फिल्‍म 'धर्म संकट में'का विचार बहुत ही अच्‍छा है. फिल्‍म में समाज के एक बेहतर विचरणीय टॉपिक को उठाया गया है. हालांकि फिल्‍म के इस विचार से हम सभी अच्‍छे से अनुभवी होने के बावजूद भी कुछ खास तरीके से मुख्‍य बिंदु को उजागर करने में असफल रहे. ऐसे में सबसे खास बात है कि इस बिंदु पर अभी भी विचार करने की जरूरत है. इतना ही नहीं इसे गंभीरता से उठाते हुये इस पर बहस समीक्षा और एक समाजिक राय बहुत जरूरी विषय है. इस फिल्‍म में यह दिखाने का पूरा प्रयास किया गया है कि हमें समाज में किसी एक धर्म का नहीं बल्‍िक सभी धर्मों का सम्‍मान करना चाहिये. इतना ही नहीं इसके लिये मन के दर्पण को भी देखना चाहिये और अंदर छुपे हुये निर्णय को उभारना चाहिये. किसी एक धर्म के निर्णय से बंधकर चलना व्‍यर्थ है.

धर्म संकट में फंस जाता
अहमदाबाद निवासी धर्मपाल त्रिवेदी (परेश रावल) हिंदू धर्म से होते हैं. वह अपने धर्म के मुताबिक ही अपना जीवन काट रहा होता है, लेकिन तभी उसकी लाइफ में एक बड़ा गंभीर मोड़ आता है. उसे जब यह पता चलता है कि उसका जन्‍म मुस्‍िलम धर्म में हुआ है और उसकी परवरिश हिंदू धर्म में. उसे उसकी मां ने गोद लिया था. जिससे अब वह एक बड़े अजीबोगरीब धर्म संकट में फंस जाता है. इस दौरान धर्मपाल दोनों ही धर्मों में फंसकर खुद को किसी एक पाले में साबित करने का भरसक प्रयास करता है, लेकिन वह उसमें उलझता जाता है और उसे सब व्‍यर्थ नजर आता है. इस दौरान वह अपनी बदली हुयी पहचान को पाने के लिये खुद को बदलने की कोशिश करता है. हालांकि बाद में वह इस उलझन से खुद को निकालने सफल हो जाता है.
Dharam Sankat Mein
U/A; Comedy-drama
DIR: Fuwad Khan
CAST: Naseeruddin Shah, Paresh Rawal, Annu Kapoor
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क्‍लाइमेक्‍स तक पंहुचती

फिल्‍म करीब पहले आधे घंटे तक काफी मनोरजंन करती हैं. शुरूआती दौर में इसमें कॉमेडी वाले डायलॉग हैं. जो दर्शकों को हसंने पर मजबूर कर देते हैं. हालांकि इसके बाद धीरे धीरे फिल्‍म का रूख बदल जाता है और यह गंभीरता और इमोशनल ड्रामा की ओर घूम जाती है. फिल्‍म इन्‍हीं इमोशनल ड्रामा से गुरजते हुये क्‍लाइमेक्‍स तक पंहुचती है. सबसे बड़ी बात तो यह रही कि इस फिल्‍म का स्‍क्रीन प्‍ले इतना प्रभावशाली नहीं रहा जितना की वादा किया गया था. फिल्‍म में अब तक की जा रही उम्‍मीदें अधूरी दिखायी दीं. हालांकि स्‍टोरी आइडिया मजबूत तो था लेकिन इसमें भी कुछ खास नया नहीं दिखा. अब तक धर्म के नाम पर उठाये गये मुद्दों की तरह यह भी सिमट गया.
ध्‍यान खींचने में कामयाब
फिल्‍म में काफी कुछ काम करने वाले अभिनेताओं पर निर्भर करता है. इस फिल्‍म में धर्मपाल त्रिवेदी के रूप में परेश रावल का किरदार ठीक ठाक रहा है. वह अपने किरदार के सांचे में फिट बैठते दिखे. वहीं दूसरी ओर नसीरूद्दीन शाह का किरदार थोड़ा ज्‍यादा ही प्रभावशाली रहा. फिल्‍म में वह एक स्‍टाइलिश और एक विल्‍ाक्षण अंदाज वाले नीलानंद स्‍वामी के रूप में दर्शकों का ध्‍यान खींचने में कामयाब साबित होंगे. डायरेक्‍टर फवाद खान ने वर्तमान समय को देखते हुये एक अच्‍छा टॉपिक उठाया. उन्‍होंने अपने इस विचार और फिल्‍म के जरिये वर्तमान दौर में हो रही धर्म की लड़ाई के रूख को बदलने का प्रयास किया, लेकिन अफसोस कुछ खास असर नहीं छोड़ पाये. अंत में परिणाम हकीकत से काफी दूर दिखा.

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Posted By: Satyendra Kumar Singh