निजाम ने 1948 में तत्कालीन पाक उच्चायुक्त के खाते में 3.5 करोड़ पाउंड 305 करोड़ रुपये जमा कराया था। अब इस मामले में अदालत ने भारत के पक्ष में फैसला सुनाया है। इसी बीच निजाम के वंशज यह उम्मीद कर रहे हैं कि उनको भी इस पैसे में हिस्सा मिलेगा।


हैदराबाद (आईएएनएस)। ब्रिटेन के हाई कोर्ट ने बुधवार को 70 साल पुराने निजाम से जुड़े 35 मिलियन पाउंड (करीब 305 करोड़ रुपये) के मामले में भारत के पक्ष में फैसला सुनाया है। इसी बीच हैदराबाद के अंतिम शासक के 100 से अधिक वंशज इस पैसे में अपना उचित हिस्सा मिलने की उम्मीद कर रहे हैं। बता दें कि लंदन की अदालत ने बुधवार को इन पैसों पर पाकिस्तान के दावे को खारिज कर दिया और अपने फैसले में कहा, 'धन पर सातवें निजाम का अधिकार था और अब सातवें निजाम के उत्तराधिकारी होने का दावा करने वाले जाह भाइयों तथा भारत का धन पर अधिकार है।' इस फैसले के बाद निजाम के वंशजों का कहना है कि फंड में केवल प्रिंस मुकर्रम जाह की नहीं बल्कि परिवार के सभी लोगों की हिस्सेदारी है। अदालत के फैसले का किया स्वागत


निजाम के पोते नवाब नजफ अली खान ने आईएएनएस को बताया कि वे अदालत के फैसले का स्वागत करते हैं। उन्होंने कहा, 'अदालत ने भारत और निजाम के सातवें वंशज के पक्ष में फैसला सुनाया है। परिवार को लंबे समय से इस फैसले का इंतजार था।' उन्होंने बताया कि सातवें निजाम मीर उस्मान अली खान के 120 कानूनी वारिस हैं। उन्हें उम्मीद है कि नैटवेस्ट बैंक पीएलसी में रखे पैसों को कानूनी वंशजों के बीच बिना किसी कानूनी अड़चन के बांटा जाएगा। इसी बीच यह भी खबर तेज हो गई है कि पाकिस्तान इस मामले को लेकर शीर्ष अदालत में भी अपील कर सकता है। हालांकि, निजाम के वंशजों का मानना है कि बुधवार के अदालती आदेश को चुनौती देने के लिए पाकिस्तान के पास कोई मजबूत आधार नहीं है।  ब्रिटेन से पाकिस्तान को एक और झटका, हैदराबाद के निजाम का धन अब भारत काखाते में ट्रांसफर किये थे आठ करोड़ रुपये

बता दें कि भारत के विभाजन के बाद और भारत के साथ तत्कालीन हैदराबाद राज्य के विलय से पहले, निजाम के वित्त मंत्री मोइन नवाज जंग ने लंदन में तत्कालीन पाकिस्तान के उच्चायुक्त हबीब इब्राहिम रहीमटूला को करीब 10,07,940 पाउंड (8 करोड़ रुपये) और नौ शिलिंग ट्रांफर की थी, जो अब बढ़कर करीब 3.5 करोड़ पाउंड (305 करोड़ रुपये) हो गई है। तभी से यह रकम नैटवेस्ट बैंक पीएलसी के उनके खाते में जमा है। हैदराबाद रियासत के भारत में विलय के बाद 1950 में सातवें निजाम ने इस रकम पर अपना दावा किया था। लेकिन हाउस ऑफ लॉ‌र्ड्स ने उनका दावा खारिज कर दिया था। पाकिस्तान के सॉव्रिन इम्यूनिटी का दावा करने से केस की प्रक्रिया रुक गई थी, लेकिन 2013 में पाकिस्तान ने रकम पर दावा करके सॉव्रिन इम्यूनिटी खत्म कर दी थी। जिसके बाद मामले की कानूनी प्रक्रिया फिर शुरू हुई थी। पाकिस्तान सरकार के खिलाफ कानूनी लड़ाई में सातवें निजाम के वंशजों और हैदराबाद के आठवें निजाम प्रिंस मुकर्रम जाह तथा उनके छोटे भाई मुफ्फखम जाह ने भारत सरकार से हाथ मिला लिया था।

Posted By: Mukul Kumar