए एमबीबीएस और बीडीएस की डिग्री ही नहीं दी जा सकती।

डीजीएमई के पास नहीं कोई जानकारी

आई नेक्स्ट ने डायरेक्टर जनरल चिकित्सा शिक्षा डॉ। केके गुप्ता से इस बारे में बात की तो उन्होंने बताया कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेज इस सम्बंध में सरकार को कोई जानकारी मुहैया नहीं कराते हैं। एमसीआई और डीसीआई से हरी झंडी मिलने के बाद प्रदेश सरकार का इन कॉलेजों पर कोई नियंत्रण नहीं रह जाता। या यूं कहें कि प्रदेश सरकार रखना ही नहीं चाहती।

पुलिस एक्ट के मुताबिक जब भी कोई लावारिस लाश मिलती है और उसका क्लेम करने के लिए नहीं आता है तो बॉडी का पोस्टमॉर्टम कराने के बाद कॉलेजेज को सौंपा जा सकता है। लेकिन पोस्ट मार्टम के बाद कोई भी कॉलेज बॉडी नहीं लेते हैं। जहां तक लाश को बेचने की बात है तो ऐसा कोई मामला संज्ञान में नहीं आया है।

अमरेन्द्र सेंगर, आईजी लॉ एंड ऑर्डर

एक बॉडी पर 8 से क्म् स्टूडेंट तक डिसेक्शन करते हैं। इसके बाद वह इस लायक नहीं बचती की स्टूडेंट उसपर डिसेक्शन करके कुछ सीख सकें। पोस्ट मार्टम के बाद बॉडी डिसेक्शन के लायक नहीं बचती। लावारिस बॉडी पीएम के बाद हमें मिलती है तो उसकी बोन्स वगैरा पढ़ाने के रख लेते हैं। डिसेक्शन के लिए नहीं।

डॉ। एके श्रीवास्तव, केजीएमयू

डेंटल के स्टूडेंट्स को हेड और नेक की एनॉटमी समझनी बहुत जरुरी है। इसके लिए फ‌र्स्ट इयर में ही एनॉटमी पढ़ाई जाती है। अगर स्टूडेंट ने डिसेक्शन नहीं किया तो वह दांतों की सर्जरी कैसे करेगा। हर डेंटल कॉलेज में एनॉटमी पढ़ाया जाना जरुरी है।

प्रो। एपी टिक्कू

डीन डेंटल, केजीएमयू।

Posted By: Inextlive