Nag Panchami 2021 : सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी पर्व मनाया जाता है। इस बार दिनांक 13 अगस्त 2021शुक्रवार को नाग पंचमी मनाई जाएगी। कालसर्प दोष निवारण के लिए यह विशिष्ट दिन है। यहां जानें नाग पंचमी पूजन का शुभ मुहूर्त और काल सर्प दोष पूजा और शांति विधान के बारे में...

पं राजीव शर्मा (ज्योतिषाचार्य)। Nag Panchami 2021 : अग्नि पुराण में लगभग 80 प्रकार के नाग कुलों का वर्णन मिलता है, जिसमें अनन्त, वासुकी, पदम, महापध, तक्षक, कुलिक, कर्कोटक और शंखपाल यह प्रमुख माने गये हैं। स्कन्दपुराण, भविष्यपुराण तथा कूर्मपुराण में भी इनका उल्लेख मिलता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राहू के जन्म नक्षत्र "भरणी" के देवता काल हैं एवं केतु के जन्म नक्षत्र ' 'अश्लेषा के देवता सर्प हैं। अत: राहू-केतु के जन्म नक्षत्र देवताओं के नामों को जोड़कर "कालसर्प योग" कहा जाता है। राशि चक्र में 12 राशियां हैं, जन्म पत्रिका में 12 भाव हैं एवं 12 लग्न हैं। इस तरह कुल 144 = 288 कालसर्प योग घटित होते हैं। इस बार नाग पंचमी होगी विशेष।इस बार नागपंचमी पर शुभ फल देने वाले सूर्योदय से हस्त नक्षत्र प्रातः 7:59 बजे तक तदोपरान्त चित्रा नक्षत्र आरम्भ होगा एवं विशेष साध्य योग अपराह्न 1:35 बजे तक तदोपरांत शुभ योग आरम्भ होगा।इस दिन कन्या के चन्द्र के विशेष योग में नागपंचमी मनायी जायेगी। कालसर्प दोष निवारण के लिए यह विशिष्ट दिन है। नागपंचमी के सिद्ध मुहुर्त प्रात: 7:00 बजे से 09:07 बजे तक लाभ,अमृत के चौघड़िया, प्रातः 10:46 बजे से 12:24 बजे तक शुभ के चौघड़िया एवं अपराह्न 3:39 बजे से सायं 6:27 बजे तक चर,लाभ के चौघडिय़ा मुहुर्त में कालसर्प दोष शांति कराना अति उत्तम रहेगा। वर्ष के मध्य में कालसर्प योग जिस समय बने उस समय अनुष्ठान भी सर्वश्रेष्ठ रहता है। कालसर्प योग यज्ञ का आरम्भ या समाप्ति पंचमी, अष्टमी, दशमी या चुतुर्दशी तिथि वार चाहें जो भी हो, भरणी,आद्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा,उत्तराषाढ़ा,अभिजित एवं श्रवण नक्षत्र* श्रेष्ठ माने जाते हैं परन्तु जातक की राशि से ग्रह गणना का विचार करना परम आवश्यक होता है।
कालसर्प दोष, पूजा/शांति विधान
प्रात:काल स्नान आदि से निवृत्त होकर पूजा के स्थान पर कुश का आसन स्थापित करके सर्व प्रथम हाथ में जल लेकर अपने ऊपर व पूजन सामग्री पर छिड़कें, फिर संकल्प लेकर कि मैं कालसर्प दोष शांति हेतु यह पूजा कर रहा हूँ। अत: मेरे सभी कष्टों का निवारण कर मुझे कालसर्प दोष से मुक्त करें। तत्पश्चात् अपने सामने चौकी पर एक कलश स्थापित कर पूजा आरम्भ करें। कलश पर एक पात्र में सर्प-सर्पनी का यंत्र एवं कालसर्प यंत्र स्थापित करें, साथ ही कलश पर तीन तांबे के सिक्के एवं तीन कौडिय़ां सर्प-सर्पनी के जोड़े के साथ रखें, उस पर केसर का तिलक लगायें, अक्षत चढ़ायें, पुष्प चढ़ायें तथा काले तिल, चावल व उड़द का पका कर शक्कर मिश्रित कर उसका भोग लगायें, फिर घी का दीपक जला कर निम्न मंत्र का उच्चारण करें:-
ऊँ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु।
ये अंतरिक्षे ये दिवितेभ्य: सर्पेभ्यो नम: स्वाहा।।
राहु का मंत्र- ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:।
अब गणपति पूजन करें, नवग्रह पूजन करें, कलश पर रखीं समस्त नाग-नागिन की प्रतिमा का पूजन करें व रूद्राक्ष माला से उपरोक्त कालसर्प शांति मंत्र अथवा राहू के मंत्र का उच्चारण एक माला जाप करें। उसके पश्चात् कलश में रखा जल शिवलिंग पर किसी मंदिर में चढ़ा दें, प्रसाद नंदी (बैल) को खिला दें, दान-दक्षिणा व नये वस्त्र ब्राह्मणों को दान करें। कालसर्प दोष वाले जातक को इस दिन व्रत अवश्य करना चाहिए। श्रावण मास की शुक्ल पंचमी को नाग पूजा का विधान है इस दिन पांचो नाग (अनन्त, वासुकी, तक्षक, कर्कोटक और पिंगल) की इसीलिए इसे नाग पूजा कहा जाता है।
कालसर्प दोष शांति मंत्र
ऊँ नागकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि
तन्नो सर्प: प्रचोदयात्

भगवान शिव के गले का श्रृंगार हैं नाग देवता
नाग देवता भगवान शिव के गले का श्रृंगार हैं,इसलिये सावन में भगवान शिव के साथ साथ शिव परिवार और नागों की भी पूजा करनी चाहिए।श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि नाग पंचमी के रूप में मनाई जाती है। इस दिन पांच फन वाले नाग देवता की पूजा करके उन्हें चन्दन दूध,खीर पुष्प आदि अर्पित करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं, इससे नाग देवताओं से भक्तों को कोई डर नहीं रहता।मार्कण्डेय ऋषी ने शिव भक्ति से लम्बी आयु का वरदान प्राप्त किया।चंद्रमा को प्रजापति दक्ष ने छय रोग होने पर श्राप दे दिया था।चन्द्रमा ने भगवान शंकर की आराधना की और वे श्राप मुक्त हो गए।इस कथा के अनुसार ब्रह्मा जी के कहने पर दक्ष प्रजापति ने अपनी पत्नी आसिक्री के गर्भ से साठ कन्याएँ उत्पन्न कीं।वे सभी अपने पिता दक्ष से बहुत प्रेम करती थीं।दक्ष प्रजापति ने उनमें से दस कन्याएं धर्म को,तेरह कश्यप ऋषि को, सत्ताईस चंद्रमा को,दो भूत को,दो अंगिरा ऋषि को,दो कृशाश्व और शेष चार ताकछर्य नामधारी कश्यप को ब्याह दीं।इन्ही दक्ष कन्यायों की वंश परम्परा तीनों लोकों में फैली है।
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Posted By: Shweta Mishra