50 साल हो गए जब 1965 में नंदा देवी की चोटी पर एक न्‍यूक्‍लियर पावर्ड सेंसिंग डिवाइस इंसटाल करने के लिए कुछ प्‍लूटोनियम ले जाया गया और किसी दुर्घटना के चलते उसे लेकर जाने वाला अमरिकी सुरक्षा उजेंसी सीआईए और इंडियन इंटेलिजेंस ब्‍यूरो आईबी का संयुक्‍त दल उसे वहां छोड़ कर वापस आ गया.


तबसे लेकर अब तक ये पता नहीं है कि वो प्लूटोनियम है कहां. इसको लेकर रहस्य बरकार है इसके साथ ही रेडियोएक्टिव प्लूटोनियम के चलते विकिरण का खतरा भी अभी बरकार है. प्लूटोनियम कैप्सूल को लेकर जाने वाले दल में शामिल रहे मनकोहली का कहना है कि जब वो प्लूटोनियम लेकर जा रहे थे तो उनको अंदाजा नहीं था कि ये कितना खतरनाक हो सकता है. उन्हें उसके गायब होने के बाद ही पता चला कि ये लाखों हिंदुस्तानियों के लिए खतरा बन चुका है.


वैसे कोहली ये भी कहते हैं कि अब ये खतरा काफी कम है. उनके ये दावा करने पीछे कई एक्सपर्टस की राय और स्टडी है. हालाकि वे मानते हैं कि प्लूटोनियम अब भी पहाड़ पर बर्फ की सतह के नीचे दबा होगा और गर्म भी होगा जिससे उसके आसपास बर्फ पिघल रही होगी. लेकिन उन्होंने दावा किया कि रेडीयेशन का खतरा नहीं है. वैसे जब 2008 में एक अमेरीकी लेखक पीटर टाकोडा ने प्लूटोनियम गायब होने की जगह से निकल रही जल धारा से पानी और सिल्ट लेकर एक अमेरिकन लैब में टैस्ट कराया तो एक रिर्पोट में प्लूटोनियम के ना होने की बात कही गयी और दूसरे में कहा गया कि प्लूटोनियम मौजूद है.

वैसे इस इंसीडेंट पर किताबे तो लिखी जा चुकी हैं पर अब हॉलिवुड के फिल्ममेकर्स इस पर फिल्म बनाने की भी प्लानिंग कर रहे हैं. इंटेलिजेंस के इरादे से इंस्टाल की जा रही न्यूक्लियर डिवाइस के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले प्लूटोनियम के गायब होने की कहानी पर बनने वाली इस फिल्म की पूरी स्क्रिप्ट लिख्री जा चुकी है और जल्दी ही इसकी शूटिंग स्टार्ट होगी.

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Posted By: Molly Seth