-नौ दिनों में दिल से जु़ड़े रिश्ते, आगे भी वादा निभाने की खाई कसम

-नदियों के पानी में उतार आने के बाद शुरू हुई घर जाने की तैयारी

PRAYAGRAJ: मुसीबत के दिनों में कुछ लोग अपनों से बढ़कर हो जाते हैं। उनके साथ बिताया गया वक्त यादों का हिस्सा बन जाता है। यही हाल बाढ़ राहत शिविरों के हैं। रिषिकुल बाढ़ राहत कैंप में पिछले नौ दिनों से रह रहे हजारों लोगों के बीच एक खास किस्म की बांडिंग बन चुकी है। अब नदियों का पानी उतरने लगा है। घर जाने की बारी आ चुकी है। ऐसे में एक-दूसरे से बिछड़ने का गम उन्हें परेशान करने लगा है।

केस-1

छोटी सी तकरार से हो गई दोस्ती

कलेक्ट्रेट से रिटायर्ड लल्लन प्रसाद राजापुर में रहते हैं। बाढ़ आने के बाद वह परिवार सहित रिलीफ कैंप में आ गए। एक दिन वह घर से लाई फोल्डिंग चारपाई पर बैठे थे। इस पर क्षमता से अधिक लोग आए तो उन्होंने नाराजगी जाहिर की। इस खाट पर सिविल डिफेंस के सदस्य और लेबर ऑफिस से रिटायर कृष्णचंद्र भी मौजूद थे। हल्की सी तकरार के बाद दोनों में दोस्ती हो गई। तब से रोजाना उनका समय साथ में बीतता है। लल्लन प्रसाद कहते हैं कि यहां से जाने के बाद साथ में इतना वक्त तो नहीं बिता सकेंगे, लेकिन दोस्ती जिंदा रहेगी।

केस-2

मान लिया अपना 'गुरू'

नेवादा की रहने वाली दो सहेलियां अक्सर साथ में देखी जाती हैं। इनमें एक सुमन सोनकर और दूसरी अनीता पाल हैं। सुमन हंसते हुए अनीता को अपना गुरू बताती हैं। वह कहती हैं कि यहां आने के बाद आपास में मुलाकात हुई और मित्रता परवान चढ़ गई। पहले दोनों एक मोहल्ले की होने के चलते मिलती जरूर थीं। लेकिन एक-दूसरे के व्यवहार का पता नही था। बाढ़ राहत कैंप में कुछ दिन साथ रहने के बाद अब हालात हैं कि घर के जरूरी निर्णय भी दोनों आपस की राय से लेती हैं। इनके परिवार में भी इतना ही अपनापन है।

केस-3

हाथ छोड़ने को तैयार नहीं बच्चे

राजापुर के पूर्व पार्षद अहमद अली की पोती एरम अपने दादा के साथ शिविर में पीडि़तों की मदद करने आती हैं। इसी दौरान उसकी दोस्ती नेवादा की सुनयना से हो गई। आज दोनों काफी समय एक साथ बिताती हैं। दोनों के दोस्ती के चर्चे अक्सर सुनने को मिल जाते हैं। एरम कहती हैं कि अब सब लोग अपने घर वापस जाने की तैयारी कर रहे हैं। मैंने सुनयना का पता पूछ लिया है। समय मिलेगा तो उससे मिलने जरूर जाऊंगी।

बिताया क्वालिटी टाइम

बाढ़ राहत शिविरों में रहने वालों का कहना है कि आमतौर पर काम-धंधे से फुरसत नहीं मिलती। ऐसे में पड़ोसी के बारे में भी जानने का समय नहीं मिलता। मुसीबत के वक्त यहां आने का मौका मिला तो जाना कि हमारे घर से दो कदम दूर रहने वाला कौन है और उसका व्यवहार कैसा है। राजापुर के रहने वाले शैलेष कहते हैं कि खुद के साथ समाज के लिए समय निकालना आसान नहीं है लेकिन यहां आने के बाद इसके बारे में भी पता चला। इस शिविर ने उन्हें जीवन का नया पाठ पढ़ाया है।

Posted By: Inextlive