- पत्नी और बच्चे पर भी छिड़क दिया था केरोसिन

- पुलिस पर लगा रहा धोखा देने का आरोप

- मोतिहारी में नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन में बना था पुलिस का मुखबिर

-15 लाख देने का दिया गया था भरोसा

PATNA : कभी पुलिस के लिए वह खास था। उसके एक इशारे पर पुलिस फोर्स चल पड़ती थी ऑपरेशन में। इतना विश्वास था उसपर। उसके इंफॉर्मेशन पर एक बड़ा ऑपरेशन हुआ और फ्क् पुलिस वालों को मेडल भी मिल चुका है। मगर आज वह खुद अपने परिवार के साथ दर-दर की ठोकरें खा रहा है। अब तो हालात ऐसे हो गए हैं कि उसे अपनी फैमिली के साथ जान देने की नौबत आ गई। किसी ने उसकी नहीं सुनी। जिसने सुना भी वह अनसुना कर गया। जी हां, हम बात कर रहे हैं मो। असलम (ख्7) की, जो खुद को पुलिस का मुखबिर बताता है और पुलिस पर ही धोखा देने का आरोप भी लगा रहा। शनिवार को उसने कारगिल चौक पर अपनी पत्नी फरजाना खातून (ख्भ्) और बेटे मो। साजिद के साथ सुसाइड करने का प्रयास किया। मो। असलम ने खुद को फांसी लगाने और पत्नी व बच्चे को केरोसिन छिड़कर जान देने की कोशिश की। कारगिल चौक पर मौजूद पब्लिक ने उसे रोका और गांधी मैदान थाने की पुलिस गिरफ्तार कर थाने लाई। बाद में करीब छह बजे तक कागजी कार्रवाई कर गांधी मैदान थाने की पुलिस ने उसे छोड़ दिया। इतनी देर तक थाने में उसके बेटे साजिद के शरीर में केरासिन के रैशेज भी पड़ गये थे। गांधी मैदान थानाध्यक्ष ने बताया कि उसे थाने से बेल देकर छोड़ दिया गया।

मैं तो पहले चंडीगढ़ में ब्रेड बनाता था।

मो। असलम की कहानी बताती है वह पुलिस के ऊपर कितना भरोसा करता था और वह उसके कितना काम आया। असलम फिलहाल बुद्धा कॉलोनी में एक छोटा कमरा लेकर अपने परिवार के साथ गुजारा कर रहा है। दिन भर मजदूरी कर अपने दो बच्चों और पत्नी का पेट पालता है। जब उससे पूछा जाता है कि तुम कैसे मुखबिर बने तो उसे चेहरे पर एक गुस्सा और अफसोस का भाव आ जाता है। वह अपनी यादों के फ्लैश बैक में जाता है और बताता है कि उसे वर्ष ख्009 के ईद का वह दिन आज भी याद है जब वह चंढ़ीगढ़ के मोहाली से अपने गांव हेजलपुर थाना मकेर, जिला छपरा लौटा था। वह तो वहां स्वराज कंपनी में ब्रेड, केक बनाता था। ईद के कुछ दिन बाद ही पड़ोसियों से छोटी बात पर विवाद हुआ और उन लोगों ने मेरी मां शैरून निशा और पिता ईद मोहम्मद को खूब पीटा। उनके हाथ पैर भी तोड़ डाले। इसके बाद कई जगह दौड़ा मगर मुझे न्याय नहीं मिला। मैं भी बीमार पड़ गया। इसके बाद उन लोगों से बदला लेने के लिए सितम्बर ख्0क्0 में नक्सली ग्रुप में शामिल हो गया। मगर जब अखबार में पढ़ा कि नक्सलियों के लिए आत्मसर्पण योजना के तहत उनका पुनर्वास किया जाएगा तो वह वह तत्कालीन डीएसपी मढ़ौरा दिलनवाज अहमद के पास गया। वहां उन्होंने फिर से नक्सलियों के गु्रप में शामिल होकर पुलिस के लिए मुखबिरी करने को कहा। साथ ही उन्होंने तत्कालीन एसपी छपरा एके सत्यार्थी से भी मिलवाया। पूछताछ और जांच पड़ताल के बाद यह उन्होंने माना कि मैं काम कर सकता हूं और उन लोगों ने मुझे मोतिहारी जाने का आदेश दिया। पहले मैंने नहीं माना लेकिन उन लोगों ने दबाव के साथ ही क्भ् लाख रुपए और बिहार से बाहर रहने के घर देने का भरोसा दिलाया। इन लोगों ने ही मोतिहारी एसपी गणेश प्रसाद से भी उसकी बातचीत करवाई और सारा मामला तय हो गया। इसके बाद मैं क् जनवरी ख्0क्क् से पुलिस के लिए नक्सलियों के खिलाफ मुखबिर का काम करने लगा।

