अकसर लोग जीवन में सफलता पाने के लिए दूसरों पर निर्भर रहते हैं पर वो भूल जाते हैं कि सफल होने के लिए खुद ही कड़ी मेहनत करनी होती है। चलिए जानते इस महा पुरूष के बचपन की कहानी जो आपको भी ईमानदारी से सफलता तक पहुंचने के लिए प्रेरित करेगी...


कानपुर (फीचर डेस्क)। एक छात्र था। वह बेहद गरीब परिवार से था। उसे दो वक्त की रोटी के लिए भी खुद ही कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी। ये छात्र बेहद गरीब तो था, लेकिन खुद्दार भी था। वह अपने स्कूल की फीस, किताबें सबकुछ अपनी कमाई से ही खरीदता था। फिर चाहें उसके लिए उसे एक रात खाली पेट ही क्यों न सोना पड़े। यह छात्र पढ़ाई में भी अच्छा था।


छात्र की ईमानदारी और अच्छाई को देखकर स्कूल के कुछ बच्चे उससे ईर्ष्या करने लगे। एक बार उन बच्चों ने उस छात्र को चोरी के इल्जाम में फंसाने के बारे में सोचा। उन्होंने स्कूल के प्रिंसिपल से जाकर उस छात्र की शिकायत कर दी कि वह हमेशा दूसरों के पैसे चुराता है। प्रिंसिपल ने बच्चों से कहा कि वह इस बात की जांच करेंगे और दोषी पाए जाने पर उसे उचित दंड भी मिलेगा। प्रिंसिपल ने छात्र के बारे में पता लगवाया, तो मालूम पड़ा कि वो छात्र स्कूल के बाद माली के यहां सिंचाई का काम करता है। यदि आपस में प्रेम हो तो कंधे पर रखी तलवार से भी भय नहीं लगता : ओशो

माली का काम कर जो पैसे मिलते हैं, वो उससे अपने स्कूल की फीस भरता है और किताबें खरीदता है। अगले दिन प्रिंसिपल ने उस बच्चे को बुलाया और पूछा कि, तुम्हें इतनी दिक्कत है, तो तुम अपने स्कूल की फीस माफ क्यों नहीं करवाते। छात्र ने उत्तर दिया, 'अगर मैं अपनी सहायता खुद कर सकता हूं, तो मैं खुद को बेबस क्यों समझूं और फीस क्यों माफ करवाऊं। वैसे भी आपने सिखाया है कि कर्म ही सबसे बड़ी पूजा है।' छात्र की ये बात सुनकर प्रिंसिपल का सिर गर्व से ऊंचा हो गया। ये बच्चा बड़ा होकर महान लेखक बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के नाम से विख्यात हुआ।features@inext.co.inआपस में बड़ी गहराई से जुड़े हैं धर्म-कर्म, फिर भी दोनों में है ये अंतर: साध्वी भगवती सरस्वती

Posted By: Vandana Sharma