NEET, JEE exams : छह राज्यों के मंत्री पहुंचे सुप्रीम कोर्ट, परीक्षा कराने के आदेश के रिव्यू की मांग
नई दिल्ली (पीटीआई)। रिव्यू याचिका दाखिल करने वालों में पश्चिम बंगाल के मंत्री मोलोय घटक, झारखंड के रामेश्वर ओरांव, राजस्थान के रघु शर्मा, छत्तीसगढ़ के अमरजीत भगत, पंजाब के बीएस सिद्धू और महाराष्ट्र के उदय रवींद्र सावंत शामिल हैं। याचिका में एडवोकेट सुनील फर्नांडीज ने कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला परीक्षा में शामिल होने वाले छात्रों की संतोषजनक सुरक्षा की चिंताओं को व्यक्त नहीं करता है। 17 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर में होने वाली मेडिकल और इंजीनियरिंग में प्रवेश के लिए होने वाली एनआईआईटी और जेईई परीक्षा में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था।हर जिले में नहीं बन सका एक परीक्षा केंद्र
कोर्ट ने कहा था कि जीवन चलते रहना जरूरी है और महामारी की वजह से छात्रों का कीमती साल बर्बाद नहीं किया जा सकता। सर्वोच्च अदालत ने सयंतन बिस्वास और अन्य की याचिका खारिज कर दी थी जिसमें उन्होंने नेशनल टेस्टिंग एजेंसी जो एनआईआईटी और जेईई दोनों की परीक्षाएं करवाती है, उसे निर्देश देने के लिए कहा था। सुनवाई की दौरान सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुरक्षा के सभी इंतजाम के आश्वासन दिए थे। परीक्षा कराने के निर्णय को विवेकहीन बताते हुए याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार के पास पर्याप्त समय था कि वह एनआईआईटी (यूजी) और जेईई (मेंस) की प्रवेश परीक्षा के लिए प्रत्येक जिले में कम से कम एक केंद्र बनाए न कि एक ही जिले में ढेर सारे केंद्र बनाए।सिर्फ पंजीकरण का मतलब मंजूरी नहींयाचिका में कहा गया है कि एग्जाम के लिए लाखों की संख्या में पंजीकरण कराने का मतलब यह नहीं है कि छात्रों ने केंद्रों पर उपस्थित होकर परीक्षा देने की मंजूरी दे दी है। 17 अगस्त का आदेश रहस्यात्मक और भी साफ तौर पर बोलने वाला नहीं था। उसमें इस मामले की अहमियत, जटिलता और तमाम दृष्टिकोण से विचार नहीं किए गए थे। याचिका में कहा गया है कि कोर्ट द्वारा सिर्फ दो वजहें बताई गईं कि जीवन की निरंतरता जरूरी है और छात्रों का एक साल बर्बाद नहीं किया जा सकता। दोनों ही बातें मुद्दे की आधिकारिक और न्यायिक जांच की व्यापक पूर्ति नहीं करते।