Dehradun : दुनिया की सबसे दुर्गम कठिन और लंबी पैदल धार्मिक यात्रा मानी जाने वाली नंदा देवी राज जात यात्रा इसी साल होनी है. गवर्नमेंट और प्राइवेट लेवल पर तैयारियां शुरु हो चुकी हैं. 12 साल बाद संपन्न होने वाली इस यात्रा को इस बार हिमालय कुंभ भी नाम दिया गया है. तमाम पुराणों गाथाओं इतिहास और किस्से-कहानियों में यात्रा का जिक्र है. दुनियाभर में फेमस होने के कारण ये धार्मिक यात्रा सुनने और पढऩे को मिल जाती है लेकिन इस बार यात्रा को बतौर वीडियो फिल्म के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की जा रही है. हालांकि शुरुआत में यह फिल्म गढ़वाली भाषा में तैयार होगी जो जरुरत पडऩे पर दूसरी भाषाओं में रिलीज की जाएगी. वीडियो के जरिए उत्तराखंड की कला और संस्कृति के हिमायती कलाकार यात्रा के मकसद को गहराई से समझाना चाहते हैं.


सितंबर में होगी यात्रा


इस साल सितंबर में नंदा देवी राज जात यात्रा की शुरुआत होगी। मान्यताओं के अनुसार बड़ी यात्रा हर बारह सालों में एक बार होती है, लेकिन 2012 में कुछ धार्मिक कारणों से न हो पाने के कारण यात्रा 2013 में होनी है। हालांकि वैसे नंदा देवी राज जात यात्रा की छोटी यात्रा हर साल आहूत होती है, लेकिन वल्र्डफेम के तौर पर 12 सालों में ही सबसे बड़ी नंदा देवी राज जात यात्रा होती है। इससे पहले 2000 में बड़ी यात्रा संपन्न हुई थी। यात्रा के महत्व, विश्व लोकप्रियता और रहस्य को देखते हुए इस बार राज्य के कला-संस्कृति प्रेमियों ने फिल्म के जरिए मां नंदा के श्रद्धालुओं तक पहुंचाने की कोशिश शुरू की है। स्क्रिप्टिंग पूरी होने के साथ ही गीत रिकॉर्ड हो चुके हैं। जिनकी रिकॉर्डिंग 15 फरवरी तक मार्केट में आ जाएंगे। दो पार्ट में तैयार होने वाली मां नंदा की पहले पार्ट की फिल्म मई में रिलीज कर दी जाएगी और दूसरी यात्रा संपन्न होने के बाद रिलीज होगी। नौटी, कुलसारी, नंद केसरी, देवाल, वाण, मुंदोली, वैदनी बुग्याल जैसे स्थानों पर फिल्म की शूटिंग होगी।  First time film on yatra  

फिल्म तैयार करने वाले कलाकारों का कहना है कि अब तक वल्र्डफेम मां नंदा देवी राज जात यात्रा का महत्व गीतों, मंगल गीतों और कहानियों से अलंकृत किया जा चुका है, लेकिन यात्रा का महत्व वीडियो फिल्म के जरिए दुनियाभर तक पहुंचाने की कोशिश की जाएगी। देवी मां नंदा के जन्म से लेकर बड़े होने तक की पूरी कहानी को पिरोने की कोशिश की जाएगी। कहानी के तौर पर बताने की कोशिश की जाएगी कि नंदा गढ़वाल के राजाओं के साथ-साथ कुमाऊं के कत्युरी राजवंश की ईष्टदेवी रही थी। इसीलिए नंदा देवी का राज राजेश्वरी भी कहा जाता है। कहा ये भी जाता है कि नंदा देवी पार्वती की बहन के रूप में देखा जाता है। कई पारंपरिक मान्यताएं

