- 16 साल बाद भी सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी

- सीएम त्रिवेंद्र रावत ने अपने पास ही रखा है स्वास्थ्य विभाग

DEHRADUN: उत्तराखंड प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं को पटरी पर लाने की सीएम त्रिवेंद्र रावत की सबसे बड़ी चुनौती है। प्रदेश में क्म् साल बाद भी आज अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी के साथ-साथ मूलभूत सुविधाएं नहीं है। ऐसे में उनके सामने स्वास्थ्य महकमे को चुस्त दुरस्त करने की बड़ी जिम्मेदारी है। आपको बता दें कि सीएम त्रिवेंद्र रावत ने स्वास्थ्य विभाग का जिम्मा अपने पास ही रखा है।

जरूरत ख्700 की, डॉक्टर क्क्00

पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में शिक्षा, स्वास्थ्य के हालात किसी से छिपे नहीं हैं। शहरों ही नहीं दूर-दराज क्षेत्रों में डॉक्टरों की भारी कमी की वजह से स्वास्थ्य सुविधाएं आम लोगों को नहीं मिल पाती हैं। क्म् सालों बाद भी प्रदेश में सरकारी अस्पतालों के हालात जस के तस बने हुए हैं। डीजी ऑफिस से मिली जानकारी के अनुसार प्रदेश में ख्700 डॉक्टरों की आवश्यकता है, जबकि वर्तमान में क्क्00 डॉक्टर कार्यरत हैं। जो भ्0 फीसद से भी कम है। इतना ही नहीं स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की भी भारी कमी है। ऐसे में आप अंदाजा लगा सकते हैं, कि उत्तराखंड राज्य के अस्पताल भगवान भरोसे ही चल रहे हैं।

राजधानी में जिला अस्पताल तक नहीं

प्रदेश की राजधानी देहरादून में जिला चिकित्सालय के रूप में जनवरी ख्0क्म् के बाद से कोई अस्पताल डेवलप नहीं किया गया है। दून अस्पताल को मेडिकल कॉलेज का अस्पताल बनाने के बाद से अब तक किसी अस्पताल को जिला अस्पताल बनाने की दिशा में काम नहीं हो पाया है। आसपास के क्षेत्रों में कई बार अस्पतालों को जिला चिकित्सालय बनाने के लिए कोशिश तो हुई लेकिन जरूरी संसाधन नहीं जुटा पाए। जिससे राजधानी में मरीजों के लिए दून अस्पताल ही एक मात्र ऑप्शन बना हुआ है। सरकारी अस्पतालों के हालात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि शहर के पास बने सरकारी प्रेमनगर अस्पताल में बिजली के साथ ही अन्य मूलभूत सुविधाओं की कमी है। जो सीएम त्रिवेंद्र रावत ने सीएम पद संभालते ही निरीक्षण के दौरान खुद भी पाया है। ऐसे में सीएम के सामने स्वास्थ्य मंत्री के तौर पर भी स्वास्थ्य सुविधाओं को सुधारने का चैलेंज भी है।

Posted By: Inextlive