बाजार में सिक्कों की अधिकता के चलते व्यापारी परेशान

ग्राहक हो या दुकानदार, सभी सिक्के लेने में कर रहे आनाकानी

Meerut। गोल-गोल चांद सा रुपैय्या, कैसा है यह ख्वाब सा रुपैय्या 1987 की फिल्म हिरासत का यह गीत सिक्कों की खनक बयां कर रहा था तो आज बाजार में इनकी बदहाली चर्चा में है। हर दुकानदार सिक्कों को संभाल रहा है और किसी तरह आगे चलाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन समस्या खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। नोटबंदी के दौरान दिल खोलकर सिक्के बांटने वाले बैंक अब इन्हें लेने से इनकार कर रहे हैं, वहीं सिक्कों की अधिकता के चलते आए दिन बाजार में झगड़े हो रहे हैं।

नोटबंदी से बदला नजारा

नवंबर 2016 में नोटबंदी क्या हुई, बाजार का नजारा ही बदल गया। उस दौरान बैंकों के पास नोट नहीं थे तो लोगों ने काम चलाने के लिए सिक्के स्वीकार किए। नतीजा, बाजार में इतने अधिक सिक्के हो गए कि अब कोई इन्हें लेने को तैयार नहीं है। वो जमाने गए, जब बाजार में सिक्कों की कमी होती थी और हर दुकानदार एक या दो रुपए खुले हुए मांगता था। अब सभी प्रमुख दुकानदारों के पास सिक्कों की कोई कमी नहीं है, बेशक आप सिक्के लेने के लिए तैयार हों।

परिचालकों को यात्रियों से सिक्के लेने ओर देने दोनो का आदेश है। यदि परिचालक के पास नोट नही हैं तो वह सिक्के ही देगा। ऐसे में कई बार यात्रियों से बहस भी होती है। लेकिन सिक्के देना मजबूरी है।

भारत भूषण, भैंसाली डिपो इंचार्ज

अधिकतर परिचालकों की यह परेशानी है यात्री खुले पैसों में दस का सिक्का लेना पसंद नही करते। ऐसे में यात्रियों से बहस भी होती है लेकिन परिचालक भी क्या करे, उसे भी पीछे से दस के सिक्के ही मिलते हैं।

लाखन सिंह, रोडवेज कर्मचारी संयुक्त परिषद उप महामंत्री

अक्सर परिचालक इस बात की शिकायत भी एआरएम का करते रहते हैं कि सिक्कों के बजाए खुले नोट दिए जाएं। यात्री सिक्के लेते नही हैं। लेकिन दो तीन सिक्के देकर काम चलाया जा रहा है।

गुलशाद अली, रोडवेज पदाधिकारी

अब कोई नहीं देता टॉफी

कभी बाजार में सिक्कों की कमी के चलते दुकानदार खुले पैसे न होने का बहाना बनाकर ग्राहकों को टॉफी पकड़ा देते थे, अब दुकानदार ग्राहकों को अधिक से अधिक सिक्के देना चाहते हैं, लेकिन लोग 'बोझ' स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं।

आए दिन हो रहे झगड़े

सिक्कों के लेन-देन को लेकर बाजार में आए दिन झगड़े सुनने को मिल रहे हैं। अगर ग्राहक 10 रुपए का सामान लेकर दुकानदार को 100 का नोट पकड़ाते हैं तो दुकानदार ग्राहक को 50 रुपए के नोट और 40 रुपए के सिक्के देने की कोशिश करता है। ऐसे में कई बार ग्राहक सिक्के लेने में आनाकानी करता है तो उनके बीच झगड़ा भी हो जाता है।

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चलने लगा 10 रुपए का सिक्का

नोटबंदी से पहले बाजार में 10 रुपए के सिक्के काफी हो गए थे तो इन्हें लेकर असली-नकली की अफवाह फैलने लगी थी और लोग कुछ सिक्कों को नकली बताकर उन्हें लेने से मना कर देते थे। बाद में आरबीआई ने एसएमएस भेजकर लोगों को जागरूक किया कि बाजार में कोई भी 10 रुपए का सिक्का नकली नहीं है। नोटबंदी के बाद 10 रुपए का सिक्का बाजार में खूब चला और अभी भी चल रहा है।

ठप हो गया सिक्कों का कारोबार

नोटबंदी से पहले बाजार में सिक्कों की कमी के चलते बाजार में सिक्कों का कारोबार होता था। दुकानदार 100 रुपए में 90 रुपए के सिक्कों का लेनदेन करते थे। नोटबंदी के दौरान बाजार में इतने सिक्के आ गए कि बाजार में सिक्कों का कारोबार न केवल पूरी तरह से ठप हो गया, बल्कि सिक्के बाजार की समस्या बन गए।

अब वो वक्त नहीं रहा, जब दुकानदारों को दुकान चलाने के लिए सौ रुपए में 90 रुपए के सिक्के खरीदने पड़ते थे। अब स्थिति ये है कि हर दुकानदार के पास हजारों रुपए के सिक्के रखे हुए हैं और कोई इन्हें लेने को तैयार नहीं है।

प्रदीप गोयल, किराना व्यापारी, सरस्वती लोक

सिक्कों की समस्या दिन पर दिन गंभीर होती जा रही है। न बैंक वाले इन्हें जमा कर रहे हैं और न ग्राहक इन्हें लेने को तैयार हैं। हमारे जन प्रतिनिधियों और संयुक्त व्यापार संघ को समस्या हल करने के लिए आवाज बुलंद करनी चाहिए।

अजय केडिया, किराना व्यापारी, माधवपुरम

बैंक नहीं जमा कर रहे सिक्के

बाजार में सिक्कों की अधिकता के चलते पिछले दिनों आरबीआई ने सभी बैंकों को निर्देशित किया था कि वह अपने यहां कैश काउंटर पर सिक्कों को जमा करने संबंधी सूचना लगाएं, लेकिन किसी भी बैंक ने ऐसा नहीं किया। उल्टे अगर कोई ग्राहक उनके पास सिक्के लेकर जाता है तो वह उसे साफ मना कर देते हैं कि उनके यहां सिक्के जमा नहीं किए जाते हैं।

बैंक में सिक्के जमा न करने को लेकर रिजर्व बैंक की कोई गाइड लाइन नहीं है। शहर में कुछ ही बैंक हैं जो सिक्के जमा नहीं करते है, वरना हर बैंक सिक्के लेता है। परन्तु इसके लिए एक लिमिट तय की गई है।

अविनाश तांती

मैनेजर, लीड बैंक

परिचालकों की परेशानी बने सिक्के

रोडवेज बस में सफर के दौरान खुले पैसे के तौर पर सिक्के देना परिचालकों के लिए आफत बन जाता है। अधिकतर यात्री नोट के बदले में नोट ही लेना पसंद करते हैं। सिक्का न लेने पर परिचालकों की कहासुनी भी होती लेकिन खुले पैसे ना होने के कारण सिक्के ही देने पड़ते हैं। ऐसे में चालकों को भी डिपो से सिक्कों के बदले खुले नोटों की डिमांड अधिक रहती है।

Posted By: Inextlive