खुसरो मिर्जा के नाम पर तैयार कराया गया था खुशरूबाग

17वीं शताब्दी की स्थापत्य कला की अनूठी मिशाल है यह स्थल

ALLAHABAD: शहर की कई ऐसी इमारते हैं जो आज भी शहर के पुराने इतिहास और माहौल को ताजा कर देती हैं। इन्हीं में शामिल है खुशरूबाग, जो मुगलकाल में इलाहाबाद की समृद्धता की याद दिलाता है। भागती जिंदगी के बीच शांति की तलाश हो तो यह तलाश खुशरूबाग में खत्म होती है। समय के साथ शहर भले ही बदल गया, लेकिन सुकून खुशरूबाग के शांत वातावरण में ही मिलता है। चारों तरफ उंची दीवारों से घिरा खुशरूबाग इलाहाबाद जंक्शन के पास है। खुशरूबाग लोगों को शांति देने के साथ ही मुगलकालीन इतिहास से भी लोगों को जोड़ता है। हरियाली व बागानों से आच्छादित मुगल काल की स्थापत्य कला का अनूठा नमूना आज भी लोगों के आकर्षण का केंद्र है।

खुसरो मिर्जा को समर्पित

खुसरूबाग असल में मुगल सल्तनत के बादशाह जहांगीर के बड़े बेटे खुसरो मिर्जा के नाम पर रखा गया। यहां पर खुसरो मिर्जा, जहांगीर की पहली बेगम शाह बेगम और जहांगीर की बेटी राजकुमारी सुल्तान निथार बेगम का मकबरा है। इन्हें 17वीं शताब्दी में यहां पर दफनाया गया था। इस बाग में स्थित कब्रों पर की गई नक्काशी देखते ही बनती है। कहा जाता है कि मुगल बादशाह जहांगीर ने अपने समय के सबसे उम्दा कारीगरों को इन कब्रों के निर्माण के लिए लगाया था। जहांगीर के बड़े बेटे को उसके भाई शाहजहां द्वारा मार दिया गया था। इसलिए उसकी मां ने आत्महत्या कर ली थी। सम्राट ने इन कब्रों और मकबरों को बनवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। खुशरूबाग अमरूद के बागान के लिए अंतर राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त है।

समय के साथ शहर भले ही बदल गया हो, लोग घरों से निकलकर फ्लैट में रहने लगे हों, लेकिन आज भी यहां पर इतिहास को जीवंत करने वाली कई ऐसी इमारतें है जो शहर के इतिहास को समृद्धशाली बनाती हैं। खुशरूबाग इनमें से एक है। यह मुगलकाल की स्थापत्य कला के दर्शन तो कराता ही है, अमरूद की मिठास का अहसास भी कराता है। बड़ी तादात में लोग यहां पर पहुंचकर खुद को प्रकृति के समीप होने का अहसास करते हैं। यहां की सुबह लोगों को अपनी ओर खींचती है। गंगा जमुनी संस्कृति के बीच इन इमारतों का ऐसा नजारा हर जगह सुलभ नहीं है।

निशांत सक्सेना

वरिष्ठ रंगकर्मी

Posted By: Inextlive