यदि हम ज्यादा कुछ ना भी कर सकें तो इतना तो अवश्य ही कर सकते हैं कि नए वर्ष में हम कम बोलें धीरे बोलें अनुमान की बीमारी से दूर रहें और परचिन्तन से परहेज रखें। अंग्रेजी में एक मशहूर कहावत है कि - A person speaking more gets less respect.

पुराने साल की विदाई के बाद जब नूतन वर्ष का आगमन होता है, तो प्रत्येक मनुष्य में एक अभिनव स्फूर्ति और उमंग सहज रूप से दिखाई पड़ती है, क्योंकि हर नया साल लोगों के मन में नई उमंगें, नया उत्साह नई प्रेरणाएं लेकर आता है। वैसे तो काल एक सतत प्रवाह है, वह अनादि और अनंत भी है। इसलिए उसके नए-पुराने होने का कोई अर्थ नहीं हैं, किंतु फिर भी मनुष्य ने उसे दिन, सप्ताह, पक्ष, मास एवं वर्ष आदि के सुविधानुसार विभाजनों में बांटकर एक विभेद तो उत्पन्न कर ही दिया है।

तदनुसार जो बीत गया, उसे भूतकाल कहने की परंपरा है। इसीलिए ही अधिकांश लोग नए वर्ष के आगमन पर नये-नये संकल्प करते हैं और पुराने संस्कार या आदतों को छोड़ नवीनतम गुणों की धारणा करने की प्रतिज्ञा करते हैं। वैसे तो लोग अनेक प्रकार के 'नए साल के संकल्प’ लेते हैं और फिर कुछ दिनों तक उस किए हुए संकल्प पर चलते भी हैं, परन्तु फिर थोड़े दिनों में ही 'जैसे थे’ वाली अवस्था में आ जाते हैं और फिर से एक नया संकल्प करते हैं की 'आनेवाले नूतन वर्ष पर ये अधूरा संकल्प पूर्ण करेंगे’। इस प्रकार से यह सिलसिला अविरत चलता ही रहता है, परन्तु समय और परिस्थिति को देखते हुए इस वर्ष हमें गंभीरतापूर्वक कुछ बातों पर चिन्तन कर उस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।

यदि हम ज्यादा कुछ ना भी कर सकें तो इतना तो अवश्य ही कर सकते हैं कि नए वर्ष में हम कम बोलें, धीरे बोलें, अनुमान की बीमारी से दूर रहें और परचिन्तन से परहेज रखें। अंग्रेजी में एक मशहूर कहावत है कि - A person speaking more gets less respect. अर्थात् ज्यादा बोलने वाले की बातों का कम सम्मान होता है। अत: जितना हो सके हमें कम बोलने व धीरे बोलने का प्रयास करना चाहिए। प्राय: लोग एक की दो सुनाने का दावा रखते हैं, परन्तु क्या अब यह नहीं हो सकता की हम दो सुनकर एक भी सुनाने का दावा न करें। यह अमूल्य गुण हमारी उन्नति में सहायक सिद्ध होगा।

इसी प्रकार से ऐसा कहते हैं कि 'अनुमान व्यक्ति को अंदर से कमजोर बना देता है। तभी तो देखा जाता है कि अनुमान लगाने वाला व्यक्ति दूसरों के लिए समस्या तो बनता ही है, और साथ-साथ खुद के लिए भी एक बड़ी समस्या बन जाता है। अनुमान की बीमारी लगने से एक छोटी राई पहाड़ बन जाती है और तिल का ताड़ बन जाता है। काफी समय बीतने के बाद जब पता चलता है कि बात तो कुछ भी नहीं है, महज एक छोटा-सा अनुमान था, तब मनुष्य को पश्चाताप की भारी पीड़ा को सहना पड़ता है।

इसी प्रकार से परचिन्तन की बीमारी भी 'स्व व पर’ दोनों का पतन कर डालती है। इसलिए विद्वान एवं गुरुजन अधिकतर यह सलाह देते हैं कि किसी भी बीती बात को याद करके कुढ़ने के बदले क्षमाशील का रूप धारण कर लो तो अपने आप ही सभी समस्याओं का समाधान हो जायेगा। दु:खी बात का चिन्तन तो सदैव दु:खी व्यक्ति ही करेगा। अत: सुख की बातें सोचो। अच्छे संकल्प खुद के साथ-साथ औरों को भी सुखी करेगा।

सब कुछ हो नया-नया

इस नये वर्ष में हम प्रतिज्ञा करें कि हम इस नये साल में नई उमंग, नया उल्लास, नये संस्कार, नया स्वभाव, दिव्य गुणों की धारणा, नई आशायें, शुभ भावनाएं, त्याग, शुभ बोल, शुभकामना का नया संदेश देंगे और बेकार की छोटी-छोटी बातों को चुटकी में उड़ाकर कुछ नया करने की प्रतिज्ञा करें।

राजयोगी ब्रह्माकुमार निकुंजजी

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Posted By: Kartikeya Tiwari