- लोकतंत्र सेनानियों ने साझा किये इमरजेंसी के दौर के अनुभव

- बताया किस तरह जुल्म पर उतारू थी सरकार और प्रशासन

LUCKNOW: जय गुरुदेव के शिष्य इंदिरानगर निवासी जयदत्त रस्तोगी उर्फ 'बंधुजी' 12 अगस्त 1975 का वो दिन याद करके आज भी सिहर उठते हैं। देश में इमरजेंसी लागू हुए करीब डेढ़ महीने बीत चुके थे। इसी दौरान आर्यनगर में उनके उस वक्त के निवास पर पुलिस ने दबिश दी और उनके कब्जे से जय गुरुदेव का साहित्य बरामद किया। इस साहित्य में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तानाशाही के खिलाफ खड़े होने का संदेश अंकित था। महज इतनी सी बात में उन्हें जेल में ठूंस दिया गया। बंधुजी ने बताया कि जेल में उन्हें जिस बैरक में रखा गया उसकी क्षमता महज 60 बंदियों को रखने की थी लेकिन, उसमें 200 से ज्यादा लोगों को ठूंस दिया गया था। खास बात यह थी कि इस बैरक में हत्या, रेप व लूट जैसे अपराध के आरोपी बंद थे। बंधुजी ने बताया कि वे 20 महीने जेल में बंद रहे। इस दौरान उनका प्रोफेशनल फोटोग्राफी का बिजनेस चौपट हो गया। घर में पत्नी व चार बच्चों को रोटियों के लाले पड़ गए। सरकार व प्रशासन का खौफ ऐसा कि आस-पड़ोस के लोगों को छोडि़ये रिश्तेदारों ने भी परिवार से दूरी बना ली। उन्होंने बताया कि जेल में मुलाकात करने के लिये उनका 12 साल का बेटा डीएम के यहां जाता था और मुलाकाती पर्ची बनवाता। जिसके बाद मुलाकात हो पाती थी। पत्नी उर्मिला ने उस दौर में किसी तरह बच्चों का पालन-पोषण किया। बंधुजी कहते हैं कि ईश्वर से यही प्रार्थना है कि अब कभी भी इस तरह का समय न आए।

पत्नी ने छोड़ दिया साथ

गोंडा निवासी विजय बहादुर सिंह का खुशहाल जीवन इमरजेंसी ने तहस-नहस कर दिया। लोकतंत्र सेनानी सम्मान समारोह में पहुंचे विजय बहादुर ने बताया कि जिस वक्त इमरजेंसी लागू हुई, उनकी उम्र 25 वर्ष थी। माता-पिता की इकलौती संतान विजय की शादी हो चुकी थी। इमरजेंसी के विरोध में विजय भी सत्याग्रह में कूद पड़े। तुलसीपुर में उन्हें अन्य लोगों के साथ अरेस्ट कर लिया गया। एक दिन तुलसीपुर थाने में रखने के बाद उन्हें गोंडा जेल भेज दिया गया। जहां उन्हें फांसी गारद (खूंखार अपराधियों को रखने की जगह) में बंद कर दिया गया। फांसी गारद में अकेले बंद विजय का सब्र का बांध टूटने लगा। उन्होंने खुद को इस बैरक से निकाले जाने की मांग को लेकर अनशन शुरू कर दिया। विजय ने बताया कि उनके अनशन की खबर दूसरी बैरक में बंद राजनीतिक बंदी रमापति शास्त्री, हंसराज सिंह, मो। यूनुस और मिथिलेश को मिली तो उन्होंने भी अनशन शुरू कर दिया। आखिरकार 20 दिन तक चले अनशन के बाद जेल प्रशासन को उन्हें बाहर निकालना पड़ा और उन्हें राजनीतिक बंदियों के लिये निर्धारित बी श्रेणी की बैरक में रखा गया। विजय ने बताया कि 11 महीने तक वे जेल में रहे इस दौरान उनकी पत्नी सरोजनी उनका घर छोड़कर मायके चली गई। जेल से लौटने पर वे पत्नी को वापस लेने पहुंचे लेकिन, उसने आने से इंकार कर दिया। इस घटना ने उन्हें भीतर तक तोड़ दिया और उन्होंने शांति की तलाश में बौद्ध धर्म अपना लिया।

Posted By: Inextlive