भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने बलात्कार पीड़ितों के संग व्यवहार करने के नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं. मंत्रालय ने टू फिंगर टेस्ट पर भी रोक लगाई है.


नए दिशा-निर्देशों के तहत सभी अस्पतालों में बलात्कार पीड़ितों के लिए एक विशेष कक्ष बनाने के लिए कहा गया है जिसमें उनका फॉरेसिंक और चिकित्सकीय परीक्षण होगा.मंत्रालय ने टू-फिंगर टेस्ट को अवैज्ञानिक बताते हुए इस पर पाबंदी लगा दी है. इसमें डॉक्टर दो अंगुलियों के प्रयोग से यह जानने की कोशिश करते थे कि क्या पीड़िता शारीरिक संबंधों की आदी रही है.डॉक्टरों को पीड़ित को यह भी बताना होगा कि कौन-कौन से मेडिकल टेस्ट किए जाएंगे और कैसे किए जाएंगे. ये सारी बातें डॉक्टरों को पीड़ित को उस भाषा में समझानी होगी जो उसे समझ में आती हो.बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए यह निर्देश जारी किए हैं.महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज(एमजीआईएमएस) में क्लिनिकल फ़ॉरेंसिक मेडिकल यूनिट (सीएफ़एमयू) के इंचार्ज एसोसिएट प्रोफ़ेसर इंद्रजीत खांडेकर के एक शोध-पत्र के प्रकाशित होने के बाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई थी.


खांडेकर का शोध 'यौन हिंसा के मामलों में फॉरेंसिक चिकिस्कीय जांच की दयनीय और भयानक स्थिति' पर था.जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने इस संदर्भ में नए दिशा-निर्देश तैयार करने के लिए कहा था.पूर्वाग्रहपूर्ण बर्ताव

नए दिशा-निर्देशों के अनुसार डॉक्टरों और अस्पताल के अन्य कर्मचारियों को ऐसे मामलों के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए.डॉक्टरों को बलात्कार शब्द का प्रयोग करने के लिए भी मना किया गया है क्योंकि 'बलात्कार' पारिभाषिक क़ानूनी शब्दावली का शब्द है. मेडिकल टेस्ट में इसका जिक्र करना ज़रूरी नहीं.पहले बलात्कार पीड़ित का मेडिकल टेस्ट पुलिस की मांग पर ही किया जाता था. अब यदि पीड़ित पुलिस में एफआईआर कराने से पहले अस्पताल जाती है तो डॉक्टरों को उसका परीक्षण करना चाहिए.बलात्कार पीड़ित की चिकित्सा शुरू करने से पहले उसकी पूरी तरह से समझ-बूझ कर दी गई सहमति ज़रूरी होगी. इसके बाद उन्हें पुलिस को सूचित करना होगा.अगर पीड़ित की उम्र 12 साल से कम है या वह सहमति देने की स्थिति में नहीं है तो यह सहमति उसके अभिभावकों से लेनी होगी.

Posted By: Subhesh Sharma