Mirza Ghalib Death Anniversary: पंडित हर गोपाल तफ्ता को मानते थे अपना बेटा
कानपुर। Mirza Ghalib Death Anniversary : आज मशहूर उर्दू शायर मिर्जा गालिब का 151वीं पुण्यतिथि है। गालिब का नाम पूरे भारत में शुमार है, देश में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो गालिब को नहीं जानता हो। गालिब के शोहरत के पीछे दो खास वजह हैं, पहला कारण उनकी मोहब्बत भरी शायरी, उनका चंचल स्वभाव, लतीफे बाजी और कटाक्ष करने की आदत है, इसके अलावा उनके पॉपुलर होने का दूसरा कारण उनके द्वारा लिखे गए खत हैं। कुछ ही लोग यह जानते होंगे कि मिर्जा गालिब ने अपने शिष्यों और मित्रों को जो पत्र लिखे थे, वह अब उर्दू साहित्य की बहुत बड़ी धरोहर का दर्जा प्राप्त कर चुके हैं।
लिखे गए पत्र से छपी दो किताबेंगालिब दुनिया के एक ही ऐसे शायर हैं जिनके लिखे गए पत्र इतने पॉपुलर हुए कि उनके जीवन में ही उनके पत्रों के दो संकलन छप गए थे। उनके पत्रों के एक संकलन का नाम ऊद ए हिंदी (भारत की खुशबु) और दूसरे संकलन का नाम उर्दू ए मोअल्ला (उच्च उर्दू) है। आज भी भारत में इन दोनों किताबों की बिक्री खूब होती है। माना जाता है कि इन्हीं किताबों के जरिए गालिब के अंदर छुपे हुए एक अनोखे इंसान को पहचाना जाता है। उनके पत्रों पर आधारित इन्हीं किताबों से पता चला कि वह अपने एक शिष्य पंडित हर गोपाल तफ्ता से इतना प्यार करते थे कि उनको वह अपना बेटा कहने लगे थे।
गालिब ने तफ्ता को लिखे 164 पत्रगालिब की अपनी कोई संतान जिंदा नहीं बची थी शायद यही कारण रहा होगा कि पंडित हर गोपाल तफ्ता को उन्होंने बेटे से बढ़कर चाहा होगा। बता दें कि गालिब दिल्ली में रहते थे और पंडित हर गोपाल तफ्ता दिल्ली से कुछ दूर स्थित सिकंदराबाद में रहते थे। गालिब ने सबसे ज्यादा (164) पत्र भी तफ्ता के नाम ही लिखे और हर गोपाल तफ्ता को अपने परिवार का सदस्य बनाने के लिए उन्होंने उनको अपना नाम भी दिया और अपने पत्रों में व मुलाकातों में उनको &मर्जा तफ्ता&य कहकर संबोधित करते थे। उन्होंने बार-बार तफ्ता से अपने प्रेम को दोहराया है। एक बार एक पत्र में गालिब ने लिखा, 'आओ मिर्जा तफ्ता मेरे गले लग जाओ, बैठो और मेरी हकीकत सुनो।' वहीं, एक अन्य पत्र में लिखा, &मेरी जान क्या समझे हो सब मखलूकात (सारे प्राणी) तफ्ता और गालिब के जैसे क्यों बन जाएंगे।'तफ्ता भी करते थे गालिब से खूब मोहब्बतएक पत्र में गालिब तफ्ता को लिखते हैं, 'छोटा गालिब है तू मेरी जान मेरे बाद क्या करोगे मैं तो चिरागे सुबह दम (बुझता हुआ दीपक) और आफताबे सरे कोह (पहाड़ के पीछे छुपता जा रहा सूरज) हूं।' गालिब की किताबें छपवाने में हर गोपाल का बड़ा योगदान रहता था और वह अकसर पैसों से भी उनकी मदद करते रहते थे। गालिब से हर गोपाल भी बहुत मोहब्बत करते थे। हालांकि दोनों के उम्र में ज्यादा फर्क नहीं था फिर भी हर गोपाल तफ्ता गालिब को पिता जैसा मानते थे। तफ्ता भी एक बेटे की तरह गालिब के पांव दाबने पर गर्व करते थे। एक बार उनके पांव दाबने के बाद हर गोपाल तफ्ता ने कहा पैर दाबने की उजरत (प्रश्रमिक) तो दीजिए। गालिब ने हंसकर कहां तुमने मेरे पांव दाबे मैंने तुम्हारे पैसे दाब लिए हिसाब बराबर। यह गालिब की तफ्ता से मोहब्बत का ही नतीजा है कि पंडित हर गोपाल तफ्ता उर्दू साहित्य में एक ऐसा नाम बन गए हैं कि जिनको जाने बिना उर्दू का कोई विद्यार्थी आगे नहीं बढ़ सकता।