- सिस्टम के आगे बेबस हुई रिहाना

- रिहाना को नहीं मिल रहा स्कूल में प्रवेश

- अधिकतर स्कूलों में दिव्यांग स्टूडेंट्स के लिए नहीं हैं पर्याप्त सुविधाएं

- बोर्ड के मानकों के हिसाब से स्कूलों में होने चाहिए रैंप और रेलिंग्स

ravi.priya@inext.co.in

DEHRADUN: कहने को तो सरकार की ओर से दिव्यांग बच्चों की एजुकेशन के लिए तमाम दावे किए जाते हैं, लेकिन धरातल पर यह दावे जीरो हैं। जो फैसिलिटीज हैं भी, वो सिस्टम की अपंगता के चलते लाचार हैं। ऐसे में अपंगता का दंश झेल रहे तमाम बच्चे बैसाखियों का सहारा छोड़ अपने पैरों पर खड़े होने में सफल नहीं हो पा रहे हैं। दून की रिहाना भी ऐसे ही स्टूडेंट्स में से एक है जो पढ़-लिख कर अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती है, लेकिन लाचार सिस्टम के आगे बेबस है।

कैसे पूरा होगा सपना?

दून की रिहाना का सपना अच्छी एजुकेशन हासिल कर खुद को एक अच्छे मुकाम पर लाने का है। कुदरत ने रिहाना को शारीरिक रूप से कमजोर कर जहां नाइंसाफी की, वहीं सुविधाएं नहीं होने के कारण वो स्कूलिंग भी पूरी नहीं कर पा रही, किसी तरह उसने प्राइवेट हाईस्कूल की शिक्षा ली, लेकिन अब वो स्कूल में जाने की चाहत रखती है, लेकिन स्कूलों में दिव्यांग स्टूडेंट्स के लिए पर्याप्त साधन न होने के कारण उसका सपना साकार नहीं हो पा रहा। स्कूलों में एडमिशन न ले पाने की समस्या अकेले रिहाना की नहीं है, शहर में ऐसे सैंकड़ों दिव्यांग हैं, जो स्कूल्स में सुविधाओं और संसाधनों के अभाव के करण शिक्षा प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं।

स्कूलों में काट रहे चक्कर

सपेरा बस्ती की रहने वाली रिहाना के पिता कमर आर्थिक रूप से काफी कमजोर हैं, लेकिन इसके बाद भी वे अपनी बेटी को अच्छी शिक्षा दिलाना चाहते हैं। रिहाना की मां भूरी खातून बेटी को बेहतर शिक्षा मिले इसके लिए स्कूलों के चक्कर काट रही हैं। लेकिन, रिहाना चलने में असमर्थ है। जिस कारण उसे ऐसे स्कूल की चाहत है जहां दिव्यांग बच्चों के लिए संसाधन और सुविधाएं उपलब्ध हों। लेकिन, अधिकतर स्कूलों में ऐसे बच्चों के लिए सुविधाएं ही नहीं हैं। जिस कारण रिहाना का स्कूल में पढ़ने का सपना पूरा नहीं हो पा रहा है।

बेसिक फैसिलीटीज भी नहीं

एजुकेशन हब देहरादून में यू तो तमाम नामचीन स्कूल हैं, लेकिन ये केवल सामान्य बच्चों के लिए ही मुफीद नजर आते हैं। विशेष जरूरतों वाले बच्चों यानि स्पेशली एबल्स (दिव्यांग) के लिए इन स्कूल्स में बेसिक फैसिलीटीज भी नहीं हैं। ऐसे में इस तरह के बच्चों को अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए या तो तमाम मुश्किलों को सामना करना पड़ता है या फिर घर बैठकर पढ़ाई करनी पड़ती है और जो लोग इन दोनों को अफोर्ड नहीं कर पाते उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ती है। साफ है कि इन सब के लिए पूरी व्यवस्था जिम्मेदार है।

क्या हैं मानक

- बोर्ड से मान्यता हासिल करने के लिए विशेष जरूरतों वाले बच्चों के लिए अनिवार्य सुविधाएं सुनिश्चित करनी होती हैं।

- मानकों के अनुसार स्कूल्स में मूवमेंट के लिए रैंप और रेलिंग की फैसिलिटी होनी चाहिए।

- स्कूलों में व्हील चेयर, स्पेशल टॉयलेट्स और हेल्प के लिए प्रशिक्षित सहायक होना चाहिए।

- बच्चों को हीनभावना से बचाने के लिए काउंसलर नियुक्त होना चाहिए।

- विशेष बच्चों के लिए ऐसे माहौल का निर्माण करना होता है ताकि उन्हें परेशानी का सामना न करना पड़े।

- दिव्यांग स्टूडेंट्स के आने-जाने के लिए बस और वैन में विशेष सुविधा होनी चाहिए।

- बोर्ड ने स्कूल्स को ये भी निर्देश दिए गए हैं कि ऐसे बच्चों के लिए ग्राउंड फ्लोर पर ही क्लासेज रखी जाएं।

इन सुविधाओं पर खर्च

दिव्यांग बच्चों के लिए इन तमाम फैसिलिटीज पर होने वाले खर्च पर गौर करें तो स्कूल्स के बाकी खर्च की तुलना में यह कहीं भी मायने नही रखता। इन व्यवस्थाओं में कुछ मेजर जरूरतों में मुख्य रूप से आने वाले रैंप, स्पेशल टॉयलेट्स और व्हीलचेयर पर बहुत ज्यादा रकम खर्च नही होती। लेकिन, इसके बाद भी यहां के स्कूल्स में इन तमाम बेसिक नीड्स की भारी कमी है।

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हाईस्कूल के बाद आगे पढ़ाई करना चाहती हूं, लेकिन स्कूल तक जा नहीं सकती। यहां कोई स्कूल ऐसा दिखाई नहीं दे रहा जहां मैं सामान्य बच्चों के साथ पढ़ सकूं। सरकार से मदद की आस है।

--- रिहाना, दिव्यांग स्टूडेंट

बेटी के लिए स्कूलों मे एडमिशन की बात करने कई बार गई हूं। लेकिन, यहां आस-पास एक भी स्कूल ऐसा नहीं है जहां ऐसे बच्चों के सुविधाएं हों। सरकार को इस दिशा में कुछ करना चाहिए।

--- भूरी खातून, रिहाना की माता

Posted By: Inextlive