नहीं आए तो क्या हर्ज, कॉस्ट से ज्यादा है दोबारा पाने का खर्च
-ट्रेन और प्लेटफॉर्म पर चोरी मोबाइल बरामद होने के बाद भी लेने नहीं आते पैसेंजर्स
- ज्यादातर दूसरे शहरों के होते हैं पीडि़त, कोर्ट की सुनवाई और फीस खर्च पड़ रहा भारी - पुलिस का मानना, मिस यूज होने पर फंसने के डर से दर्ज कराते हैं रिपोर्टबरेली : ट्रेनों में मोबाइल चोरी की घटनाएं काफी बढ़ गई हैं। ऐसे में शिकायत आने के बाद जीआरपी सक्रियता दिखाती है। लेकिन मोबाइल मिलने के बाद पीडि़त उसे लेने नहीं आते हैं। यह हम नहीं कह रहे बल्कि जनवरी से लेकर अब तक का रिकॉर्ड बताता है। जंक्शन स्थित जीआरपी थाना में पिछले नौ महीने में 80 मोबाइल चोरी के मामले आए, जिसमें जीआरपी ने 33 मोबाइल बरामद भी किए। लेकिन हैरत की बात है कि चोरी की रिपोर्ट दर्ज कराने वालों में से एक भी व्यक्ति मोबाइल लेने आया। ऐसे केस में जीआरपी के लिए भी मोबाइल सिरदर्द बना हुआ है।
फंसने के डर से करते रिपोर्टमोबाइल पाने के प्रक्रिया थोड़ी टफ है, इसलिए लोग बीच से ही इसे छोड़ देते हैं। हालांकि वह शिकायत सिर्फ इसलिए कराते हैं ताकि मोबाइल का मिस यूज होने पर वे फंस न जाएं। वहीं जीआरपी अधिकारी का कहना है कि मोबाइल की कीमत से ज्यादा उनका खर्च आ जाता है। इस वजह से भी लोग लेने नहीं आते हैं। कई मामलों में यह भी देखा गया है कि केस दर्ज कराने वाले ज्यादातर लोग मेरठ, दिल्ली, लखनऊ और बिहार से हैं।
सिरदर्द बने मोबाइल जीआरपी के लिए मोबाइल चोरी और फिर बरामद करने के बाद उसे सुरक्षित रखना सिरदर्द बन गया है। क्योंकि पहले तो लोग केस दर्ज कराते हैं फिर उसे लेने के लिए नहीं आते हैं, जबकि जीआरपी के पास बड़े लॉकर नहीं हैं। इस कारण बरामद होने वाले सामान को प्रशासन के लॉकर में भेजना पड़ता है। बिल न होने से बचते लोग आमतौर पर चोरी का केस दर्ज कराते टाइम लोग यह दावा करते हैं कि उनके पास मोबाइल खरीदने की बिल है। लेकिन जब मोबाइल बरामद हो जाता है। तब उन्हें बिल दिखाना जरूरी होता है। इसलिए कई बार वे बिल होने पर मोबाइल को छोड़ देते हैं। क्योंकि ऐसे में क्लेम करने पर वे फंस सकते हैं। पांच महीने ही दिखी सक्रियताजनवरी से लेकर मई तक मोबाइल चोरी की घटनाएं ज्यादा हुईं। इन 5 महीनों में जीआरपी ने 66 मामले मोबाइल चोरी के दर्ज किए। जिसमें 31 मोबाइल बरामद भी कर लिए। लेकिन इसके बाद सितंबर तक जीआरपी के रिकॉर्ड में मोबाइल चोरी के 14 केस दर्ज हुए। जिसमें सिर्फ दो ही मोबाइल बरामद हुए। जिसे भी मोबाइल धारक लेने नहीं आए।
कोर्ट में दो-तीन तारीख लगती हैं। मोबाइल शिनाख्त करने के लिए एक बार मोबाइल मालिक को आना पड़ता है। इसके पहले कागजात तैयार कराने और वकील आदि की फीस मिलाकर डेढ़ से दो हजार रुपये लगते हैं। - उमंग रावत, एडवोकेट कितने गए, कितने मिले माह चोरी बरामद जनवरी 14 6 फरवरी 12 5 मार्च 16 8 अप्रैल 10 5 मई 14 7 जून 1 0 जुलाई 5 2 अगस्त 6 0सितंबर 2 0
मोबाइल चोरी होने पर केस दर्ज किया जाता है। बरामद होने के बाद उसे कोर्ट में पेश किया जाता है, लेकिन उसे लेने के लिए केस दर्ज कराने वाले नहीं आते। इसलिए मोबाइल सुरक्षित लॉकअप में रख दिया जाता है। - किशन अवतार, इंस्पेक्टर जीआरपी