-नेपाली धर्मशाला में चार दशक गुजार चुकी माताओं को नहीं मिला बच्चों का प्यार

-मदर्स डे पर i next ने यहां रह रही 15 माताओं का जाना हाल

VARANASI: हर दुख तकलीफ को सहते हुए जो अपने बच्चे की खुशियां जुटाने की भरसक प्रयास में रहती है, वह मां है। हर मां की इच्छा होती है कि उसका लाडला हमेशा उसकी आंखों के सामने रहे। लेकिन कुछ ऐसी बदनसीब मां हैं जो चार-पांच दशक से अपने बच्चों को देखने तक को तड़प रही हैं। उनके अपने ही बच्चे अपनी मां के खुशी-गम में शरीक तक नहीं होते हैं। इसके बाद भी ऐसी पंद्रह माताएं हर समय अपने बच्चों के कुशल क्षेम की माला आज भी जप रही हैं, लेकिन बच्चे हैं कि एक बार भी अपनी मां की खोज खबर लेने तक नहीं आए। उन्हें यह तक पता नहीं कि उनकी मां जिंदा भी हैं या स्वर्गवासी हो गई।

एक रूम में सिमटी पूरी दुनिया

मदर्स डे पर कुछ स्पेशल करने की सोच लिये आई नेक्स्ट की टीम जब ललिता घाट के नेपाली धर्मशाला में पहुंची तो यहां रह रही वृद्ध माताओं की नजरें चमक उठीं। उन्हें यह आभास हुआ कि उनका बेटा आ गया, लेकिन जब उनके करीब पहुंचे तो उनकी आंखें फिर उसी मुद्रा में चली गई। एक छोटे से रूम में अपनी दुनिया बसा चुकी वृद्ध माताओं को तो वैसे यहां हर चीज मुकम्मल है लेकिन अपने बच्चों की याद में अक्सर उनकी रातें बेचैनी के साथ कटती हैं।

मां को गए भूल

नेपाली धर्मशाला में चौदह साल से रह रही हरि प्रिया (78) को काशी आए चालीस बरस हो गये हैं। मूलरूप से नेपाल के विराटनगर की निवासी हरि प्रिया को एक बेटा व दो बेटियां हैं, लेकिन हरि प्रिया जबसे इस धर्मशाला में आई हैं तबके बाद से बेटा बेटियों ने उनकी कोई खोज खबर नहीं ली, जब हरि प्रिया को नेपाल में भूकंप आने की खबर मालूम हुई तो उनका मन घबरा उठा,

बच्चों की चिंता में उनकी सलामती के लिए रात दिन दुआएं मांगीं। यहीं होती है मां की ममता लेकिन उनके बच्चे अपनी इस मां से आज तक मिलने तक नहीं आये, बस यही कमी हरि प्रिया को आज भी खल रही है।

प्रभु मेरे अपनों को सलामत रखना

नेपाल के ही विराट नगर की रहने वाली तुलसी देवी (78) की कहानी भी काफी दर्द भरी है। कम उम्र में उनकी शादी हो गई लेकिन कुछ साल बाद ही वह विधवा हो गई, जिसके बाद ससुराल से भी उनका नाता टूट गया। मायके आकर रहने लगी, इसके बाद उनके भाई ने उन्हें बनारस में छोड़ दिया। लगभग चालीस साल हो गये लेकिन कोई भी अपना उन्हें आज तक देखने नहीं आया। लेकिन जब भूकंप की खबर उन्होंने सुनी तो सब से पहले उनके मुख से यहीं निकला, भगवान मेरे अपनों को सलामत रखना।

बच्चों से मिलने जाना है

नेपाली आश्रम में रह रही असम की पवित्रा देवी (80) को भी बनारस आए चालीस साल बीत गये लेकिन उनके तीन बेटों व एक लड़की में से किसी ने उनकी आज तक खोज खबर नहीं ली। इसके बाद भी पवित्रा देवी अपने बच्चों की एक झलक देखने को बेताब हैं। हालांकि पवित्रा देवी ने कहा कि एक माह बाद अपने घर किसी भी हाल में जाऊंगी।

सालों हो गये बच्चों को देखे

नेपाली धर्मशाला को ही अपना घर परिवार मान चुकी कृष्ण माया (8ख्) की जिंदगी भी अपने बच्चों के इंतजार में गुजर रही है। लेकिन बच्चे हैं कि अपनी मां से मिलने तक नहीं आए। लगभग ब्ख् साल हो गये बच्चों को देखे। लेकिन अपनी खुशियों में मस्त बच्चों को अपनी मां से मिलने की फुर्सत नहीं है।

Posted By: Inextlive