'कैंसर' की चपेट में जन औषधि केंद्र
जन औषधि केंद्रों पर कैंसर की दवाएं नहीं
- दो वर्ष बीतने के बावजूद नहीं मिल रहीं कैंसर की दवाएं - सस्ती दवाएं न मिलने से जन केंद्रों से मायूस लौट रहे मरीज Meerut । मरीजों को सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर खोले गए जन औषधि केंद्रों में दो साल बाद भी कैंसर की एक ही दवा मिल रही है। हालांकि बीपीपीआई (ब्यूरो ऑफ फार्मा पीएसयूएस ऑफ इंडिया) की लिस्ट में कैंसर की करीब 20 से 25 दवाओं के नाम शामिल हैं। ऐसे में जन औषधि केंद्रों पर कैंसर की दूसरी सस्ती दवाएं लेने आ रहे मरीजों को मायूस होकर लौटना पड़ रहा है। ये मिलनी थी सुविधा - बीपीपीआई की ओर से जारी जन औषधि केंद्रों पर कैंसर की दवाओं के रेट बाजार से 80 से 90 फीसदी तक कम हैं।- कीमोथैरेपी के बाद लगने वाला इंजेक्शन बाजार में करीब साढ़े 6 हजार रुपये का है। जन औषधि केंद्रों पर 630 रुपये में उपलब्ध होना था।
- 11 हजार के इंजेक्शन की कीमत जन औषधि केंद्र पर करीब 3 हजार रूपये है। - जन औषधि केंद्रों पर सिर्फ टेमोक्सीफेन साईट्रेट नामक दवा ही उपलब्ध है।- बाजार में इस दवा की 30 गोली करीब 25 से 50 रुपये में मिलती है।
- जनऔषधि केंद्र पर इस दवा की की 10 गोलियां सिर्फ 9 रुपये है। रोजाना लौट रहे मरीज शहर में जन औषधि के 6 स्टोर खुले हैं। एक स्टोर पर रोजाना 20 से 25 लोग कैंसर की दवा लेने आते हैं। कैंसर की दवाओं का रेग्यूलर कोर्स किया जाता हैं व हफ्तों या दिनों के हिसाब से दवाओं की साइकिल तैयार की जाती है। मरीज को एक चक्र की दवाओं पर कम से कम 7 से 15 हजार रूपये खर्च करने पड़ते हैं। ऐसे में जनऔषधि केंद्रों पर कैंसर की मात्र एक ही दवा उपलब्ध होने के कारण कई मरीज रोजाना बिना दवा लिए ही वापस लौट रहे हैं. -------- यह है स्थिति - 4 लाख रुपये तकरीबन खर्च होते हैं कैंसर के इलाज में - 20 फीसदी की कैंसर के मरीज ठीक हो पाते हैं मेरठ में - 80 फीसदी कैंसर के मरीजों की मौत हो जाती है। - कैंसर की मुख्य वजह दूषित पानी, खाद्य पदार्थ में मिलावट, बीड़ी, सिगरेट, पान, मसाला व नशीले पदार्थ हैं। - सबसे ज्यादा गले, फेफड़े व लीवर कैंसर के मरीज बढ़ेमहिलाओं मे स्तन कैंसर के मामले भी तेजी से बढ़ रहे
आंकड़ों में कैंसर साल - मरीज 2010 - 33,000 2011 - 35,000 2012 - 40,000 2013 - 42,000 2014 - 45,000 2015 - 50,000 2016 - 54,000 2017 - 62,000 कैंसर के मरीजों के लिए बहुत सस्ती दवाएं लिस्ट में हैं, लेकिन इनकी सप्लाई ही नहीं हैं। कई महीनों बाद भी एक ही दवा उपलब्ध हो पाई हैं। इसका भी फायदा मरीज को नहीं मिल पा रहा है। सचिन गुप्ता, जन औषधि केंद्र संचालक कैंसर के मरीज को कम से कम तीन से पांच साल तक दवा खानी ही पड़ती हैं। इसमें लाखों रूपये तक का खर्च आता है। होल सेल में ही 25 से 2 लाख रुपये तक के इंजेक्शन व दवाई उपलब्ध हैं। नीरज कौशिक, दवा विक्रेता कैंसर का इलाज बहुत महंगा होता हैं। यहां सस्ती दवा की उम्मीद में आए थे लेकिन यहां दवाएं ही उपलब्ध नहीं हैं। बाजार से महंगी दवा ही खरीदनी पड़ रही है। रामदीन कुमार, मरीज