- हाईकोर्ट, डिपार्टमेंट व पब्लिक की उम्मीदों के अमिताभ बच्चन बन चुके थे कुलदीप नारायण

- जांच, फटकार के बीच में काम करने और कराने का झेल रहे थे प्रेशर

- अचानक से पूछे गए सवालों का जवाब दिया, फिर भी सस्पेंड कर दिए गए कमिश्नर

PATNA: दस साल पुरानी कहानी, सैकड़ों तकलीफें, कई अवरोध, उससे होकर हर फिल्मों में अमिताभ बच्चन तीन घंटे में फैसला कर देता है। हीरो की जीत होती है और अमिताभ बच्चन सबके फेवरेट बन जाते हैं। निगम में भी ऐसा ही कुछ हुआ। पंकज पाल निगम कमिश्नर से हटे, तो आदेश तितरमारे को बनाया गया, पर हाईकोर्ट की फटकार के आगे वो टिक नहीं पाए और फिर कुलदीप नारायण को निगम का कमिश्नर बनाया गया। निगम कमिश्नर के तौर पर कुलदीप नारायण ने सालों पुरानी विवादों को आगे लाने लगे, बैठकें हुई, कई दफा कचरा प्रबंधन पर बात हुई, पर नतीजा कुछ नहीं निकल पाया। इस बीच, नरेंद्र मिश्रा ने पीआईएल कोर्ट में डाल दिया। फिर हाईकोर्ट के निर्देश पर बिल्डिंग की जांच शुरू हो गई, पर इन सबके बीच निगम कमिश्नर भी निकलना चाह रहे थे, तभी हाईकोर्ट ने रोक लगा दिया और फिर शुरू हुई, एक फिल्मी कहानी। इसमें निगम कमिश्नर को पब्लिक, हाईकोर्ट और नगर विकास ने हीरो बना दिया। मौर्यालोक एसोसिएशन ने इस फैसले के खिलाफ जमकर अपनी भड़ास निकाली।

फटकार सुनी, लेकिन हीरो की तरह निकला

कुलदीप नारायण ने अवैध कंस्ट्रक्शन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। बिल्डिंग की जांच शुरू होने लगी, तो कई विलेन भी समाने आने लगे। फिल्मों की तरह पहले बिल्डर खरीदना चाहा, फिर धमकी दी, पर जब नहीं माने तो इनके खिलाफ सभी एक होने लग गए। निगम के हीरो के पास पहली बड़ी प्रॉब्लम राजेंद्र नगर एरिया का जलजमाव सामने आया। हर दिन की फटकार सुनने के बाद भी भ्म् घंटे तक राजेंद्र नगर एरिया के संप हाउस के पास खड़े रहे और जब गवर्नमेंट ने आर्मी बुलाने की बात की, तो उसी दिन इन्होंने राजेंद्र नगर एरिया से पानी निकाल दिया। इनसे उम्मीद और भी बढ़ गयी।

मेयर के साथ बढ़ता चला गया विवाद

इस बीच मेयर, विधायक व कई बिल्डर्स के साथ इनका विवाद बढ़ता ही चला गया। मामला नगर विकास के पास पहुंच गया, लेकिन वहां से भी कुछ खास रिजल्ट नहीं निकल पा रहा था। दुर्गापूजा, दीवाली और छठ का मौसम आ गया। दुर्गापूजा में रावण वध हादसा में कमिश्नर एक बार फिर विवादों में आए, मेयर ने तुल पकड़ाया लेकिन उसका कुछ नतीजा नहीं निकल पाया और रावण वध हादसा से वो आसानी से बच निकले। छठ के बाद सबकुछ ठीक चल रहा था कि दो महीने पहले, डेंगू का प्रकोप बढ़ा और डेंगू का डंक ने जहां पटनाइट्स को अपनी आगोश में फंसाता चला गया। वहीं, निगम कमिश्नर के उपर भी इसका असर दिखना शुरू हो गया।

सालों पुरानी फाइल न निपटाने की मिली सजा

मामला उठा कि फॉगिंग मशीन नहीं है। जांच शुरू करवायी गयी। जैसे-तैसे फॉगिंग करवाई गई, लेकिन विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा था। तभी मौर्यालोक कैंपस में कैमरा लगाने का मामला आया और मेयर व कमिश्नर में जमकर विवाद हुआ। इस विवाद का नतीजा निकला कि अब तक कमिश्नर के बगैर भी ऑफिसर्स बोर्ड की बैठक में जाते थे, लेकिन इसके बाद इन लोगों ने भी जाना बंद कर दिया। अब बोर्ड की बैठक कोरम के अभाव में नहीं हो पाया। ऑफिसर्स के इंतजाम पर मामला उठता रहा। इसी बीच, डिप्टी मेयर की अध्यक्षता में बोर्ड की बैठक करवाकर कई पुराने एजेंडे पर मुहर लगवा दिया गया।

तीन घंटे में काम खत्म करवाने का था प्रेशर

इस बैठक के साथ ही तमाम अमला हिल गया। नगर विकास से लेकर नगर निगम के पक्ष वाले ने इसका विरोध किया। इसी बीच हाईकोर्ट ने फौरन अवैध कंस्ट्रक्शन को तोड़ने के लिए जल्द से जल्द कार्रवाई में जुटने के लिए कहा, काउंसलर ने अपनी परेशानी सुनाई, पटनाइट्स नक्शा के लिए इधर-उधर भटकते रहे, बिल्डिंग बायलॉज बन गया। नगर निगम का कमिश्नर रात के नौ बजे और फिर अपने घरों पर फाइलों का निपटारा करने में जुटा रहा, पर हर काम घंटे में पूरा नहीं हो सकता। कई सालों की पुरानी फाइलों को तीन घंटे में दूर नहीं किया जा सकता है। नगर निगम तीन घंटे की फिल्म नहीं है। इसका एक हीरो नहीं है, बल्कि तमाम पब्लिक के सामने अब नगर निगम की साख बचानी मुश्किल हो गयी है, क्योंकि उनका ही चुना प्रतिनिधि निगम की साख पर सवाल बना हुआ है।

Posted By: Inextlive