अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने हाल ही में घोषणा की थी कि चंद्रमा की सतह से धरती पर लाए गए चट्टानों के टुकड़े गायब हो गए हैं.

दरअसल ये टुकड़े कुछ देशों को उपहार के तौर पर बांटे गए थे। कुछ देशों ने इन्हें सहेज कर रखा तो कुछ ने उन्हें बेचने तक की कोशिश की। इस खींचतान में कुछ टुकड़े चोरी भी हो गए।

सन 1972 की बात है। नासा का अपोलो-17 मिशन 13 दिसम्बर को चांद की सतह से धरती पर लौटा। यान में सवार दो अंतरिक्ष यात्री अपने साथ चट्टान का एक बड़ा टुकड़ा भी लेकर आए थे।

इन अंतरिक्ष यात्रियों की हसरत थी कि इस चट्टान के टुकड़े पूरी दुनिया के देशों के साथ बांटे जाएं, और वो दिन भी आया जब उनकी ये इच्छा पूरी हो गई।

उन दिनों रिचर्ड निक्सन अमरीका के राष्ट्रपति हुआ करते थे। निक्सन ने चट्टान के छोटे-छोटे टुकड़े करने का हुकुम दिया। आदेश में ये भी कहा गया कि इन टुकड़ों को अमरीका के 50 राज्यों और विश्व के 135 देशों में बांट दिया जाए।

वैसे रोचक बात ये है कि चंद्रमा से जो चट्टान लाई गई थी, उसका आकार महज एक ईंट बराबर था। इससे पहले वर्ष 1969 में भी अपोलो मिशन चंद्रमा की सतह से चट्टान के टुकड़े लेकर आया था। उन्हें भी कई देशों में बांट दिया गया था।

आंकड़े बताते हैं कि इन दोनों मिशनों में चट्टान के कुल 370 टुकड़े एकत्रित किए गए थे। इनमें से 270 टुकड़े अलग-अलग देशों में जबकि बाकी सौ टुकड़े अमरीकी राज्यों में बांटे गए थे। लेकिन इनमें से 184 टुकड़े ऐसे हैं जो गुम हो गए, चोरी हो गए या जिनका कोई हिसाब नहीं है।

जिन देशों में चांद की सतह से लाई गईं चट्टानों के टुकड़े बांटे गए, उनमें अफगानिस्तान और त्रिनिदाद टोबेगो जैसे देश भी शामिल थे। टेक्सास में रहने वाले नासा के पूर्व एजेंट और वकील जोसेफ गुथिंज का कहना है, ''गद्दाफी की सरकार को चांद की चट्टान के दो टुकड़े दिए गए थे, इनका कोई अतापता नहीं है। रोमानिया ने भी अपने हिस्से का टुकड़ा खो दिया है.''

चांद से लाए गए चट्टान के टुकड़े आखिर कहां गए, ये जानने के लिए जोसेफ ने 1998 में अपना स्टिंग ऑपरेशन शुरू किया। उन्होंने इसे ऑपरेशन लूनर एक्लिप्स नाम दिया।

जोसेफ को हैरानी उस वक्त हुई जब होंडुरास ने अपने हिस्से की चट्टान उन्हें 50 लाख डॉलर में बेचने की पेशकश की। जोसेफ ने कीमत अदा तो नहीं की पर मांगी गई कीमत को वाजिब बताया। उनका कहना है कि इन बहुमूल्य चट्टानों को सहेजने के लिए नासा और अन्य देशों के प्रयासों में कमी रह गई।

चांद की धूल भी बिकीजोसेफ कहते हैं कि चांद की सतह से लाई गई किसी भी चीज़ की आधिकारिक तौर पर ब्रिकी का मामला वर्ष 1993 में सामने आया था। वे कहते हैं कि इस वर्ष रूसी सरकार ने न्यूयॉर्क स्थित सॉदबी नीलामीघर के जरिए उन चीजों को बेचा था जिसे सोवियत यूनियन का लूना-16 मिशन चंद्रमा की सतह से समेटकर लाया था।

वैसे एक गुमनाम संग्रहकर्ता ने चांद की सतह से लाई गई 0.2 ग्राम धूल को 442,500 डॉलर में खरीदा था। इसमें हैरानी की कोई बात नहीं है कि चांद से लाई गईं चट्टानें कालाबाज़ार में भी बिकती हैं।

मज़े की बात तो ये है कि कालाबाज़ार में असली और नकली दोनों तरह के टुकड़े मौजूद हैं। जोसेफ बताते हैं कि कैलीफोर्निया में एक महिला ने चंद्रमा की चट्टान का एक टुकड़ा ऑनलाइन बेचने की कथित कोशिश की थी। इतना ही नहीं, स्पेन और साइप्रस ने भी अपने हिस्से के टुकड़े बेचने चाहे थे, ये बात दस्तावेज़ों में दर्ज़ है।

Posted By: Inextlive