- फिजिकली चैलेंच्ड लोगों की दिक्कतों को जानने की मुहिम में सच आया सामने

- एक मंजिल ऊपर है डीएम ऑफिस, विकलांगों के लिए ना लिफ्ट, ना ही रैम्प

- जिला विकलांग कल्याण ऑफिस के रस्सा बांध कर तैयार की गयी है चुनौती

- रेलवे स्टेशन पर कई प्लेटफार्म पर विकलांगों के पहुंचने के लिए नहीं है इंतजाम

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ङ्कन्क्त्रन्हृन्स्ढ्ढ: बिलकुल हमारे-आप जैसे हैं। एक इंसान जिसको कुदरत या किस्मत ने जिंदगी भर के लिए एक चुनौती के साथ जीने का माहौल दिया है। इसलिए उन्हें हम फिजिकली चैलेंज्ड या फिजिकली डिसएबल या फिर शारीरिक विकलांग कहते हैं। मगर इनके लिए चैलेंज सिर्फ इनका शरीर नहीं है। इन्हें तो हर उस जगह चैलेंज फेस करना पड़ रहा है जहां नियम से इनके लिए स्पेशल सुविधा होनी चाहिए। क्या है फिजिकली चैलेंज्ड लोगों के लिए चैलेंज, आज यही बताने जा रहे हैं हम

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हमारे यहां से हर साल सौ विकलांगों को ट्राई साइकिल दी जाती है। ऑफिस के रास्ते में इतनी बाइक्स खड़ी होती हैं कि विकलांग ऑफिस तक पहुंच नहीं पाते थे। बाइक्स रोकने के लिए ही रस्सी बांधी गई है।

-रणजीत सिंह, जिला विकलांग कल्याण अधिकारी

जब भगवान के पास से ही विकलांगों को दर्द मिला है, तो धरती पर दर्द का डबल होना स्वाभाविक है। विकलांगों को महज तीन सौ रुपये पेंशन मिलते हैं।

-मुन्ना सिंह, अध्यक्ष, विकलांग एसोसिएशन

2010 से पेंशन बंद हो गया है। ऑफिस आने पर पता चला कि किसी माननीय से लेटर वेरीफिकेशन कराना है। लेकिन विकलांगों की कोई नहीं सुनता है।

-रविंद्र कुमार, विकलांग

तीन सौ रुपये विकलांगों को पेंशन दिया जाता है। इतने कम पैसे में कैसे गुजारा होगा। सरकार भी हम लोगों के साथ मजाक कर रही है।

-गोपाल, विकलांग, रामदत्तपुर

विकलांगों का हक

विकलांग कल्याण विभाग विकलांगों की सहायता के लिए विभिन्न योजनाओं का संचालन करता है। कोई भी विकलांग जरूरी औपचारिकताओं की पूर्ती कर इन योजनाओं का लाभ उठा सकता है।

- विकलांग पेंशन योजना:

इसके तहत 40 परसेंट से अधिक विकलांग लोग, जिनकी मासिक आय 1000 रुपये से कम है तीन सौ रुपये प्रतिमाह बतौर पेंशन दिया जाता है।

- कृत्रिम अंग सहायता उपकरण:

विभाग की ओर से विकलांगों को आवश्यकतानुसार छह हजार रुपये तक के कृत्रिम अंग या सहायता उपकरण फ्री में उपलब्ध कराये जाते हैं।

- शादी करने पर पुरस्कार :

विवाहित जोड़े में से यदि पति विकलांग है तो 15 हजार रुपये और पत्नी विकलांग है तो 20 हजार रुपये विवाहित युगल को बतौर पुरस्कार

- दुकान के लिए सहायता :

उद्यमी विकलांग जन को प्रोत्साहित करने करने के उद्देश्य से 20 हजार रुपये तक की धनराशि दुकान के बनाने के लिए, तथा किराये के गुमटी आदि के संचालन के लिए 10 हजार रुपये

- चिकित्सीय अनुदान:

निर्धन व असहाय विकलांग जन को शल्य चिकित्सा हेतु राजकीय चिकित्सालय को आठ हजार रुपये प्रतिवर्ष की प्रतिपूर्ति की व्यवस्था

- रोडवेज की बसों में फ्री यात्रा :

रोडवेज की बसों में विकलांग जन को फ्री में यात्रा का अधिकार प्राप्त है। 80 परसेंट से अधिक विकलांगों को एक अटेंडेंट के साथ फ्री यात्रा की सुविधा

