-डफरिन अस्पताल में घिसे हुए मैचिंग ट्यूब से हो रहा हीमोग्लोबिन चेक

-गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य के साथ हो रहा खिलवाड़

-अंदाजे से बनाई हुई रिपोर्ट के आधार पर मरीज का इलाज किया जा रहा है

-जांच रिपोर्ट में जरा सा हेर-फेर पड़ सकता है मरीज पर भारी

Meerut : मेरठ के डफरिन अस्पताल ने हाल ही में एनएचएम की कायाकल्प योजना के तहत ऑल यूपी में भले ही दसवां स्थान प्राप्त किया है, लेकिन क्या आपको पता है अस्पताल में घिसे हुए मैचिंग ट्यूब से गर्भवती महिलाओं का हीमोग्लोबिन चेक किया जा रहा है। अंदाजे से बनाई हुई रिपोर्ट के आधार पर मरीज का इलाज किया जा रहा है, जो मरीज के लिए जानलेवा साबित हो सकता है।

मिट चुका स्केल

परखनली के आकार के मैचिंग ट्यूब पर एक स्केल पैमाना बना होता है। जिसके आधार पर हीमोग्लोबिन का स्तर पता किया जाता है। डफरिन में जिस ट्यूब का इस्तेमाल किया जा रहे हैं। वे इतने पुराने हैं कि उन पर से स्केल मिट चुका है। टेक्नीशियन स्केल के बिना अंदाजे से ही मरीजों को रिपोर्ट सौंप रहे हैं।

150 रुपए की आती है ट्यूब

इस ट्यूब की कीमत महज 150 रुपए होती है और ट्यूब अमूमन चार माह तक तक चलता है। ज्यादा मरीजों की जांच होने पर यह दो माह भी चले तो साल भर में महज एक हजार रुपए का खर्च आता है। इसके बावजूद डफरिन में चंद पैसे बचाने के लिए महीनों पुराने घिसे-पिटे ट्यूब से हीमोग्लोबिन की जांच की जा रही है।

गलत रिपोर्ट पड़ सकती है भारी

गलत रिपोर्ट गर्भवती महिलाओं और गर्भस्थ शिशु पर भारी पड़ सकती है। हीमोग्लोबिन कम या ज्यादा होने पर डॉक्टर महिलाओं के खान-पान में बदलाव करते हैं और उन्हें दवाइयां भी देते हैं। अगर कम या ज्यादा हीमोग्लोबिन को सामान्य बता दिया जाए तो उसका ट्रीटमेंट भी सामान्य तरीके से किया जाता है। ऐसे में महिला व उसके गर्भ में पल रहे बच्चे के शारीरिक व मानसिक विकास पर विपरीत असर पड़ सकता है।

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रोजाना 100 जांच

डफरिन में रोजाना करीब 100 से ज्यादा जांच होती हैं। साथ ही 200 मरीजों की ओपीडी होती है। सभी नए मरीजों और गर्भवती महिलाओं की खून की जांच की जाती है, लेकिन खराब मैचिंग ट्यूब का इस्तेमाल होने के कारण यह नहीं कहा जा सकता की रिपोर्ट सही है या गलत। सूत्रों के अनुसार यह लापरवाही काफी दिनों से चल रही है, लेकिन न जिम्मेदार अफसरों को कोई फिक्र है न टेक्नीशियन को।

गर्भवती महिला का हीमोग्लोबिन लेवल कितना है। इसकी सही जानकारी जरूरी है। गलत रिपोर्ट का असर मां और बच्चे दोनों पर हो सकता है। कम हीमोग्लोबिन होने पर गर्भवती महिला को आयरन, विटामिन जैसी दवाएं दी जाती हैं।

-डॉ। सीमा अग्रवाल, महिला रोग विशेषज्ञ

सभी अस्पतालों में समय सीमा तक ही टेस्टिंग ट्यूब यूज करने के आदेश हैं। यदि उसके बाद भी टेक्नीशियन पुराने से जांच कर रहे हैं तो ये गलत है। संबंधित अस्पताल में मामले का पता किया जाएगा।

-डॉ। रमेश चंद्रा, सीएमओ मेरठ

Posted By: Inextlive