Happy Navratri 2020 Durga Shakti Significance & Images: नवरात्रि का पावन त्‍योहार शुरु हो चुका है। हम सब एक अदृश्य जगमगाती ब्रह्मांडीय शक्ति के ओज में तैर रहे हैं जिसे &देवी& कहा गया है। देवी या देवी माँ इस सम्पूर्ण सृष्टि का गर्भ स्थान है। वह गतिशीलता ओज सुंदरता धैर्य शांति और पोषण की बीज हैं। वह जीवन ऊर्जा शक्ति हैं।एक मां को अपने बच्चे के लिये पूरा प्रेम होता है। देवी माँ को भी अपने बच्चों के लिये हर हाल में असीम प्रेम है जिसमें इस सम्पूर्ण जगत के सभी जीव शामिल हैं।

Navratri 2020 Durga Shakti Significance in Hindi: नवरात्रि के नौ रातों में देवी के सभी नाम रुपों की आराधना की जाती है। नामों का अपना एक महत्व होता है। हम चंदन के वृक्ष को उसके सुगंध की स्मृति द्वारा याद करते हैं। देवी का हरेक नाम और रुप दिव्य शक्ति के एक विलक्षण गुण या स्वरुप का प्रतीक है। हम उस रूप को याद करके या देवी के उन नामों का उच्चारण करके हम उन दिव्य गुणों को अपनी चेतना में जगाते हैं जो कि आवश्यकता पड़ने पर हमारे अंदर प्रकट हो जाते हैं।

Sharad Navratri 2020 Importance & Pujan : नाम रूप वाले बाहरी स्थूल जगत से ऊर्जा के सूक्ष्म जगत की ओर की यात्रा ही नवरात्रि है, जिसका आह्वाहन विभिन्न यज्ञों द्वारा किया जाता है और जो कि हमें अन्तःकरण की गहराईयों में ले जाकर आत्मसाक्षात्कार कराती है।

पहले तीन दिनों तक देवी के दुर्गा स्वरुप की आराधना करतें है। दुर्गा का एक अर्थ पहाड़ी होता है। बहुत कठिन कार्य के लिये प्रायः दुर्गम कार्य कहा जाता है। दुर्गा की उपस्थिति में नकारात्मक तत्व कमजोर पड़तें हैं। दुर्गा को जय दुर्गा भी कहते हैं या जो विजेता बनाती है। वे दुर्गति परिहारिणी हैं - वे जो विघ्नों को हरण कर लेती हैं। वे नकारात्मकता को सकारात्मकता में परिवर्तित करती है। कठिनाइयों को भी उनके समक्ष खड़े होने में कठिनता अनुभव होती है। देवी को शेर या चीते पर सवारी करते हुये दिखाया गया है, जो कि साहस और वीरता का प्रतीक है – यही दुर्गा देवी का मूल सार है।

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दुर्गा को लाल रंग से जोड़ा गया है. उनके रूप को लाल साड़ी पहने हुए दर्शाया गया है. लाल रंग गतिशीलता का प्रतीक है - एक देदीप्यमान मनोभाव, एक स्फ़ूर्त ऊर्जा. आप प्रशिक्षित और कुशल हो सकते हैं, लेकिन अगर आप अपने प्रयासों को, वस्तुओं को और लोगों को एक साथ लेते हुए चलायमान करने में सक्षम नहीं हैं तो फल देरी से मिलता है. लेकिन जब आप दुर्गा से प्रार्थना करते हो तब वे उसे संभव कर देती हैं. फल तुरंत मिलता है।

देवी दुर्गा का महिषासुरमर्दिनी रुप है जौ कि महिषा का विनाश करती है। महिषा शब्द का अर्थ भैंस। है जो कि आलस्य, प्रमाद और जड़ता का प्रतीक है। ये अवगुण आध्यात्मिक और भौतिक विकास में बाधा हैं। देवी जो कि सकारात्मक ऊर्जा का भंडार है उनकी उपस्थिति में आलस्य और जड़ता समाप्त हो जाती है।

दूसरे तीन दिवसीय अवधि में देवी के लक्ष्मी स्वरुप की आराधना की जाती है। लक्ष्मी धन और संपदा की देवी है। धन संपदा हमारे जीवन के संरक्षण और विकास करने के लिये एक बहुत महत्वपूर्ण अंश है। यह रुपये पैसे से कहीं ज्यादा है। इसका अर्थ है ज्ञान, कुशलता और योग्यता की प्रचुरता। लक्ष्मी वह ऊर्जा है जो कि हमारे पूरे आध्यात्मिक विकास और भौतिक समृद्धि के रूप में प्रकट होती है।

