सरहद पार कुदरत के कहर के शिकार दर्जनों लोग अब काशी में आकर शरणागत हैं. फिलहाल गेस्ट हाउस या फिर नेपालियों के मुहल्ले में इन्होंने पनाह ली है. लेकिन जब तक सिचुएशन सामान्य न हो जाए, ये बाबा विश्वनाथ की नगरी में ही रहना चाहते हैं. काशी पहुंचे नेपाल के वाशिंदों की माने तो अभी और भी लोग लोग यहां आने को हैं. जानिये क्यों यहां आए हैं नेपाल के भूकम्प पीडि़त, अंदर के पेज पर..

वहां टूटा आशियाना तो यहां ढूंढ रहे ठिकाना

-नेपाल के जलजले में अपना सबकुछ गंवाने वाले पहुंच रहे हैं बनारस

- गेस्ट हाउस और धर्मशालाओं में गुजार रहे रात, ढूंढ रहे हैं किराये का मकान

- बहुत से लोग रिलेटिव के यहां जमाया है डेरा, खोज रहे रोजी-रोटी का जुगाड़

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VARANASI:

जब से होश संभाला, तब से खुद को हिमालय की गोद में बसे नेपाल की वादियों में पाया. बाबा पशुपतिनाथ के धाम में डेली हाजिरी लगाना आदत में शुमार था. जहां नजरें जातीं, हर ओर एक सुहाना नजारा दिल को सुकून देता था. लेकिन अब जहां भी देखो कब्रिस्तान नजर आता है. लोगों की चीख-पुकार, कदम-कदम पर लाशें देख रूह कांप जाती है. मौत के कई झटकों ने हजारों लोगों की जिंदगी और ठौर-ठिकाने को नेस्तनाबूत कर दिया है. अब वहां रहना भूखो-मरने जैसा है. न घर है, ना काम है और जो भी चीजें हैं उनका भाव इतना ज्यादा है कि महीने भर की कमाई भी कम पड़ जाए. ये दर्द है उनका जिनकी जिंदगी तो नेपाल में आए भूकम्प ने बख्श दी मगर घर-बार और कारोबार, सब छीन लिया है. नेपाल में सब कुछ गंवा कर बनारस में गुजर-बसर के लिए पहुंचे ऐसे कुछ नेपाली लोगों की मुलाकात आई नेक्स्ट से हुई.

आशियाने की तलाश में

बिना किसी गुनाह के ही नेपाल के लोगों के हालात ऐसे हो गये है कि लोग अपना आशियाना घर-बार छोड़कर अब भारत के शहरों में ठिकाना ढूंढ रहे हैं. गोरखपुर, महाराजगंज के बाद कुछ लोग बनारस आ पहुंचे हैं. काठमाण्डू से बनारस आने वाले की संख्या फिलहाल दो दर्जन के करीब है लेकिन इनका कहना है कि सैकड़ों लोग रास्ते में है और जल्द ही बनारस में होंगे. फिलहाल बनारस पहुंचने वालों में कोई अपने रिलेटिव के यहां डेरा जमाये हुए हैं तो कोई धर्मशाला या गेस्ट हाउस की शरण में है. ये सभी अब किराये का कमरा या मकान की तलाश में जुट गए हैं क्योंकि इन्हें पता है कि आने वाले कई महीने उन्हें यहीं गुजारना है, जब तक नेपाल में स्थिति सामान्य नहीं होती.

ललिता घाट पर सबसे ज्यादा

वैसे तो कैंट के आस-पास के धर्मशालाओं और गेस्ट हाउस में कुछ भूकम्प पीडि़तों ने ठिकाना बना लिया है. लेकिन इनकी ज्यादा संख्या ललिता घाट के नेपाली मंदिर के धर्मशाला में है. यहां एक दर्जन से ज्यादा भूकंप पीडि़त पनाह लिये हुए हैं. इसके अलावा बिखरे हुए रूप में गोदौलिया स्थित लॉज में भी कुछ ठहरे हुए हैं. इन सभी को अब बड़ी ही शिद्दत से स्थायी ठिकाने के साथ काम की तलाश है. इसमें इनकी मदद वो लोग कर रहे हैं जो पहले से बनारस में मौजूद हैं. चाहे वो ललिता घाट के वाशिंदे हो, फ्9 जीटीसी के गोरखा या फिर सम्पूर्णानंद संस्कृत यूनिवर्सिटी या तिब्बती इंस्टीट्यूट के टीचर्स और स्टूडेंट्स.

