शूटआउट एट लोखंडवाला और शूट आउट एट वडाला वाले निर्देशक संजय गुप्ता को मुंबई गैंगस्टर पर फिल्में बनाने का पुराना चस्का है और उसी चस्के में आकर उन्होंने मुंबई सागा बना दी है। लेकिन अफसोस कहानी में कोई भी नयापन नहीं है। फिल्म वहीं पुराना मुंबई के अंडरवर्ल्ड भाइयों की कहानी। न ट्रीटमेंट नया है और न ही कहानी। पता नहीं ऐसी फिल्में आज के दौर में कौन देखता होगा। मुंबई क्राइम पर ऐसी फिल्में दर्जनों बार हमने देख ली है। रिवेंज नफरत पैसे की भूख पर आधारित यह फिल्म पुराने आलाप वाली ही कहानी है। पढ़ें पूरा रिव्यु

फिल्म : मुंबई सागा
कलाकार : जॉन अब्राहम, इमरान हाशमी, सुनील शेट्टी, अमोल गुप्ते, महेश मांजरेकर, प्रतीक बब्बर, काजल अग्रवाल, गुलशन ग्रोवर
निर्देशक : संजय गुप्ता
रेटिंग : दो

क्या है कहानी
अमर्त्य राव(जॉन अब्राहम) रेलवे स्टेशन पर सब्जी बेचता है। मुंबई पर गैंगस्टर गायतोंडे (अमोल गुप्ते) का राज हैं। वह हफ्ता वसूली करता है। अमर्त्य चुपचाप सबकुछ सहन करता है। लेकिन कहानी में ट्विस्ट तब आता है, जब अमर्त्य का छोटा भाई हफ्ता देने से इंकार कर देता है। ऐसे में यह बात गायतोंडे को बर्दाश्त नहीं होती है। वह उसके भाई को अधमरा कर देते हैं। अब अमर्त्य तय करता है कि बदला चाहिए। इसमें उसे भाऊ (महेश मांजरेकर ) का साथ मिलता है। यहाँ एंट्री होती है विजय (इमरान हाश्मी ) की। वह एनकाउंटर स्पेशिलिस्ट है। इसके बाद चोर पुलिस शुरू होता है। वहीं घिसा-पिटा फॉर्मूला। बदले की आग में जल रहा भाई, उसका खात्मा करने के लिए एनकाउंटर स्पेशलिस्ट। बीच में नेता और राजनीति का तांडव।

क्या है अच्छा
कहानी के कुछ संवाद याद रह जाने जैसे हैं। बंदूक तो सिर्फ शौक के लिए रखता हूं, डराने के लिए नाम ही काफी है। ऐसे कुछ संवाद हैं, जो अच्छे हैं।

क्या है बुरा
जब निर्देशक इतने सारे कलाकारों को फिल्म में शामिल कर, उनके पास करने को कुछ रहता ही नहीं है तो बस स्क्रीन पर दिखाने के लिए उनको क्यों शामिल करते हैं। सुनील शेट्टी, प्रतीक बब्बर, गुलशन ग्रोवर, काजल अग्रवाल के अलावा और भी अन्य कलाकारों का कुछ खास काम नजर नहीं आया है। इसके अलावा पुराने जमाने वाला एक्शन है। जॉन का यह एंग्री यंग मैन रूप पहले भी कई बार देख चुके हैं। अब वह अंदाज़ उनका बोर करता है। सबकुछ पुराने जमाने की पिक्चर जैसा ही है। बेवजह निर्देशक ने इसे बनाने की जहमत उठाई है।

अदाकारी
जॉन के अभिनय में कोई नयापन नहीं है। वे अपनी पिछली ऐसी कई फिल्मों के हैंग ओवर में ही नजर आते हैं। इमोशन दृश्यों में उनकी कमजोरी फौरन पकड़ में आ जाती है। इमरान हाश्मी के कारण यह फिल्म देखी जा सकती है केवल। अमोल गुप्ते का काम अच्छा है। शेष कलाकारों के लिए फिल्म में करने के लिए कुछ भी नहीं था।

वर्डिक्ट
गैंगस्टर फिल्मों के फैंस को भी न ही पसंद आएगी यह फिल्म।

Review By: अनु वर्मा

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari