भोपाल में हुई गैस त्रासदी को 30 साल पूरे हो चुके हैं. लेकिन आज भी गैस विक्टिम्‍स के जख्‍म भरे नहीं हैं उनका यह दर्द आंसुओं के माध्‍यम से छलकता रहता है. अब इसे किस्‍मत का रूठना कहें या फिर तकदीर का खेल. इस हादसे में मासूम बच्‍चों की वो कराहती हुई आवाज और मौत की छटपटाहट आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है. इसी कड़ी को आगे जोड़ते हुये डायरेक्‍टर रवि कुमार ने 'भोपाल : ए प्रेयर फॉर रेन'मूवी दर्शकों के सामने रखी है. तो आइये पढ़ें क्‍या कहती है कहानी....

जिंदगी की कीमत कुछ नहीं
इंडिया में अब किसी की जिंदगी की कोई कीमत नहीं रही. यहां पर मानवता इतनी सस्‍ती हो गई है कि कुछ रसूखदार वालों ने इसे एक खेल बना दिया है. आज से 30 साल पहले दिसंबर 1984 की वो ठंडी काली रात लोगों के दिलों-दिमाग पर अभी भी हावी है. हालांकि कुछ लोगों ने इसे भुलाने की बहुत कोशिश की, लेकिन भोपाल शहर का हर आदमी इस हादसे से आज भी खुद को जुड़ा हुआ महसूस करता है. भोपाल के यूनियन कार्बाइड में हुआ यह दर्दनाक हादसा, जिसने 10 हजार से ज्‍यादा जिंदगिंया समाप्‍त कर दी थीं. हालांकि यह जिंदगियां तो वापस नहीं आई लेकिन अपने पीछे एक काला इतिहास छोड़ गईं.
Bhopal: A Prayer for Rain
U : Drama-history
DIRECTOR: Ravi Kumar
CAST: Martin Sheen, Mischa Barton, Kal Penn, Tannishtha Chatterjee, Rajpal Yadav



सिक्‍योरिटी को लेकर उठे थे सवाल
Bhopal A Prayer for Rain के डायरेक्‍टर रवि कुमार ने एक बेहद ही सटीक सब्‍जेक्‍ट पर अपनी रचनात्‍मकता का परिचय दिया है. यह कहानी एक रिक्‍शापुलर दिलीप (राजपाल यादव) के जीवन से शुरु होती है. यह दिलीप यूनियन कार्बाइड का डेली वेज वर्कर है. हालांकि दिलीप के अलावा हजारों वर्कर इस कंपनी में काम करते हुये अपनी जिंदगी काट रहे थे. लेकिन तभी लोकल जर्नलिस्‍ट मोटवानी (केल पेन) कंपनी की सिक्‍योरिटी नॉर्मस को लेकर कुछ सवाल खड़े करती हैं. मोटवानी का एक बेस्‍ट फ्रेंड, जोकि कंपनी में काम करता था उसकी जहर की वजह से मौत हो जाती है, लेकिन मोटवानी इस समस्‍या पर अपनी आवाज नहीं खड़ी कर पाती. फिलहाल मोटवानी के अलावा कंपनी का सेफ्टी ऑफिसर (ज्‍वॉय सेन गुप्‍ता) भी अपने सुपरवाइजर्स को भविष्‍य में होने वाले इस खतरे से अवगत कराता है.
पॉलिटिक्‍स का गंदा खेल  
इस पूरे गैस कांड में जिस व्‍यक्ति की अहम भूमिका थी, वह था वॉरेन एंडरसन (मार्टिन शेन). यह वॉरेन बाहर से जितना दयालु लगता था, उतना ही अंदर से निर्दयी था. हालांकि एंडरसन की इस सोच का साथ दिया था, इंडियन पॉलिटीशियन ने. यूनियन कार्बाइड में हुआ यह हादसा, सिर्फ और सिर्फ पॉ‍लिटिक्‍स का गंदा खेल था, जिसके लिये आम इंसानों की जिंदगी कुछ मायने नहीं रखती थी. हादसे के बाद नेताओं ने वोट बैंक की राजनीति को खुब भुनाने की कोशिश, लेकिन उन पीडि़त परिवारों के दर्द को समझने की कोशिश किसी ने नहीं की.

कैरेक्‍टरों का बैलेंस बिगड़ा

अब अगर इस मूवी के फाइनल वर्डिक्‍ट की बात करें, तो रवि कुमार ने सब्‍जेक्‍ट तो दमदार चुना लेकिन कुछ गलतियां उनसे भी हो गईं. रवि कुमार ने दर्शकों के सामने इस दर्दनाक और खौफनाक कहानी को बताने की पूरी कोशिश की, लेकिन कहीं-कहीं यह उम्‍मीदों पर खरी नहीं उतरी. राजपाल यादव ने अपनी एक्टिंग का मसाला पूरी तरह से डाल दिया. दर्शक उन्‍हें एक कॉमिक रोल में तो खूब पसंद करते हैं, लेकिन जब बात गंभीर रोल की आती है तो वह थोड़ा निराश करते हैं. इसके अलावा कैमरा मूवमेंट भी कुछ खास काम नहीं कर पाया, जिसकी वजह से फिल्‍म का फ्लो बिगड़ गया. फिलहाल रवि कुमार की यह अच्‍छी कोशिश है, और यह मूवी एकबार तो देखी जानी चाहिये. इस मूवी को देखकर आपको अहसास हो जायेगा कि हमारी सरकार अपने नागरिकों के लिये की सुरक्षा को कितनी तवज्‍जो देती है.
Courtesy :- मिड-डे

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Posted By: Abhishek Kumar Tiwari