बहुत कम ऐसे अवसर आते हैं जब एक साथ लाखों दिल एक ही अहसास के साथ धड़कते हों. इस साल 2 अप्रैल एक ऐसा ही मौका था. कितना शानदार दिन जब 2011 किक्रेट वर्ल्ड कप का फिनाले था.

इससे शानदार और आइडियल फाइनल मैच कौन सा हो सकता था, जब दमखम में लगभग समान, दो पड़ोसी और को होस्ट  आमने सामने हों। अपने अपने पूल में पूरी ताकत से लड़ कर आए दोनों देशों इंडिया और श्रीलंका के पास सचमुच फेयर चांस था खुद को बेस्ट प्रूव करने का। सवाल यही था कि कौन ऐसा कर पाएगा।
दोनों ही टीम अपने अपने पूल में एक एक मैच हार चुकी थीं और श्रीलंका का जहां एक मैच रद्द हो चुका था वहीं इंडिया ने इंग्लैंड के साथ अपना एक मैच टाई खेला था। डेस्टिनी लिखी जा चुकी थी उसे बस हमारे सामने आना था। रोमांच से सारा माहौल तनावपूर्ण मगर खुशनुमा था। हिंदुस्तान का हर र्स्पोटस फैन अपने हाथ बांधे दुआ कर रहा था. 
43 दिन, 20,781 रन और 721 विकेट के खेल के बाद अब अंजाम तय होना था कि इस रन संग्राम का विजेता कौन है। दोपहर ढाई बजे मैच शुरू हुआ इंडिया ने टॉस जीता और श्रीलंका को बैटिंग करने के लिए कहा, जयवर्धने के 103 रन के साथ लंका ने 6 विकेट खोकर टारगेट दिया 274 रन। यानि जीत के लिए इंडिया को 275 रन की जरूरत थी।

इंडिया की इनिंग्स  की शुरुआत एक शॉकिंग झटके के साथ हुई। पहले ही ओवर की दूसरी गेंद पर सहवाग एलबीडब्यू   आउट हो गए। लाखों इंडियन शॉक से खामोश हो गए और रिव्यू के लिए सहवाग की डिमांड पर थर्ड अंपायर के डिसीजन का वेट करने लगे, डिसीजन आया पर नतीजा वही का वही सहवाग आउट।

सिक्थ्  ओवर में ही जैसे जीत की उम्मीदें हवा होने लगीं जब क्रिकेट के भगवान ने महज 18 रन पर मलिंगा की गेद पर संगकारा को अपना कैच थमा दिया। सचिन के आउट होते ही लगा की 2003 की तरह इस बार भी बस हम आखिरी पड़ाव पर आ कर अपने सपने से चूक जाऐंगे।
सचिन के बाद मैदान संभाला विराट कोहली ने और आहिस्ता  आहिस्ता कोहली और गंभीर इंनिंग्स को एक शेप देने की कोशिश करने लगे। जब कुछ रिलैक्ल फील होने लगा बस उसी समय 21 ओवर में दिलशान ने विराट को 31 रन के स्कोर पर अपनी ही गेंद पर कैच कर लिया और हम एक बार फिर स्ट्रगल के लिए मजबूर नजर आने लगे। इस समय इंडिया का स्कोर था 114 पर 3.
विराट के बाद मोर्चा संभालने आए खुद कप्तान महेंद्र सिंह धोनी। धोनी जानते थे अभी नहीं तो कभी नहीं और शायद यही वजह थी कि लास्ट शॉट से पहले उनके फेस पर स्माइल नजर नहीं आयी। गंभीर और धोनी ने संभल कर लेकिन तेजी से गेम को आगे बढ़ाना शुरू किया।

स्कोर पहुंचा 41 ओवर में 223 रन पर अब जीत के लिए 54 बाल में चाहिए थे 53 रन गंभीर 97 रन पर बेहद कांफीडेंस के साथ खेल रहे थे।
तभी जैसे सब गड़बड़ा गया गंभीर परेरा की एक साधारण सी दिखती गेंद पर बोल्ड  हो कर एक डिजरविंग सेंचुरी से चूक गए। लगा गंभीर की सेंचुरी नहीं मैच हमारे हाथों से छूट गया हो।
यह हमारा ख्याल था टीम के कप्तान और युवराज का नहीं जो गंभीर की जगह मैदान पर उतरे। दोनों ने पूरी जिम्मे्दारी और अर्लट होकर खेलना शुरू किया। 47वें ओवर की शुरुआत में स्कोर हुआ 259 पर 4 विकेट और लक्ष्य था 18 बाल में 16 रन। धोनी 76 युवराज 18, हर गेंद पर रोमांच बढ़ता जा रहा था।

47.1 ओवर में युवराज ने मलिंगा की गेंद पर ड्राइव करके 1 रन लिया स्कोर हुआ 260, लक्ष्य 17 बाल में 15 रन। धोनी 76 युवराज 19.
47.2  धोनी ने शानदार चौका मारा स्कोर 264 लक्ष्य  16 बाल में 11 रन घोनी 80 युवराज19.

47.3 धोनी का एक और शॉट, एक और बांउड्री स्कोर 268 लक्ष्य 15 बाल में 7 रन, धोनी 84 युवराज 19.
47.4 मलिंगा के यार्कर पर धोनी कोई रन नहीं बना सके स्कोर 268 लक्ष्य् 14 बाल में 7 रन, धोनी 84 युवराज 19.
47.5 धोनी ने प्वाइंट पर शॉट मार कर एक तेज सिंगल बनाया और स्कोर हुआ 269 लक्ष्य  13 बाल में 6 रन, धोनी 85 युवराज 19.
ओवर की लास्ट बाल पर युवराज ने लांग आन पर शॉट खेल कर एक रन बनाया और स्कोर हुआ 270 लक्ष्य 12 बाल में 5 रन, युवराज 20 धोनी 85.

48.1 युवराज ने एक रन बनाया और जैसे तय कर दिया की जीत की कहानी कप्तान धोनी के बल्ले से लिखी जाएगी। स्कोर 271 लक्ष्य 11 बाल में 4 रन युवराज 21 धोनी 85.
48.2 बस 27 साल पहले एक कहानी जो ठहर गयी थी, एक सपना बार बार आंखें में आता रहा था, 2003 में जिस कोशिश के पंख कुछ कमजोर रह गए थे वही दास्तान एक और दंतकथा बन गयी। धोनी के बल्ले  से निकले एक सिक्सर के साथ मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में उल्लास का विस्फोट हो गया। स्कोर 277 धोनी 91 युवराज 21.
आखिरकार धोनी के होटों पर दिखी एक आंसुओं में भीगी मुस्कराहट और आंसू और उल्ला़स से दहाड़ते युवराज उनकी तरफ दौड़े और लिपट गए। कुछ ही सेकेंड में रोती, हंसती और खुशी से उलछती पूरी इंडियन टीम मैदान पर थी। उनकी बाहों में थे सचिन जिनसे वह शायद यही कह रहे थे कि आखिर हमने वादा निभा दिया।

ऐसे थे इस साल के सबसे बड़े कंपटीशन के आखिरी लम्हे जो हर अगली पीढ़ी से कहेंगे कि हम 2011 वर्ल्ड कप की जीत के साक्षी थे जैसे अब 1983 की जीत को देखने वाले कहते रहे हैं।

 

 

 

 

Posted By: Inextlive