RANCHI : रियो ओलंपिक का आगाज हो चुका है। इस बार बॉक्सिंग में मेडल के लिए भारत के तीन दावेदार रिंग में अपना दमखम दिखाने को तैयार हैं। शिव थापा, मनोज कुमार और विकास कृष्णन से देश को काफी उम्मीदें हैं। ये तीनों मेडल जीतें, इसके लिए 130 करोड़ की आबादी दुआएं कर रहा है। इन तीनों ने अपनी मेहनत से ओलंपिक का टिकट हासिल किया है, लेकिन, दूसरी तरफ यहां ऐसे कई बॉक्सर भी हैं, जिन्हें अगर संसाधन व सुविधाएं मिली तो वे भी अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपने प्रदर्शन से अपने राज्य व देश का नाम रौशन कर सकते हैं।

पंच को नहीं मिल रही पहचान

झारखंड में एक खेले के तौर पर बॉक्सिंग को उतनी तरजीह नहीं मिली है, जितनी की वह हकदार है। बॉक्सिंग को प्रमोट करने पर न तो खेल विभाग का कोई ध्यान हैं और न ही बॉक्सिंग एसोसिएशन इसके लिए कोई कदम उठा रही है। यहां प्रैक्टिस के लिए न तो रिंग हैं और न ही बॉक्सर को कोच की सुविधा उपलब्ध है। इतना ही नहीं, यहां के बॉक्सर के पास किट का भी अभाव है। रांची के होटवार स्थित मेगा स्पो‌र्ट्स कॉम्प्लेक्स का बॉक्सिंग स्टेडियम अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। यहां खिलाडि़यों को प्रैक्टिस करने के लिए न तो कैंप लगाए जाते हैं और न ही उन्हें रिंग इस्तेमाल करने की इजाजत दी जाती है।

ट्रेनिंग की नहीं है सुविधा

क्रिकेट, हॉकी और फुटबॉल की तरह ही झारखंड के बच्चों व युवाओं में बॉक्सिंग का भी क्रेज है। वे भी बॉक्सिंग में राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने की ख्वाहिश रखते हैं, लेकिन सुविधाओं व संसाधनों के अभाव में उनकी इच्छा दम तोड़ रही है। यहां बॉक्सिंग के लिए खिलाडि़यों को न तो रिंग की सुविधा दी गई है और न ही उन्हें ट्रेनिंग देने के लिए अच्छे कोच हैं। अपने बलबूते वे बॉक्सिंग सीख रहे हैं। ऐसे में उन्हें अपना हुनर निखारने में दिक्कतें हो रही हैं।

नेशनल लेवल पर जीत चुके हैं मेडल

सिर्फ रांची में ही सौ से ज्यादा ऐसे खिलाड़ी हैं, जो बॉक्सिंग में अपनी पहचान बनाने के लिए कड़ी प्रैक्टिस कर रहे हैं। इनमें सुमिरन कुमारी, युवराज मणिरत्‍‌न, ज्योति कुमारी सुषमा कुमारी, निधि भारती, राखी कुमारी,ओमप्रकाश, रितिक कुमार, कमर रजा, साजिद अंसारी, जलाल कुरैशी, अमित नायक और मानस चौहान जैसे बॉक्सर शामिल हैं। इन्होंने देवघर, हरियाणा, दिल्ली और विशाखापत्‍‌नम समेत कई और शहरों में हुए नेशनल लेवल की बॉक्सिंग चैंपियनशिप में झारखंड के लिए मेडल जीत चुके हैं।

रिंग है, पर इस्तेमाल की इजाजत नहीं

जमशेदपुर के जेआरडी टाटा स्पो‌र्ट्स में खिलाडि़यों के लिए रिंग है। रांची के खेलगांव स्थित मेगा स्पो‌र्ट्स कॉम्पलेक्स में भी बॉक्सिंग स्टेडियम है। लेकिन, इन रिंग का इस्तेमाल बॉक्सर नहीं कर सकते हैं। इस खेल को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार की ओर से फंड भी उपलब्ध नहीं कराया जाता है। कोच और फेडरेशन के मेंबर अपनी पॉकेट से पैसा लगाकर किसी तरह टूर्नामेंट आयोजित करते हैं। इतना ही नहीं, प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए कई बार बॉक्सर को अपनी जेब से खर्च करनी पड़ती है।

लड़कियों में भी है बॉक्सिंग का क्रेज

झारखंड में लड़कियों में भी बॉक्सिंग का क्रेज है। वे भी इस खेल में अपनी पहचान बनाना चाहती हैं। झारखंड पुलिस में इंस्पेक्टर पांच बार व‌र्ल्ड चैंपियन रहीं मैरीकॉम उनकी आदर्श हैं। रांची की शिवानी सिंह, सुषमा कुमारी तथा ज्योति कुमारी ने बताया कि उन्होंने बॉक्सर बनने का फैसला किया। अब इस खेल में अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनानी है।

Posted By: Inextlive