-नगर निगम की जर्जर इमारत में रह रहे 80 परिवार

-35 साल पूर्व कर्मचारियों को दिए गए थे क्वार्टर

-पांच सालों से लगा रहे नए मकानों की गुहार

- कभी भी गिर सकती है जर्जर हो चुकी इमारतें

mohit.sharma@inext.co.in

Meerut: रेलवे रोड नाले से तंग गलियों में होते हुए जब पश्चिम की ओर मुड़ते हैं तो रोनकपुरा नाम की बस्ती आ जाती है। यहां पिछले पैंतीस सालों से खड़ी जर्जर इमारत आपको हॉरर फिल्म की याद दिला सकता है। दरअसल, इमारत को देख कर यहां किसी भूत प्रेत के बसने का भ्रम हो सकता है, लेकिन वास्तविकता में यहां नगर निगम के जीते जागते कर्मचारी निवास करते हैं। यदि आपकी इच्छा कर्मचारियों के क्वार्टरों में जाने की हो तो जरा संभल कर जाइएगा। जरा भी असावधानी आपको मौत की दहलीज तक पहुंचा सकती है।

ये है मौत का घर

मौत का घर नाम सुनकर हमारे दिमाग में किसी हॉरर फिल्म का टाइटल जहन में कौंध जाता है। मगर यह किसी फिल्म की स्टोरी नहीं बल्कि नगर निगम की उस इमारत का सच है, जिसमें उसी के अस्सी कर्मचारियों के परिवार रहते हैं। हालांकि यह अलग बात है कि इस इमारत में रहने की बात तो दूर इसे देखने भर से भी आम इंसान की रूह कांप उठती है।

रौनकपुरा अठारह क्वार्टर से मशहूर इस इमारत में 80 कर्मचारियों के लगभग भ्00 पारिवारिक सदस्य रहते हैं। नगर निगम की इस इमारत ने पांच सौ लोगों की जिंदगियों पर सवालिया निशान लगा दिया है। चौंकाने वाली बात तो यह है कि शहर के नीति नियंताओं को इन गरीबों की जिंदगी की न तो कोई सुध है और न ही कोई फिक्र।

शहर के दरोगा को नहीं अपनी सुध

यूं तो नगर निगम के पास शहर की सारी कालोनियों व बस्तियों के रखरखाव का जिम्मा मिला हुआ है। यहां तक की एमडीए जैसे बड़े विभाग भी अपनी कालोनियों को रखरखाव के लिए नगर निगम को ही सौंप दे देते हैं, लेकिन शहर के रखरखाव का दरोगा बना निगम को खुद अपनी ही इमारत के प्रति लापरवाह बना हुआ है।

कर्मचारियों का दर्द

यह इमारत नहीं बल्कि मौत का घर है। किसी भी समय भरभरा कर गिर सकती है। नगर निगम के अफसरों से मिलकर कई बार शिकायत कर चुके हैं, लेकिन कोई बात नहीं बनती।

बच्चन

हम तो नगर निगम के ही कर्मचारी हैं। हमारे अफसर खुद तो आलीशान बंगलों व बेशकीमती कोठियों में रहते हैं और हमें यह भूतिया महल दे रखा है। इमारत की हालत इतनी जर्जर हो चुकी है कि यह किसी भी समय नीचे गिर सकती है।

सचिन

सबसे ज्यादा चिंता तो छोटे-छोटे बच्चों व घर के बुजुर्गो की है। सीढि़यां न होने के कारण कई हादसे हो चुके हैं। दो बच्चों की तो गिर कर मौत हो गई है, जबकि कई गंभीर रूप से घायल हो गए हैं। एक माह पूर्व मेरी सास का नीचे गिरने से हाथ टूट गया।

अन्नो देवी

नगर आयुक्त से मिलकर नए क्वार्टरों की मांग की थी, लेकिन नगर निगम हमसे पहले ये क्वार्टर खाली कराना चाहता है। ऐसे में हम ये क्वार्टर खाली करके कहां रहेंगे। हमने निगम से वैकल्पिक व्यवस्था भी कराने को कहा, लेकिन अफसरों ने हाथ खड़े कर दिए।

रेनू

हमारे या हमारे परिजनों के साथ यदि कोई हादसा होता है, तो इसके लिए पूरी तरह नगर निगम जिम्मेदार होगा। हमने लिखित व मौखिक रूप से कई बार आला अधिकारियों को समस्या बताई, लेकिन कोई राहत नहीं मिली।