खुशकिस्मत हैं हम जिन्हें ऊपर वाले ने अपनी हर नेमत से नवाजा है। पर कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें देनेवाले ने देते समय कुछ 'कमी' कर दी। ऐसे 'खास' लोगों को ऊपर वाले ने सांसों की सौगात उतनी ही बख्शी है, जितनी हमें। उनमें भी जीने की ललक है और वे ईश्वर की दी हुई कमी के बावजूद एक आम की तरह जिंदगी की जंग पूरे हौसले के साथ लड़ रहे हैं। पर क्या सरकार और समाज का उन खास लोगों के प्रति कुछ दायित्व नहीं है? उन्हें कतई किसी की दया नहीं चाहिए लेकिन सुविधाओं का हक तो उनका बनता ही है। अफसोस इस बात का है कि उनके लिए कहीं भी कुछ भी नहीं है। फिजिकली चैलेंज्ड लोगों की दी जाने सुविधाओं की रिएलिटी जानने के लिए आई नेक्स्ट ने शहर के विभिन्न सरकारी ऑफिसेज में चक्कर लगाया। हम ये जान कर हैरान रह गये कि डिस्ट्रिक्ट लेवल पर सबकी सुनने वाले सबसे बड़ी ऑफिसर यानि डीएम भी विकलांगों की पहुंच से बहुत दूर हैं।

हर कहीं सुविधाएं नदारद

आई नेक्स्ट टीम ने विकलांगों के दी जाने वाली सुविधा का जायजा लेने के लिए शुक्रवार को डीएम ऑफिस, जिला विकलांग कल्याण अधिकारी ऑफिस के साथ रेलवे स्टेशन और रोडवेज का रूख किया। हर कहीं विकलांगों के लिए जरूरी मूलभूल सुविधाओं का अभाव दिखा। नियम ये है कि किसी भी सरकारी ऑफिस में फिजिकली चैलेंच्ड लोगों के लिए रैंप की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि वो आराम से व्हील चेयर के साथ ऑफिस में एंट्री कर सकें। लेकिन ऐसा कहीं नहीं दिखा। विकलांगों के लिए स्पेशल टॉयलेट तो बहुत दूर की बात है। इन पांचों जगहों पर आई नेक्स्ट की टीम ने जो देखा वह आपके सामने भी है।

डीएम साहब से मिलना दूर की कौड़ी

डीएम ऑफिस कचहरी कैंपस के अंदर स्थित है। डीएम साहब जहां बैठते हैं वह कमरा एक मंजिल ऊपर है। यदि किसी विकलांग को उनसे पर्सनली मिलना है तो, ये उसके लिए किसी ओलम्पिक मेडल जीतने जैसा टास्क है। ना तो ऊपर पहुंचने के लिए कोई लिफ्ट है ना ही रैम्प। हां दो-चार लोग लाद कर ऊपर तक पहुंचा दें और फिर नीचे तक सलामत उतार दें तो बात अलग है।

अपना विभाग भी दे रहा है चुनौती

विकलांग जिस विभाग को अपना विभाग कह सकते हैं उस जिला विकलांग कल्याण ऑफिस में भी उनके लिए चुनौती नजर आई। विकास भवन ग्राउंड फ्लोर पर स्थित इस ऑफिस के बाहर आई नेक्स्ट टीम ने एक मोटी रस्सी बंधी देखी। हर व्यक्ति को इस रस्सी के नीचे से झुक कर या इसे ऊपर उठाकर अंदर जाना पड़ रहा था। हम अंदर जाने की सोच रहे थे कि एक फिजिकली चैलेंच्ड जिसके दोनों पैर खराब थे वह इस रस्सी में फंसकर गिरते-गिरते बचा। यहां लोगों से पूछताछ में पता चला कि रस्सी विकलांगों की सुविधा के लिए ही लगाया गया है क्योंकि रस्सी न लगे होने पर लोग वहां गाडि़यां पार्क कर देते थे। ऐसे में विकलांगों का ऑफिस तक पहुंचना और ज्यादा टफ हो जाता था।

रेलवे भी है इनके लिए बेपरवाह

फिजिकली चैलेंच्ड लेागों को सुविधाएं मुहैया कराने में रेलवे भी लापरवाह है। कैंट रेलवे स्टेशन पर इनके लिए सुविधाएं सिर्फ नाम की हैं। यहां कहने को व्हील चेयर मिलता है मगर वह मिलेगा प्लेटफार्म नम्बर पांच पर डिप्टी स्टेशन सुपरिटेंडेंट ऑफिस में। विकलांग अकेले हो तो वहां तक कैसे पहुंचेगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं। इस पर भी बिना किसी कुली के गारंटी के व्हील चेयर नहीं मिलने वाली। अगर विकलांग के जेब में रुपये ना हो तो व्हील चेयर सपना है फिर। एक और चैलेंज है या, व्हीलचेयर रैंप के जरिये सिर्फ प्लेटफार्म एक, दो, तीन, चार और पांच तक पहुंच सकती है। छह, सात, आठ और नौ प्लेटफार्म पर पहुंचने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है।

Posted By: Inextlive