मान्यताओं के अनुसार नंदा देवी दक्ष प्रजापति के सात बेटियों में से एक थी। जिनका विवाह शिव के साथ होना माना जाता है। नंदा को शिवा, सुनंदा, शुभानंदा और नंदिनी के नामों से भी जाना जाता है। एक जागर में ये भी जाता है कि नंदा नंद महाराज की बेटी थी। जो कृष्ण जन्म से कंस के हाथों से निकलकर आकाश में उड़कर नगाधिराज हिमालय की पत्नी मैना की गोद में पहुंच गई थी। एक अन्य जागर में नंदा देवी को चांदपुर गढ़ के राजा भानुप्रताप की पुत्री बताया जाता है। वहीं एक और जागर में वर्णन है कि नंदा का जन्म ऋषि हिमवंत व उनकी पत्नी मैना के घर में हुआ था। ऐसी कई धारणाएं हैं। गढ़वाल में ये यात्रा बड़ी धूम-धाम से मनाई जाती है। जात का अर्थ होता है देवयात्रा। लोक विश्वास ये है कि हिंदी महीने के भादो कृष्णपक्ष में नंदा अपने मैत(मायके) पहुंचती हैं। जिनको कुछ दिन बाद अष्टमी को मैत से विदा किया जाता है। जिनको डोली में बिठाकर वस्त्र, आभूषण, कलेवा और दहेज जैसे उपहार देकर पारंपरिक तरीके से विदा किया जाता है। बर्फीले इलाकों से गुजरती है यात्राफेमस इतिहासकार एटकिंसन ने भी हिमालयन गजेटियर में हर बारहवें वर्ष में राजजात मनाए जाने का वर्णन किया है। करीब 250 किलोमीटर की ये पैदल यात्रा नौटी(चमोली) से शुरू होकर घने जंगलों, पथरीले मार्गों, दुर्गम चोटियों और बर्फीले पहाड़ों से होते हुए होम कुंड तक पहुंचती है। वाण गांव से आगे चलकर यात्रा में महिलाओं, बच्चों, चमड़े की वस्तुओं, गाजे-बाजे प्रतिबंधित होते हैं। इसमें नौटी के नौटियाल, कासुवा के कुवरों के अलावा बधाण के 14 सयाने, चांदपुर के 12 थोकी ब्राह्मण व अन्य पुजारियों के साथ जिला प्रशासन व केंद्र व स्टेट गवर्नमेंट के तमाम डिपार्टमेंट इस यात्रा को संपन्न कराने में ताकत झोंकते हैं। आज भी मौजूद हैं जहां कंकाल
कहा जाता है कि राजा यशोधवाल अपनी यात्रा में नियमों के उल्लंघन कर गए। रात्रि विश्राम में उन्होंने नृतिकाओं के साथ रास किया तो देवी ने सभी नृत्यकाओं को पत्थर बना दिया। इसी लिए वहां का नाम आज भी पातर नचौनियां कहा जाता है। जबकि कन्नौज के राजा यशोधवल, उनकी पत्नी, बच्चों तथा राज परिवार के मेंबर्स के अलावा उनके साथ गए यात्रियों को भी देवी के कोपभाजन का शिकार होना पड़ा। जिनके कंकाल आज भी वहां देखने को मिलते हैं। कुछ कश्मीर के वीर सेनापति जोरावर सिंह के अवशेष मानते हैं। इस तरीके से कलाकारों द्वारा तैयार की जाने वाली फिल्म में ये कहानी दर्शाई जाएगी। जिसमें प्रमुख रूप में गायक कार किशन महिपाल, फेमस फोक सिंगर नरेंद्र सिंह नेगी, नंद किशोर हटवाल और गढ़वाल युनिवर्सिटी के सीनियर प्रोफेसर डा। डीआर पुरोहित फिल्म को तैयार करने वालों में शामिल हैं। इन सभी कलाकारों व शिक्षाविदों ने 2000 की नंदा देवी राज जात यात्रा में भी ऐसे ही काम कर ख्याति उपलब्ध की है। ये प्रोजेक्ट करीब 20 लाख रुपए का होगा। जिसमें सबसे ज्यादा सहयोग सीडी निर्माता कंपनी हिमालयन फिल्म्स बताया गया है।
'मां नंदा देवी राज जात यात्रा की वीडियो फिल्म बनाने का प्रयास किया जा रहा है। काफी काम हो चुका है। जिसमें यात्रा के पूरे इतिहास को दर्शाया जाएगा.'-किशन महिपाल, गढ़वाली गायक'हमने तो 2000 की यात्रा में कैसेट निकालकर यात्रा के महत्व को लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की। इस बार भी कुछ कलाकार मेहनत कर रहे हैं। जिसमें हमारा भी सहयोग है। काम शुरू हो चुका है.'-नरेंद्र सिंह नेगी, फोक सिंगर

Posted By: Inextlive