अंतिम तीन दिन हम सरस्वती को समर्पित करते हैं। सरस्वती ज्ञान की देवी है - जो कि हमें स्व का सार समझाती है। वे प्रायः एक चट्टान पर विराजमान दिखाई जाती है, ज्ञान एक चट्टान की भांति है, वह हमारा दृढ आधार है। वह हमारे साथ हमेशा रहता है। वे वीणा बजाती हैं, एक संगीत वाद्य जिससे निकलने वाले तारतम्य मधुर स्वर मन में शांति और समरसता लाते हैं। उसी प्रकार आत्म ज्ञान जीवन में विश्राम और उत्सव दोनो लाता है। देवी सरस्वती समझ की सागर हैं और विभिन्न प्रकार की विद्याओं में स्पंदन करने वाली चेतना हैं। वे आध्यात्मिक प्रकाश का स्त्रोत हैं, अज्ञानता की नाशक हैं और ज्ञान का स्त्रोत हैं।

देवी के अनेक नामों और रुपों की आराधना करते समय हम उनको विविध रंगों और सुगंधों के पुष्प जैसे चमेली, हिबिस्कस, कमल, लिलि,गुलाब आदि अर्पित करते हैं। जब हम बाहरी सुंदरता से भीतर की ओर जाते हैं और दिव्य गुणों में भीगते हैं तो हमारी चेतना भी खिल जाती है। हम अपनी पूर्ण खिली हुई चेतना को भी अर्पित कर देते हैं. एक खिली चेतना के द्वारा करी गयी उनकी पूजा ही सर्वश्रेष्ठ चढ़ावा है।

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प्रार्थना हमेशा किसी इच्छापूर्ती से जुड़ी हुई है। जब आप पूर्ण होते हैं, तब एक श्रृंखलाबद्ध प्रतिक्रिया बन जाती है। जब आप किसी एक कार्य में सफल हो जातें है तो आप अन्य सफलताओं के लिये प्रयासरत हो जातें हैं। इसलिये यह आवश्यक नही है कि आप संतुष्ट हो जाये। चेतना की प्रकृति उत्साह, कर्म के लिये प्रेरित होना है। गतिशीलता के लिये प्रार्थना करें, लेकिन स्थिरता अनुभव करें।

प्रकृति दिव्य माता है। यह सृष्टि तीन गुणों से बनी है: सत्व, रजस और तमस। सत्व स्थिरता, मन की स्पष्टता, उत्साह और शांति से जुड़ा है। रजस कर्म के लिये आवश्यक है लेकिन प्रायः ज्वर उत्पन्न करता है। तमस जड़ता है और इसके असंतुलन से आलस्य, सुस्ती और अवसाद आता है। जब आप तमस को ठीक से संभाल लेते हैं तो आप सत्व की ओर बढ़तें हैं। इस रचना का हर जीव इन तीन गुणों की कठपुतली है। इस चक्र से बाहर कैसे निकला जाये, और इसकी सीमा से बाहर कैसे आया जाये?

उसके लिये आपको अपना सत्व बढ़ाना होगा और ध्यान, मौन और शुद्ध भोजन की सहायता से इस चक्र से बाहर निकला जा सकता है। इन गुणों के परे निकल कर आप शिव तत्व में स्थित हो सकतें हैं जो कि विशुद्ध और अनंत चेतना है। प्रकृति विपरीत गुणों से परिपूर्ण है जैसे दिन और रात,सर्दी और गर्मी, दर्द और आनंद, सुख और दुख। विपरीत गुणों से ऊपर उठ कर, द्वैत से बाहर आकर, एक बार फिर शिव तत्व को प्राप्त किया जा सकता है।

यही नवरात्रि के दौरान होने वाली पूजा का महत्व है - अप्रकट और अदृश्य ऊर्जा का प्रकटीकरण, उस देवी का, जिनकी कृपा से हम गुणों से बाहर आ सकते हैं और परमतत्व को प्राप्त कर सकते हैं जो कि अविभाजित, अविभाजीय, शुद्ध, और अनंत चेतना है। यह जब ही संभव है जब आप गुरुतत्व में विलीन हो जातें है, गुरु की उपस्थिति में ही।

Posted By: Chandramohan Mishra