45 वर्षीय वासुदेव उपाध्याय बनारस से साइकल पर अपनी 75 वर्षीय मां को लेकर उज्जैन में सिंहस्थ स्नान कराने निकले हैं। एक माह 16 दिन की यात्रा तय कर वह शाही स्नान के दिन शुक्रवार दोपहर 1.45 बजे शाजापुर पहुंचे। उनका कहना है कि मां को शाही स्नान कराने वह साइकल से उज्जैन के लिए निकले हैं। 22 अप्रैल शाम तक वह उज्जैन पहुंचकर मां शिप्रा के आंचल में अपनी बुजुर्ग मां प्रीती को अमृत स्नान कराकर पुण्य अर्जित करेंगे। वासुदेव ने बताया कि वह एक दिन में 50 से 60 किमी का सफर तय करते हैं।

ऐसी है जानकारी
बता दें कि सड़क के रास्ते से बनारस से उज्जैन की दूरी करीब 800 किमी है। साइकल पर मां को लेकर तेज धूप में शाजापुर एबी रोड गांधी हॉल के सामने से गुजर रहे वासुदेव ने माथे पर आया पसीना पोंछते हुए बताया कि वह 13 साल की उम्र में ही अयोध्या चले गए थे। यहां एक आश्रम में साधु जीवन जीने लगे, लेकिन कुछ साल बाद जब पिता का निधन हुआ तो उनके गुरु बोले कि इस विपदा की घड़ी में उसने अपनी मां की सेवा नहीं की तो उसका साधु होना बेकार है।
गुरु की आज्ञा मानी
गुरु की आज्ञा से आयोध्या छोड़ 11 साल पहले वह बनारस आ गए। उसके बाद से ही मां को इसी साइकल से तीर्थयात्रा कराना प्रारंभ कर दी। अब तक कई हजार किलोमीटर की यात्रा वह साइकल से ही तय कर चुके हैं। वासुदेव ने बताया कि अब तक बद्रीनाथ, वैष्णोदेवी, ज्वालादेवी, रामेश्वरम, गंगा सागर, मथुरा सहित कई तीर्थ स्थानों के दर्शन मां को करा चुके हैं। उनका कहना है कि जब तक मां हैं यात्रा का यह क्रम जारी रहेगा। इसके बाद वह प्रभुभक्ति के लिए साधु जीवन में लौट जाएंगे। वासुदेव की एक बड़ी बहन है, जिसकी शादी हो गई है और वह अपने ससुराल में रहती है।
साइकल पर ही है पूरी व्यवस्था
वासुदेव साइकल पर ही रसोई का सामान और बिस्तर लेकर चलते हैं। उन्होंने बताया कि जहां साफ स्वच्छ और सुरक्षित स्थान मिलता है, वहीं पर रुककर वे रात गुजार लेते हैं। वहीं चूल्हा बनाकर भोजन तैयार कर लेते हैं और सो जाते हैं। सुबह चार बजे से फिर यात्रा के लिए निकल जाते हैं। रात करीब 10 बजे तक यात्रा जारी रहती है। हालांकि दिन में भी जगह-जगह विश्राम करते हैं। वासुदेव का कहना है कि शाही स्नान आ जाने और उज्जैन नहीं पहुंचने के चक्कर में शुक्रवार को उन्होंने खाना तक नहीं खाया। सोचा कि उज्जैन पहुंचकर  मां को स्नान कराने के बाद ही भोजन करेंगे।
पिता के बाद बनना था मां का सहारा
पिता के निधन और बहन की शादी के बाद मां घर में अकेली रह गईं। ऐसे में वासुदेव ने बताया कि पिता के निधन पर वह घर आए कुछ दिन बाद ही वापस आश्रम भी लौटने लगे, तो मां बिलख पड़ी। उनकी यह हालात देखकर वासुदेव से रहा नहीं गया। वह आश्रम गए और वहां पहुंचकर सारी बात अपने गुरुजी को बताई। इसपर उन्होंने कहा कि अभी मां की सेवा ही प्रभु सेवा के सामान है। बस उसी समय उनकी आज्ञा से आश्रम छोड़कर घर वापस आ गया और अब मां की सेवा में लग गए। आज तक यह क्रम जारी है।

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Posted By: Ruchi D Sharma