क्त्रन्हृष्ट॥ढ्ढ: हेल्थ मिनिस्टर के आवास से मात्र एक किमी दूर स्थित डोरंडा सरकारी अस्पताल भगवान भरोसे चल रहा है. न डॉक्टरों को एक्शन का डर है न स्टाफ्स को, दिन ढलने के साथ ही डॉक्टर नजर नहीं आते. जबकि हॉस्पिटल के ओपीडी में हर दिन करीब 400 मरीज आते हैं. वहीं इंडोर में भी खासकर सिजेरियन डिलीवरी के बाद प्रसूता भर्ती रहती है. इसके बावजूद डॉक्टरों की मनमानी बदस्तूर जारी है. कई विभागों में तो ताले लटक रहे हैं. सवाल है कि इस स्थिति में बेहतर हेल्थ सर्विस देने का सरकारी सपना भला कैसे साकार होगा.

ओपीडी में नहीं बैठते डॉक्टर, मरीज परेशान

हॉस्पिटल के ओपीडी में डॉक्टरों के बैठने का टाइम फिक्स है. लेकिन डॉक्टर दिन में ही नजर नहीं आते. ओपीडी के बाहर मरीजों की लंबी लाइन लगी रहती है और वे आराम फरमाते रहते हैं. जब मरीजों की अच्छी खासी भीड़ जमा हो जाती है तो ओपीडी में चले आते हैं. इस चक्कर में मरीजों को काफी देर इंतजार भी करना पड़ता है. वहीं शाम को तो डॉक्टरों को ढूंढने से भी नहीं मिलते.

प्रसूता को नहीं दे रहे खाना

डोरंडा में पहले नार्मल डिलीवरी कराई जाती थी. अब वहां पर सिजेरियन भी किया जाता है. इसके बाद मरीजों को वार्ड में शिफ्ट तो कर दिया जाता है. लेकिन उन्हें खाना उपलब्ध नहीं कराया जाता. जबकि इंडोर में एडमिट रहने वाली प्रसूता महिलाओं को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होने तक खाना दिया जाना है. हालांकि नार्मल डिलीवरी वालों को एक दिन बाद ही घर भेज दिया जाता है.

मरीजों के बैठने की व्यवस्था नहीं

ओपीडी में हर दिन अलग-अलग बीमारी लेकर 400 मरीज आते है. इतनी संख्या में मरीजों के पहुंचने के बावजूद आजतक इस हेल्थ सेंटर में मरीजों के बैठने की व्यवस्था भी नहीं की गई है. ऐसे में मरीजों और उनके परिजनों को जहां जगह मिलती है वहीं बैठ जाते है. जो कुर्सियां लगी है उसमें से भी अधिकतर की स्थिति दयनीय है.

कई दिनों से एंटी रैबीज वैक्सीन खत्म

डॉग बाइट के मामले काफी बढ़े हुए है. हर दिन दो से तीन दर्जन इस सेंटर में वैक्सीन के लिए आते है. लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगती है. इसके बाद डॉग बाइट के मरीजों को सदर हॉस्पिटल में वैक्सीन के लिए भेज दिया जाता है. इस चक्कर में मरीजों को बार-बार वैक्सीन के लिए सदर हॉस्पिटल की दौड़ लगानी पड़ रही है.

डेंटल व पेडिया वार्ड में ताला

इलाज के लिए दांतों की समस्या से परेशान लोग भी आते है. वहीं बच्चों को लेकर भी इलाज के लिए पेरेंट्स लेकर पहुंचते है. लेकिन दोनो ही ओपीडी में ताला लगा देख उन्हें निराशा होती है. इतना ही नहीं टीबी सेंटर खुला तो रहता है लेकिन वहां जानकारी देने वाली कोई नहीं होता. ऐसे में जो डॉक्टर होते है उसी से दिखाकर दवा लेकर लोग चले जाते है.

Posted By: Prabhat Gopal Jha