JAMSHEDPUR: लेखक का काम तथ्य सामने रखना नहीं बल्कि तथ्य पर संदेह करना है। यह बात साकची स्थित करीम सिटी कॉलेज (केसीसी) में ¨हदी विभाग द्वारा शनिवार से शुरू हुए राष्ट्रीय सेमिनार को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर प्रो अपूर्वानंद ने कही। करीम सिटी कॉलेज में भीष्म साहनी रचनाकर्म और वर्तमान परिदृश्य विषय पर आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए प्रोफेसर अपूर्वानंद ने कहा कि भीष्म साहनी के हनुष नाटक का जिक्र करते हुए कहा कि साहित्यकार को इंसान में दिलचस्पी होती है, साहित्यकार सच नहीं, सच्चाई की तलाश करता है।

भीष्म साहनी अधिक सार्थक

प्रोफेसर अपूर्वानंद से पहले विख्यात रंगकर्मी और टीपीएस कॉलेज, पटना के ¨हदी विभागाध्यक्ष डा। जावेद अख्तर खां ने भीष्म साहनी द्वारा अभिनीत फिल्मों और उनके लिखे नाटकों के हवाले से भीष्म साहनी की रचनात्मकता और उसकेपर्दे में सामयिक परिदृश्य पर प्रतिवाद की मिसालें पेश कीं। कार्यक्रम का विषय प्रवेश कराते हुए सेमिनार के संयोजक डा। सुभाष चंद्रगुप्त ने कहा कि समस्याएं बदली नहीं बल्कि बढ़ी हैं इस लिये भीष्म साहनी पहले के अपेक्षा अधिक सार्थक हैं। स्थानीय साहित्यकार जयनंदन ने भी अपने विचार प्रकट किये। सभी आगंतुकों का स्वागत प्रभारी प्राचार्य डा। मोहम्मद रेयाज ने किया और धन्यवाद ज्ञापन हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डा। सफीउल्लाह अंसारी ने किया। सत्र का संचालन डा। संध्या सिन्हा ने किया।

वक्तव्य प्रस्तुत किया

विशेष सत्र में प्रोफेसर अपूर्वानंद की अध्यक्षता में हैदराबाद विश्वविद्यालय से आए डा। गजेंद्र कुमार पाठक और डाल्टनगंज से डा। कुमार वीरेंद्र ने अपना-अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। डा। पाठक ने 'तमस' के आलोक में उन कारकों की ओर इंगित किया जिन्होंने देश के विभाजन के समय समाज को तोड़ने का कार्य किया और जो आज भी सक्रिय है। डा। कुमार वीरेंद्र ने भीष्म साहनी की कहानियों के माध्यम से उनके द्वारा प्रदर्शित साझी संस्कृति और इसके टूटने के दर्द को बयान किया। इसी सत्र में समाज सेवी शशि कुमार ने भी अपने विचार रखे। सत्र का संचालन डा। सुभाष गुप्ता ने किया और धन्यवाद ज्ञापन प्राफेसर अहमद बद्र ने किया.

Posted By: Inextlive