थाने पर हमले की खबर के बाद एनकाउंटर

असलम मोतिहारी जैसे ही आया और नक्सलियों की मीटिंग में हिस्सा लेने लगा उसी दौरान उसे पता चला कि मोतिहारी के केसरिया थाना पर हमला कर हत्या और हथियार लूटने की योजना बन रही है। उसने इसकी खबर डीएसपी दिलनवाज अहमद को। और उनके कहने पर ही नक्सलियों से छुट्टी से छुट्टी लेकर वह नौ मार्च को छपरा पहुंचा और एसपी डीएपी से मीटिंग हुई। इसमें पूरे ऑपरेशन का प्लान बनाया गया। उसके बाद वह फिर से नक्सलियों के कैंप में मोतिहारी चला गया। क्ख् मार्च ख्0क्क् को रात ढाई बजे उसने पुलिस को नक्सलियों की संख्या और उनके हथियारों के बारे में सारी जानकारी दे दी। साथ ही उसने रास्ते में लगाये गये सभी छह लैड माइंस की तार को काटकर पुलिस को आने के लिए रास्ता साफ कर दिया। असलम की रात दो से चार बजे तक संतरी ड्यूटी लगी थी। इसके बाद पुलिस ने प्लानिंग की और क्फ् मार्च को पुलिस ने दरमाहा गांव को दो बजे घेर लिया। नक्सली भागना चाहे मगर पुलिस की घेराबंदी में भाग नहीं पाये। दहल नक्सली मारे गये और क्0 को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। यही नहीं वहां से पुलिस को 8 रेगुलर राइफल, भ् एसएलआर, क्भ्00 कारतूस और एक पिस्टल भी जब्त किया गया था। यह एनकाउंटर क्8 घंटे चली थी और हर पल की जानकारी वह पुलिस को उस दौरान भी देता रहा था।

पुलिस वालों को तो मेडल मिल गया

इस बड़े इंकाउंटर के बाद तो एसपी सहित फ्क् पुलिस वालों को प्रेसिडेंट मेडल भी ख्म् जनवरी ख्0क्फ् को मिल गया। लेकिन अबतक असलम को कुल ब्.म्भ् लाख रुपए मिले हैं। उसके लिए भी उसके दर्जनों बार चक्कर लगाना पड़ा है। चार लाख रुपये उसकी पत्नी के अकाउंट पर दो बार में दो-दो लाख रुपए भेजे गये। जबकि म्भ् हजार मां के बीमार होने पर छह बार में दिये गये। इसे लिए वह कई आफिसर्स से लेकर डीजीपी पीके ठाकुर से भी मिल चुका है। असलम का कहना है कि पुलिस ने एक भी वादा पूरा नहीं किया। उसे तीन साल जेल में गुजारना पड़ा, न रुपए मिले और न मकान। अब तो नक्सली भी उसे तलाश रहे हैं। जान पर आफत है और आर्थिक तंगी में जान बचाता फिर रहा हूं।

पुलिस ने किया था वादा पूरा नहीं किया

- क्भ् लाख रुपए कैश दिये जाएंगे

- बिहार से बाहर रहने के लिए घर दिया जाएगा

- उसे एक दिन के लिए भी जेल नहीं भेजा जाएगा।

Posted By: Inextlive