ममता बनर्जी और मेसी में क्या समानता है? जवाब है कुछ नहीं सिवाय इसके कि दोनों के नाम ‘म’ से शुरू होते हैं. लेकिन यही दोनों नाम इस साल पश्चिम बंगाल के सबसे बड़े त्योहार दुर्गापूजा में सजावट की सबसे बड़ी थीम बन कर उभरे हैं.

‘म’ अक्षर से शुरू होने वाले इन दो नामों ने इस साल बंगाल में सबसे ज़्यादा सुर्खियां बटोरी हैं। हाल के वर्षों में राज्य में पारंपरिक दुर्गापूजा की जगह अब थीम-आधारित पूजा का चलन तेजी से बढ़ा है। इसके तहत पूजा पंडालों में पूरे साल के दौरान घटी घटनाओं को बिजली की सजावट से उकेरा जाता है।

इस काम में हुगली ज़िले के चंदननगर के बिजली कलाकारों का कोई सानी नहीं है। इस बार ज़्यादातर पंडालों में या तो ममता के राजनीतिक सफ़र का चित्रण किया जाएगा या फिर मेसी के कोलकाता दौरे का।

ममता बनर्जी ने बीती मई में हुए विधानसभा चुनावों में भारी जीत हासिल करते हुए वाममोर्चा के साढ़े तीन दशक लंबे शासन का अंत किया था।

वर्ष 2007 में सिंगुर की ज़मीन के अधिग्रहण के खिलाफ़ ममता के 26 दिनों तक चले अनशन ने इस राजनीतिक बदलाव की नींव रखी थी। इस बदलाव ने राज्य ही नहीं बल्कि विदेशों तक में सुर्खियां बटोरी थी। इसलिए अबकी कई पंडालों में उस अनशन का सजीव चित्रण किया जाएगा।

इसी तरह इस महीने की शुरूआत में अर्जेंटीना के स्टार फुटबॉलर लियोनेल मेसी वेनेजु़एला के साथ एक मैत्री मैच खेलने जब कोलकाता आए तो उनका जादू बंगाल के लोगों के सिर चढ़ कर बोलने लगा था।

मेसी-ममता
इस बार पूजा के दौरान विभिन्न पंडालों में बिजली की सजावट के ज़रिए मेसी के जादू को दिखाया जाएगा। कुछ पंडालों में मैच के दौरान जर्सी उतार कर दर्शकों का अभिवादन करते मेसी नजर आएंगे.लंबे अरसे बाद भारत को क्रिकेट विश्वकप जिताने वाले कप्तान महेंद्र सिंह धोनी भी अबकी बिजली की सजावट की प्रमुख थीम बन गए हैं।

यह संयोग ही है कि उनका नाम भी ‘म’ से ही शुरू होता है। कुछ पंडालों में जीत के उस दुर्लभ क्षण को सजीव बनाने की तैयारी चल रही है। लेकिन इन तीनों में सबसे ज़्यादा ज़ोर राजनीतिक मुद्दों पर ही है।

सत्ता में आने और राज्य की मुख्यमंत्री बनने के बाद अपने कामकाज के तरीके और सादगी भरी जीवनशैली की वजह से ममता बनर्जी अब मूर्तिकारों और आयोजकों की पसंदीदा थीम हैं।

बहुचर्चित मूर्तिकार सनातन रूद्र पाल बताते हैं, "हुगली ज़िले की एक पूजा समिति ने दीदी के रंग-रूप वाली प्रतिमा बनाने का ऑडर्र दिया है। कई अन्य समितियां राजनीतिक बदलाव को ध्यान में रखते हुए पूजा आयोजित कर रही हैं.”

चंदननगर के कलाकार बिजली की सजावट की थीम पर पूजा के महीनों पहले से काम शुरू कर देते हैं। हुगली के तट पर बसा चंदननगर बिजली की रोशनी से साज-सज्जा के मामले में पूरे देश में मशहूर हैं। यह कहना ज़्यादा सही होगा कि यह छोटा-सा शहर प्रकाश की सजावट का पर्याय बन गया है।

ग़ज़ब की सजावट

चंदननगर में पांच हज़ार से ज़्यादा ऐसे बिजली कारीगर हैं जो दुनिया की किसी भी घटना और जगह को बिजली की सजावट के जरिए सजीव बनाने में सक्षम हैं। हुगली ज़िले में इनकी तादाद चालीस हज़ार से ज़्यादा है। पूजा के मौके पर इन कारीगरों का हुनर देखने को मिलता है। इस साल उनमें से ज़्यादातर ने राजनीतिक थीम का चयन किया है।

एक कलाकार रमेश दास कहते हैं, “ हमने मई से ही राज्य की सत्ता में आए बदलाव की थीम पर काम शुरू किया था। भारत की विश्वकप जीत भी हमारी सूची में थी। लेकिन मेसी के दौरे को लेकर महानगर में उमड़ी दीवानगी के बाद आयोजकों ने हमसे इस विषय पर भी काम करने को कहा। समय कम होने के बावजूद कई लोग इस थीम पर दिन-रात काम करने में जुटे हैं.”

महानगर के कई पंडालों में तो बिजली की सजावट का बजट लाखों में होता है। तमाम पंडालों में यह काम इन कारीगरों के ही जिम्मे होता है। कारीगर परेश पाल कहते हैं, “विभिन्न घटनाओं और विश्वप्रसिद्ध इमारतों को बिजली के छोटे-छोटे रंगीन बल्बों के जरिए जीवंत बनाने का काम काफी मेहनत भरा है। इसके लिए लंबी तैयारी की जरूरत पड़ती है.”

एक कारीगर शुभेंदु पाल बताते हैं, “अब तकनीक की सहायता से बेहतर काम करने में काफी मदद मिल जाती है। पहले सजावट का जो खाका हाथ से कागज़ और पेंसिल ज़रिए बनाया जाता था, वही अब कंप्यूटरों के ज़रिए और सटीक बन जाता है.” पूजा के आयोजकों और इन कलाकारों की तैयारियों से साफ़ है कि इस साल पूजा भी ममता और मेसीमय होगी।

Posted By: Inextlive