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वर्ष से हरियाणा में सांप लेकर चलने पर है प्रतिबंध

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दर्जन सपेरे जो बदरपुर बार्डर पर रहते थे अब घटकर एक दर्जन रह गए हैं

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रुपये रोज के हिसाब से शिल्प मेला में सपेरों को किया जा रहा 5ाुगतान

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सपेरे उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र में सुना रहे हैं मीठी धुन

उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के राष्ट्रीय शिल्प मेले में लोगों को 2ाूब रास आ रही बीन की धुन

हरियाणा में प्रतिबंध के बाद पार्टी प्रोग्राम में बीन बजा कर जीवकोपार्जन कर रहे सपेरे

ALLAHABAD: हरियाणा सरकार ने दस वर्ष पहले सांप लेकर चलने पर बैन 1या लगाया, सपेरों की का निवाला ही छिन गया। फिर 5ाी वे बीन बजाने की कला का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के परिसर में चल रहे राष्ट्रीय शिल्प मेले में पहली बार आए हरियाणा के सपेरे अपनी इसी कला के दम पर ग्लैमराइज हो गए हैं। उनके बढ़ते क्रेज का आंकलन इसी से किया जा सकता है कि यहां हर किसी का दिल सपेरों व उनकी बीन के साथ सेल्फी लेने के लिए मचल रहा है।

शादी विवाह का मिला सहारा

राजकुमार बीन पार्टी की आठ सदस्यीय टीम मु2िाया के साथ पहली बार शिल्प मेला पहुंची है। टीम दस वर्ष से सिर्फ शादी विवाह और सरकारी प्रोग्राम में बीन की धुन सुना कर रोजी रोटी का जुगाड़ करती रही है।

टूट गया जंगल से नाता

राजकुमार ने बताया कि हरियाणा सरकार ने सांप के 2ोल पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद सपेरों का जंगल से नाता टूट गया। जिन सपेरों के पास सांप थे, वे उन्हें 5ाी जंगलों में छोड़ आए। आजीविका पर ग्रहण लगा तो रोजी रोटी के लिए वे शादी-विवाह में बीन बजाने लगे। हालांकि इन आयोजनों में बीन की धुन को पसंद करने वालों की सं2या काफी है। शुरू के पांच साल तक शादी विवाह से पेट 5ारने तक की कमाई हो जाती थी। बाद में धीरे-धीरे सरकारी आयोजनों में बुलाया जाने लगा।

बीन से निकालते हैं कई धून

प्रतिबंध के बावजूद बीन सपेरों के जीने का सहारा है। फर्क बस इतना है कि तब बीन की धुन पर सांप नचाते थे और आज बीन, तु6बा व ढोल की थाप परहनुमान चालीसा, जहां डाल-डाल पर सोने की चिडि़यां जैसा गीत व हरियाणवी धुन से लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं।

प्रतिबंध लगाए जाने के बाद बीन बजाने की कला किसी काम की नहीं रही। अब गिनती के ही सपेरे बचे हैं। जो बीन से अलग-अलग धुन निकालकर परिवार को पाल रहे हैं।

राजकुमार

परिवार का पोषण करने के लिए कुछ तो करना ही पड़ेगा। अब तो शादी-विवाह में ही लोग आमंत्रित करते हैं। एक आयोजन का तीन हजार से ज्यादा नहीं मिलता है।

सु2ाबीर नाथ

सरकार ने गली-मोहल्लों में मिलने वाला मेहनताना समाप्त कर दिया है। सिर्फ बीन ही सहारा है। इसके जरिए दो वक्त की रोटी मुश्किल से मिल पाती है।

कुलदीप दास

बदरपुर बार्डर पर बीन बजाना बहुत पसंद किया जाता है। इसकी वजह से सरकारी आयोजनों में 5ाी बुलाया जाता है। अब वही आजीविका का सबसे बड़ा साधन है।

राजकुमार नाथ

Posted By: Inextlive