Dehradun: मेरा बचपन और मेरी साइकिल मैं कभी नहीं भूल पाया. गांव से लेकर शहर के रास्तों तक मैंने साइकिल को बहुत एंज्वॉय किया है. 1982 की बात है. पापा से बहुत मिन्नत करने के बाद मुझे सत्तर रुपए में साइकिल खरीद कर दी गई. उस दिन को मैं भूल नहीं सकता. यूं कहूं कि उस दिन पापा ने मुझे साइकिल नहीं बल्कि ऐसा लगा कि हवाई जहाज खरीद कर दे दिया हो. साइकिल से चलने के दौरान बहुत ही प्राउड फील होता था. आज मुझे साइकिल के पुराने दिन याद आ गए.


साइकिल को खूब सजाया पापा से बड़ी मिन्नतों के बाद मिली साइकिल को मैंने दुल्हन की तरह सजा कर रखा। आज भी मुझे याद है कि मैंने उसके हैंडिल में दो सुनहरे रंग की लटकन लगाई थी। फिर दोस्तों के साथ घूमने में दिक्कत होती थी तो उसमें पीछे की तरफ कैरियर लगाया। हम तीन दोस्त पूरे दिन उस साइकिल में घूमते थे। फिर कुछ दिन बाद उसमें टोकरी की कमी महसूस हुई तो उसमें एक टोकरी लगाई और खाने-पीने की चीजें रखकर आराम से पूरे दिन मस्ती करते थे। आई नेक्स्ट को बहुत शुभकामनाएं
आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में लोग सेहत पर तो ध्यान देने के लिए जिम में जाकर पैसे खर्च कर कसरत करना ज्यादा पसंद करते हैं। जबकि पर डे अगर कुछ टाइम साइकलिंग ही कर लें तो जिम जाने की जरूरत ही नहीं है। आज मेरे पास कई कारें हैं, लेकिन मैंने जो टाइम साइकिल पर गुजारा है वह कभी न भूलने वाला है और वैसे भी गाडिय़ां तो सिर्फ चलने के लिए होती हैं, मजा तो साइकिल पर ही आता है। आई नेक्स्ट द्वारा कराए जा रहे बाइकॉथन के लिए ढेर सारी बधाई और शुभकामनाएं।  (दलेर मेहंदी से मोबाइल पर हुई बातचीत के अंश)Report By : ravi.pal@inext.co.in

Posted By: Inextlive