बस स्टेशन पर गुजारी रात

नेपाल के जलजले में अपना सबकुछ गंवा कर बनारस लौटे काठमाण्डू निवासी रोमेश ने बताया कि वहां अब कोई रहना नहीं चाहता है. दो दिन में इतनी बार भूकंप के झटके महसूस हुए जितना हमने जिंदगी में पढ़ा भी नहीं था. रोमेश भरी आंखे से बोले कि रात तो मैंने रोडवेज बस स्टेशन पर काट ली. अब किसी ठिकाने की तलाश है. मेरा तो सबकुछ बर्बाद हो गया. परिवार के कुछ सदस्य भी लापता है. भूकंप पीडि़तों की सरकार तो मदद कर रही है लेकिन फिर भी वहां गुजर बसर करना बहुत मुश्किल हो गया है. पेट पालने के लिये कुछ नहीं बचा है. अब तो टूरिस्ट की भी आस नहीं है क्योंकि सालों लग जाएंगे काठमाण्डू को फिर से काठमाण्डू बनने में. अब यहीं कोई काम मिल जाये तो दो वक्त की रोटी नसीब हो.

हजारों हैं रास्ते में

काठमाण्डू एरिया में बचपन से लेकर जवानी तक की दहलीज पार कर चुके, वहीं पले बढ़े विवेक खाडका नेपाली मंदिर के धर्मशाला में ठहरे हुए हैं. उनके साथ चार और भी लोग हैं. जबकि आधा दर्जन लोग हादसे के तुरंत बाद यहां पहुंचे गये हैं. विवेक खाडका की माने तो अभी और नेपाल पीडि़तों की तादाद यहां पहुंचने वाली है. कुछ हमारे परिचित में हैं वह फैमिली के साथ एक किराये के मकान में अभी दो दिन पहले ही शिफ्ट हुये हैं. हजारों लोग रास्ते में हैं. नेपाल से लौटे विवेक की आंखे यह बयां करने के लिए काफी थी कि वहां की तबाही ने हर किसी से उसका अपना छीन लिया है.

कुदरत की तबाही ने सिवाय दर्द के अलावा कुछ नहीं दिया. वहां के हालात सुधरने में तथा सब कुछ सामान्य होने में एक लम्बा वक्त लगेगा. तब तक हम बनारस में ही गुजर बसर करेंगे क्योंकि वहां अब दो वक्त की रोटी जुगाड़ना भी काफी मुश्किल हो गया है.

-विवेक खाडका, पीडि़त

जब तक कोई और ठिकाना नहीं मिल जाता तब तक यहीं धर्मशाला में ही ठहरना होगा. हम कोई स्थायी ठिकाना चाहते हैं जहां रह कर रोजी-रोटी कमाई जा सके. जलजले ने हम सारे लोगों का कुदरत ने सबकुछ छीन लिया है.

भीष्म केसी, पीडि़त

नेपाल में वहीं लोग रूके हैं जिनकी रोजी-रोटी और घर सलामत हैं. जिसका सबकुछ जमींदोज हो चुका हैं वह अपना पेट पालने के लिए दूसरे देश का रूख कर रहे है. मैं भी उनमें से एक हूं. वहां रह कर अब मैं अपना और परिवार को पेट नहीं पाल सकता.

रोहित सिंह बसनेत, पीडि़त

जब तक कोई ठिकाना नहीं मिलता है तब तक यहीं रहना होगा. पता नहीं किस गुनाह का बदला लिया है भगवान ने. वहां की तबाही सोच कर रोंगटे खड़े हो जा रहे हैं. यहां कुछ कमा कर घर भेजूंगा तो शायद जिंदगी चलती रहेगी. वरना वहां तो सब खत्म हो चुका है.

-संजय केसी, पीडि़त

हमारे यहां नेपाल पीडि़त पांच सदस्यीय एक फैमिली रूम के लिए आया था. लेकिन रूम खाली नहीं होने के कारण उन्हें दूसरे गेस्ट हाउस के लिए भेजना पड़ा. लगातार नेपाल भूकम्प त्रासदी के शिकार बनारस आ रहे हैं और गेस्ट हाउस और धर्मशाला ढूंढ रहे हैं.

रवि पटेल, गेस्ट हाउस मैनेजर

ताकि फिर न बरपे कुदरत का कहर

नेपाल में फिर कभी ऐसा जलजला नहीं आये, फिर हजारों बेगुनाहों की जान नहीं जाये. जो कुदरत की मार में दफन हो गये उनकी आत्मा की शांति के लिए बुधवार को नेपाली मंदिर में कीर्तन-पाठ, देवी जागरण किया जा रहा है. जो बचे हैं उनकी सलामती के लिए महिलाएं ईश्वर से प्रार्थना कर रही हैं.

Posted By: Vivek Srivastava