ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को ही निर्जला एकादशी कहते है। निर्जला एकादशी को महिलाएं बिना जल के पूरे दिन उपवास करती हैं। इसी कारण निर्जला एकादशी का महत्व स्वाधिक है। निर्जला एकादशी का व्रत करने से आयु और आरोग्य की प्राप्ति होती है तथा उत्तम फलों की प्राप्ति होती है।


महाभारत काल में देवकी नन्दन के द्वारा कहा गया है कि अधिकतम सहित एक वर्ष की 26 एकादशी न की जा सके तो केवल निर्जल एकादशी का व्रत करने से ही पूरा फल प्राप्त हो जाता है। निर्जला एकादशी को सम्पूर्ण दिन-रात बिना जल और अन्न या किसी भी आहार का सेवन किए बिना अपवास रखना चाहिए। एकादशी के दिन प्रात: काल स्नान करना चाहिए तथा दान (वस्त्र, छतरी, पानी, जल कलश इत्यादि) तत्पश्चात निर्जला एकादशी की कथा सुननी और सुनानी चाहिए।
पंडित दीपक पाण्डेय ने बाताया कि निर्जला एकादशी में भगवान विष्णु के पूजन का विधान है। यह भी मान्यता है कि निर्जला एकादशी पर बगैर जल ग्रहण किए पूजन एंव दान करने से पूरे वर्ष परिवार पर किसी तरह का सकंट नहीं आता है। निर्जला एकादशी पर भगवान विष्णु को 1008 तुलसी दल के साथ जल अर्पित करने से परिवार के सद्सयों को रोगों से मुक्ति मिलती है। निर्जला एकादशी पर शरबत वितरण दान करने से अपार पुण्य का लाभ होता है। मान्यता है कि एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित है।  पंडित दीपक पांडे

Posted By: Vandana Sharma