RANCHI: राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश ने कहा है कि बेहतर झारखंड तभी बनेगा जब विधायिका प्रभावी होगी। विधायिका तभी प्रभावी बनेगी जब विधायक प्रभावी होंगे। उप सभापति बुधवार को विधानसभा सचिवालय द्वारा नवनिर्वाचित विधायकों के लिए प्रोजेक्ट भवन सभागार में आयोजित दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में 'विधायिका और विधायक के समक्ष चुनौतियां' विषय पर अपना विचार व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हम (सांसद, विधायक) अपनी जवाबदेही को निभा नहीं पाते और कहते हैं कि विधायिका कमजोर हो रही है। बताया गया कि कुल 53 विधायकों ने ट्रेनिंग प्रोग्राम का लाभ उठाया। हालांकि, दूसरे दिन विधायकों की उपस्थिति पहले दिन की अपेक्षा कम रही।

समय पर बनाएं जरूरी कानून

उपसभापति ने कहा कि सांसदों, विधायकों का सबसे महत्वपूर्ण काम जरूरी कानून समय पर बनाना है। लेकिन जो कानून दस साल पूर्व बनाए जाने थे वे आज बन रहे हैं। उन्होंने कई ऐसे महत्वपूर्ण कानूनों का उदाहरण देते हुए कहा कि अब जब सर्वोच्च न्यायालय कानून बनाने का आदेश देता है तो कहते हैं न्यायपालिका हस्तक्षेप कर रही है। उन्होंने नव निर्वाचित विधायकों को हमेशा सीखने का प्रयास करने, मैं सब जानता हूं कि प्रवृत्ति खत्म करने तथा सदन के अंदर बहस में अपनी पूरी भागीदारी निभाने का सुझाव देते हुए कहा कि तभी वे प्रभावी विधायक बनकर सरकार को जवाबदेह बना सकते हैं। कहा, झारखंड नया करवट लेगा तो इसमें निर्वाचित विधायकों की ही बड़ी भूमिका होगी। उन्होंने वित्तीय अनुशासन में भी विधायकों की बड़ी भूमिका बताते हुए कहा कि जबतक वे पूरी जानकारी नहीं रखेंगे तबतक बजट पर सरकार को जवाबदेह नहीं बना सकते। इस अवसर पर स्पीकर रवींद्रनाथ महतो, पूर्व मंत्री सीपी सिंह, कई मंत्री व विधायक, लोकसभा के पूर्व महासचिव जीसी मल्होत्रा आदि मौजूद थे।

जयपाल सिंह मुंडा के नाम पर खुले ट्रेनिंग सेंटर

राज्यसभा के उपसभापति ने लोकसभा की तरह झारखंड में भी विधायकों के प्रशिक्षण के लिए प्रशिक्षण केंद्र खोलने की वकालत की। कहा, अच्छा होगा संविधान बनाने में अपनी भूमिका निभानेवाले जयपाल सिंह मुंडा के नाम पर यह प्रशिक्षण केंद्र हो।

सदन की कार्यवाही में भाग ले सकते हैं महाधिवक्ता

प्रशिक्षण कार्यक्रम के अंतिम दिन राज्यसभा के पूर्व अपर सचिव सह एनके सिंह व पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च में लेजिस्लेटिव कार्यो के संचालक चक्षु राय ने समितियों की भूमिका पर प्रकाश डाला। एक सवाल पर उन्होंने जानकारी दी कि सदन की कार्यवाही में महाधिवक्ता भाग ले सकते हैं, लेकिन वे वोट नहीं दे सकते। लोकसभा में ऐसा तीन बार हुआ है जब महाधिवक्ता को सदन में आकर किसी विषय पर अपनी बात रखनी पड़ी है। झारखंड विधानसभा में भी एक बार तत्कालीन महाधिवक्ता अनिल सिन्हा को सदन की कार्यवाही में बुलाया गया था हालांकि उस समय उनसे कोई मंतव्य नहीं लिया गया था।

Posted By: Inextlive