जितेन्द्र

कर्मचारियों के आवासों का मामला मेरे संज्ञान में है। उनको डूडा के आवासों में शिफ्ट करने की बात पर विचार किया जा रहा है। जब तक कर्मचारी मकानों को खाली नहीं करेंगे तब तक उनकी मरम्मत नहीं की जा सकती। जल्द ही मरम्मत या निर्माण कार्य शुरू कराया जाएगा।

कुलभूषण वाष्र्णेय, चीफ इंजीनियर नगर निगम

नगर निगम की इमारत

नगर निगम में काम करने वाले फोर्थ क्लास कर्मचारियों को पैंतीस साल पूर्व रोनकपुरा स्थित यह इमारत रहने के लिए दी गई थी। निगम की इस तीन मंजिला इमारत में सौ से अधिक क्वार्टर हैं, जिनमें अस्सी सफाई कर्मियों के परिवार रहते हैं।

जर्जर हो चुकी इमारत

पैंतीस साल पूर्व सफाई कर्मचारियों को एलाट किए गए क्वार्टरों वाली यह इमारत पिछले पांच सालों से जर्जर हालत में पहुंच गई है। कर्मचारियों ने इसकी समस्या से निगम प्रमुख को अवगत कराया, लेकिन स्थिति जस की तस रही।

कभी भी गिर सकती है इमारत

पूरी तरह से जर्जर हो चुकी इस इमारत के मौजूदा हालात ऐसे हैं कि यह किसी भी क्षण भरभरा कर गिर सकती है, जिन क्वार्टरों में कर्मचारियों के परिजन रह रहे हैं, उनका लिंटर टूट-टूट कर नीचे गिरने लगा है। दीवारों की तो हालात ऐसी है कि उनके भीतर की ईटे भी उखड़ कर बाहर निकल आई हैं। प्लास्टर उखड़ने से सरियों का जाल भी अलग से निकल आए हैं।

सीढि़यों की जगह लकड़ी का तख्ता

एक-एक कर गिर रही इमारत की हालत इस कदर सस्ता हाल हो गई है कि टूटे हुए जीने के स्थान पर लकड़ी का तख्ता डाल कर लोग किसी तरह अपना जीवन गुजार रहे हैं। घर की महिलाओं को तो सबसे अधिक फिक्र छोटे बच्चों की है। बच्चे खेलते-खेलते कहीं नीचे न आ गिरे इसलिए क्वार्टरों के सामने लकड़ी लगाकर अस्थाई रूप से बेरीकेडिंग की हुई है।

कई बार हो चुके हैं हादसे

कर्मचारियों ने बताया कि यह इमारत उनके लिए काल का गाल बनती जा रही है। सबसे बड़ी समस्या तो बच्चों व बुजुर्गो के लिए है। छोटे-छोटे बच्चे कई बार खेलते-खेलते जर्जर हो चुकी इमारत से नीचे गिर चुके हैं, जबकि दो बच्चों की नीचे गिरने से मौत भी हो गई।

नगर निगम अफसर बेपरवाह

कर्मचारियों का कहना है उन्होंने नगरायुक्त के सामने कई बार समस्या उठाई है, लेकिन मसले में कोई कार्रवाई नहीं की गई। निगम मुखियाओं से मिलकर कई बार नए क्वार्टरों की मांग की जा चुकी है। मगर निगम की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई।

पानी की नहीं कोई निकासी

दरअसल, नगर निगम की जिस बिल्डिंग में उसके कर्मचारी रह रहे हैं, उसके पीछे एक जोहड़ बना हुआ है। इस जोहड़ में वहां की कई बस्तियों मकबरा डिग्गी, मकबरा आबू, घोसी मोहल्ला व बागडियान जैसे कई बस्तियों का पानी जमा होता है। इन बस्तियों की पानी की निकासी के लिए निगम की ओर से न तो कोई व्यवस्था की गई है और न ही इसके लिए कोई योजना ही बनाई है।

वेतन से काटा जाता है किराया

कर्मचारियों ने बताया कि इन क्वार्टरों के लिए निगम वेतन में से हर माह ख्भ्0 रुपए काटता है। बावजूद इसके उनको साफ और स्वच्छ क्वार्टर नहीं दिए गए हैं। पिछले पैंतीस सालों में हमने अपने वेतन से लाखों रुपए निगम के खाते में जमा कर दिए हैं। इतने रुपयों में तो हमारा खुद का मकान बनाया जा सकता था।

हो सकता है बड़ा हादसा

मौजूदा समय में जिस तरह की हालत निगम की इस इमारत की है। ऐसे में किसी भी हादसे की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता। यदि भविष्य में इमारत गिरने से कोई हादसा होता है तो यह शहर का सबसे बड़ा हादसा होगा।

सवाल पांच सौ लोगों की जिंदगी का

Posted By: Inextlive